मानव शरीर, जो हम किसी बच्चे के पैदा होने के बाद देखते है,तो बडा साधारण सा नजर आता है|एक कौशिका से पूरे शरीर बनने की प्रक्रिया बहुत ही जटिल होती है,इसका हमें ज्ञान भ्रूण विज्ञानं को पढने से मिलता है|भ्रूण के विकास को जानने का प्रयास सबसे पहले अरस्तू ने ईसा पूर्व(३८४-३२२)किया था|उसके बाद से अब तक भ्रूण के विकास की जानकारी कई वैज्ञानिको ने हासिल की है|जिसके लिए उन्होंने कई उन्नत उपकरणों का सहारा लिया है|भारतीय मनीषियों के बारे में यही कहा जाता रहा है कि उन्होंने दर्शन शास्त्र के आधार पर ही प्रगति की है,विज्ञानं में नहीं|आज से लगभग ५५६० ईसा पूर्व लिखा गया "महाभारत"नामक ग्रन्थ में भ्रूण के विकास की जानकारी मिलती है, उसे पढकर बडा आश्चर्य होता है कि इतने वर्ष पूर्व भी रचनाकार को भ्रूण विज्ञानं की जानकारी हो सकती है|श्रीमद्भागवत जो कि १६५० ईसापूर्व लिखी गयी है, में भी भ्रूण के विकास की जानकारी उपलब्ध है|दोनों ग्रंथों में वर्णित जानकारी को विज्ञानं के साथ तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ|
हमारे ऋषियों के अनुसार स्त्री के रज (Ovum)और पुरुष के शुक्राणु (Sperm)के मिलने पर ही आगे भ्रूण(Embryo) का विकास होता है|इसके उपरांत ही जीव पनपता है|महाभारत के शांतिपर्व में वर्णन आता है की शोणित (Ovum)एवं शुक्र (Sperm)के मिलने से कलल का निर्माण होता है|कलल को युग्मनज या निषेचित अंड(Zygote) भी कहा जाता है|यह वर्णन महाभारत के शांतिपर्व ११७,३०१,३२०,३३१ एवं ३५६ तथा भागवत में ३/३१ में मिलता है|भागवत के अनुसार एक ही रात यानि १२ घंटे में ही इस कलल का निर्माण हो जाता है|कलल ५ दिनों में एक बुलबुले के आकार का हो जाता है|(भागवत ३/३१/२)(Blastula)|१० दिन में यह बेर के आकार का और कडा हो जाता है|११वे दिन यह अंडाकार नजर आने लगता है|भागवत के ३/३१/३ में स्पष्ट लिखा है कि एक माह में भ्रूण का सिर नजर आने लगता है|अगर आज इस स्थिति में सोनोग्राफी करवाई जाये तो भ्रूण का सिर नजर आएगा|इसी में आगे लिखा है कि दूसरे माह के अन्त तक भ्रूण में हाथ,पांव और शरीर के अन्य अंग विकसित होने लगते है|
गर्भावस्था के तीसरे महीने में नाखून , बाल,हड्डियां एवं जननांगों,और गुदा का विकास होने लगता है|चौथे महीने के आते आते सात प्रकार की धातुओं(Tissues) का निर्माण होने लगता है|ये है-रस,(Tissue fluids)रक्त(Blood),स्नायु(Muscles),मेदा(Fatty tissues),अस्थि(Bone),मज्जा(Nervous tissue) और शुक्र(Reproductive tissue)|यहाँ भी भागवत और विज्ञानं में समानता है,कही कोई विरोधाभास नहीं है|पांचवे महीने में भूख और प्यास का अनुभव होने लगता है|भ्रूण विज्ञानं ने यह सिद्ध भी किया है|बच्चे की आंतों में इस अवस्था में शरीर की त्वचा के हिस्से और बाल पाए गए है,जो कि उसके शरीर से अलग होकर Amniotic fluid में गिरते रहते है|बच्चा इस द्रव को प्यास और भूख लगने पर पीता है|यह द्रव बच्चे के और गर्भाशय के बीच भरा रहता है|
