न जायते म्रियतेव कदाचि-
न्नायं भूत्वा भविता व न भूयः|
अजो नित्यः शाश्वतो अयं पुराणों
न हन्यते हनेमाने शरीरे||गीता२/२०||
अर्थात्, यह आत्मा किसी काल में न तो जन्मता है न मरता ही है तथा न यह उतपन्न होकर फिर होनेवाला ही है;क्योंकि यह अजन्मा ,नित्य ,सनातन और पुरातन है;शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता|
पुनर्जन्म अपने आप में एक विवादित विषय होने के साथ साथ विवादित शब्द भी है|एक तरफ हम कहते है कि आत्मा अवध्य है,ना ये जन्म लेती है,ना ये मरती है और ना ही ना ये मारी जा सकती है|उपरोक्त श्लोक के आधार पर यह बिलकुल स्पष्ट भी है|अगर ऐसा वास्तव में है तो फिर पुनर्जन्म किसका होता है?कम से कम आत्मा का तो नहीं होता है|भौतिक शरीर के समाप्त हो जाने के बाद वह भी वापिस पंचतत्वों में विलीन कर दिया जाता है या हो जाता है|अब बचा एक मात्र मन|मन ही एक मात्र है जिसके कारण नए शरीर की जरुरत पड़ती है|अतः मन जिस नयी देह में आत्मा के साथ प्रवेश करता है उस प्रक्रिया को पुनर्जन्म होना कहा जाता है|पुनर्जन्म शब्द मन और आत्मा के नए शरीर में प्रवेश करने का ही एक नाम है|अतः यही कहा जा सकता है कि मन का पुनर्जन्म होता है|कबीर कहते है--
मन मरा ना ममता मरी,मर मर गए शरीर|
आशा तृष्णा ना मरी, कह गया दास कबीर||
साथ ही मरण धर्मा शरीर के बारे में कहते है-
एक दिन यह तन खाक मिलेगा,काहे फिरे मगरूरी में|
कहत कबीर सुनो भाई साधो,साहेब मिले सबूरी में||
मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में||
इस पुनर्जन्म की सम्पूर्ण प्रक्रिया में मूल रूप से तीन की भूमिका होती है--
(१)आत्मा (२)शरीर (३)मन
पुनर्जन्म की पूरी प्रक्रिया को वैज्ञानिक तरीके से समझने के लिए पहले इन तीनो के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेना आवश्यक है|यह उसीप्रकार है जैसे किसी पुस्तक को पढने से पूर्व भाषा ज्ञान आवश्यक होता है|इनके बारे में गीता क्या कहती है और विज्ञानं क्या कहता है,जब दोनों के पक्ष सामने आयेंगे तो विषय वस्तु को समझने में ज्यादा आसानी रहेगी|
गीता में भगवान शरीर,मन और आत्मा के बारे में अर्जुन को समझते हुये कहते है कि ---
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः|
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु सः||गीता३/४२||
अर्थात्, इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर यानि श्रेष्ठ ,बलवान और सूक्ष्म कहते है'इन इन्द्रियों से पर मन है ,मन से भी पर बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यंत पर है वह आत्मा है|
विज्ञानं शरीर के बारे में ज्यादातर जान चूका है|मन के बारे में अभी पूर्ण रूप से जानना शेष है और आत्मा के बारे में अभी कुछ भी नहीं जान पाया है|शरीर के बारे में जो भी विज्ञानं जान पाया है ,गीता में पहले से ही वर्णित है|इस शरीर को जानने के उपरांत ही शेष को जाना जा सकता है|कल से शरीर के बारे में----
क्रमश:
न्नायं भूत्वा भविता व न भूयः|
अजो नित्यः शाश्वतो अयं पुराणों
न हन्यते हनेमाने शरीरे||गीता२/२०||
अर्थात्, यह आत्मा किसी काल में न तो जन्मता है न मरता ही है तथा न यह उतपन्न होकर फिर होनेवाला ही है;क्योंकि यह अजन्मा ,नित्य ,सनातन और पुरातन है;शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता|
पुनर्जन्म अपने आप में एक विवादित विषय होने के साथ साथ विवादित शब्द भी है|एक तरफ हम कहते है कि आत्मा अवध्य है,ना ये जन्म लेती है,ना ये मरती है और ना ही ना ये मारी जा सकती है|उपरोक्त श्लोक के आधार पर यह बिलकुल स्पष्ट भी है|अगर ऐसा वास्तव में है तो फिर पुनर्जन्म किसका होता है?कम से कम आत्मा का तो नहीं होता है|भौतिक शरीर के समाप्त हो जाने के बाद वह भी वापिस पंचतत्वों में विलीन कर दिया जाता है या हो जाता है|अब बचा एक मात्र मन|मन ही एक मात्र है जिसके कारण नए शरीर की जरुरत पड़ती है|अतः मन जिस नयी देह में आत्मा के साथ प्रवेश करता है उस प्रक्रिया को पुनर्जन्म होना कहा जाता है|पुनर्जन्म शब्द मन और आत्मा के नए शरीर में प्रवेश करने का ही एक नाम है|अतः यही कहा जा सकता है कि मन का पुनर्जन्म होता है|कबीर कहते है--
मन मरा ना ममता मरी,मर मर गए शरीर|
आशा तृष्णा ना मरी, कह गया दास कबीर||
साथ ही मरण धर्मा शरीर के बारे में कहते है-
एक दिन यह तन खाक मिलेगा,काहे फिरे मगरूरी में|
कहत कबीर सुनो भाई साधो,साहेब मिले सबूरी में||
मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में||
इस पुनर्जन्म की सम्पूर्ण प्रक्रिया में मूल रूप से तीन की भूमिका होती है--
(१)आत्मा (२)शरीर (३)मन
पुनर्जन्म की पूरी प्रक्रिया को वैज्ञानिक तरीके से समझने के लिए पहले इन तीनो के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेना आवश्यक है|यह उसीप्रकार है जैसे किसी पुस्तक को पढने से पूर्व भाषा ज्ञान आवश्यक होता है|इनके बारे में गीता क्या कहती है और विज्ञानं क्या कहता है,जब दोनों के पक्ष सामने आयेंगे तो विषय वस्तु को समझने में ज्यादा आसानी रहेगी|
गीता में भगवान शरीर,मन और आत्मा के बारे में अर्जुन को समझते हुये कहते है कि ---
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः|
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु सः||गीता३/४२||
अर्थात्, इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर यानि श्रेष्ठ ,बलवान और सूक्ष्म कहते है'इन इन्द्रियों से पर मन है ,मन से भी पर बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यंत पर है वह आत्मा है|
विज्ञानं शरीर के बारे में ज्यादातर जान चूका है|मन के बारे में अभी पूर्ण रूप से जानना शेष है और आत्मा के बारे में अभी कुछ भी नहीं जान पाया है|शरीर के बारे में जो भी विज्ञानं जान पाया है ,गीता में पहले से ही वर्णित है|इस शरीर को जानने के उपरांत ही शेष को जाना जा सकता है|कल से शरीर के बारे में----
क्रमश:
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