छठे महीने से बच्चा घूर्णन करने लगता है तथा सातवें महीने से उसका मस्तिष्क भी कार्य करने लग जाता है|इस अवस्था में भी अगर बच्चा जन्म ले ले तो उसके जीवन की सम्भावना अच्छी होती है|भारतीय संस्कृति में इसी लिए गर्भावस्था की अवधि में माता को अच्छा साहित्य पढने के लिए कहा जाता है,क्योंकि इस अवस्था में शिशु का मस्तिष्क कार्य करने लगता है और माँ की मानसिक स्थिति का बच्चे पर असर होता है|इसका सबसे बड़ा प्रमाण अभिमन्यु द्वारा अपनी माँ के गर्भ में चक्रव्यूह भेदन की कला का सीख जाना है|सात से नौ माह की अवधि के दौरान शिशु का वजन तेजी से बढता है|
सन्दर्भ -श्रीमद्भागवत -२/१०/१७ से २२,३/६/१२ से १५,३/६/५४ से ६० --गर्भ में शिशु का विकास |
-श्रीमद्भागवत -३/६/१से५ में २३ गुणसूत्रों के बारे में लिखा है|
-श्रीमद्भागवत -३/२६/६३ से ७० में लिखा है कि शिशु के सब अंग सुचारू रूप से कार्य सात माह की गर्भावस्था में करने लग जाते हैं,फिर प्रसव काल दो माह बाद ही क्यों होता है?आज तक विज्ञानं इसका जवाब नहीं ढूंढ पाया है|इसके लिए वह शरीर में उत्पन्न होने वाले हार्मोन्स को कारण मानता है|जबकि भागवत में इसका कारण स्पष्ट किया हुआ है|
-श्रीमद्भागवत-३/६/७ में स्पष्ट लिखा है कि भ्रूण पहले एक बार विभाजित होता है|ऐसा फिर १० बार होता है|ऐसा फिर अलग अलग चरणों में तीन बार होता है|हर विभाजन में कोशिकाओं की संख्या पहले से दुगुनी हो जाती है|विज्ञानं इन तीनों को क्रमश:Ectoderm,mesoderm व endoderm कहता है|भागवत के अनुसार इन्हीं तीन चरणों से विकसित अंगों के गुण भी तदनुसार ही होते है|
जब हजारों वर्ष पूर्व लिखे शास्त्रों में इतनी शोध अंकित है,तो क्यों हम भारतीय लोग अभी भी पश्चिम की खोज को ही महत्त्व देते हैं?क्या यह हम भारतीयों की २०० वर्षों की मानसिक गुलामी का प्रतीक नहीं है|जरा समय निकलकर सोचिये|
||हरि शरणम् ||
Full term foetus in amniotic sac ready to deliver.
हमारे ऋषियों के अनुसार स्त्री के रज (Ovum)और पुरुष के शुक्राणु (Sperm)के मिलने पर ही आगे भ्रूण(Embryo) का विकास होता है|इसके उपरांत ही जीव पनपता है|महाभारत के शांतिपर्व में वर्णन आता है की शोणित (Ovum)एवं शुक्र (Sperm)के मिलने से कलल का निर्माण होता है|कलल को युग्मनज या निषेचित अंड(Zygote) भी कहा जाता है|यह वर्णन महाभारत के शांतिपर्व ११७,३०१,३२०,३३१ एवं ३५६ तथा भागवत में ३/३१ में मिलता है|भागवत के अनुसार एक ही रात यानि १२ घंटे में ही इस कलल का निर्माण हो जाता है|कलल ५ दिनों में एक बुलबुले के आकार का हो जाता है|(भागवत ३/३१/२)(Blastula)|१० दिन में यह बेर के आकार का और कडा हो जाता है|११वे दिन यह अंडाकार नजर आने लगता है|भागवत के ३/३१/३ में स्पष्ट लिखा है कि एक माह में भ्रूण का सिर नजर आने लगता है|अगर आज इस स्थिति में सोनोग्राफी करवाई जाये तो भ्रूण का सिर नजर आएगा|इसी में आगे लिखा है कि दूसरे माह के अन्त तक भ्रूण में हाथ,पांव और शरीर के अन्य अंग विकसित होने लगते है|
गर्भावस्था के तीसरे महीने में नाखून , बाल,हड्डियां एवं जननांगों,और गुदा का विकास होने लगता है|चौथे महीने के आते आते सात प्रकार की धातुओं(Tissues) का निर्माण होने लगता है|ये है-रस,(Tissue fluids)रक्त(Blood),स्नायु(Muscles),मेदा(Fatty tissues),अस्थि(Bone),मज्जा(Nervous tissue) और शुक्र(Reproductive tissue)|यहाँ भी भागवत और विज्ञानं में समानता है,कही कोई विरोधाभास नहीं है|पांचवे महीने में भूख और प्यास का अनुभव होने लगता है|भ्रूण विज्ञानं ने यह सिद्ध भी किया है|बच्चे की आंतों में इस अवस्था में शरीर की त्वचा के हिस्से और बाल पाए गए है,जो कि उसके शरीर से अलग होकर Amniotic fluid में गिरते रहते है|बच्चा इस द्रव को प्यास और भूख लगने पर पीता है|यह द्रव बच्चे के और गर्भाशय के बीच भरा रहता है|
छठे महीने से बच्चा घूर्णन करने लगता है तथा सातवें महीने से उसका मस्तिष्क भी कार्य करने लग जाता है|इस अवस्था में भी अगर बच्चा जन्म ले ले तो उसके जीवन की सम्भावना अच्छी होती है|भारतीय संस्कृति में इसी लिए गर्भावस्था की अवधि में माता को अच्छा साहित्य पढने के लिए कहा जाता है,क्योंकि इस अवस्था में शिशु का मस्तिष्क कार्य करने लगता है और माँ की मानसिक स्थिति का बच्चे पर असर होता है|इसका सबसे बड़ा प्रमाण अभिमन्यु द्वारा अपनी माँ के गर्भ में चक्रव्यूह भेदन की कला का सीख जाना है|सात से नौ माह की अवधि के दौरान शिशु का वजन तेजी से बढता है|
सन्दर्भ -श्रीमद्भागवत -२/१०/१७ से २२,३/६/१२ से १५,३/६/५४ से ६० --गर्भ में शिशु का विकास |
-श्रीमद्भागवत -३/६/१से५ में २३ गुणसूत्रों के बारे में लिखा है|
-श्रीमद्भागवत -३/२६/६३ से ७० में लिखा है कि शिशु के सब अंग सुचारू रूप से कार्य सात माह की गर्भावस्था में करने लग जाते हैं,फिर प्रसव काल दो माह बाद ही क्यों होता है?आज तक विज्ञानं इसका जवाब नहीं ढूंढ पाया है|इसके लिए वह शरीर में उत्पन्न होने वाले हार्मोन्स को कारण मानता है|जबकि भागवत में इसका कारण स्पष्ट किया हुआ है|
-श्रीमद्भागवत-३/६/७ में स्पष्ट लिखा है कि भ्रूण पहले एक बार विभाजित होता है|ऐसा फिर १० बार होता है|ऐसा फिर अलग अलग चरणों में तीन बार होता है|हर विभाजन में कोशिकाओं की संख्या पहले से दुगुनी हो जाती है|विज्ञानं इन तीनों को क्रमश:Ectoderm,mesoderm व endoderm कहता है|भागवत के अनुसार इन्हीं तीन चरणों से विकसित अंगों के गुण भी तदनुसार ही होते है|
जब हजारों वर्ष पूर्व लिखे शास्त्रों में इतनी शोध अंकित है,तो क्यों हम भारतीय लोग अभी भी पश्चिम की खोज को ही महत्त्व देते हैं?क्या यह हम भारतीयों की २०० वर्षों की मानसिक गुलामी का प्रतीक नहीं है|जरा समय निकलकर सोचिये|
||हरि शरणम् ||
Full term foetus in amniotic sac ready to deliver.
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