Friday, July 26, 2013

पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना|क्रमश:१३|मन-२

       क्रमश:
                                  इस प्रकार हमने देखा कि  दोनों उर्जा क्षेत्रो के प्रभाव से उत्पन्न यह तीसरा क्षेत्र ही मन  है|जिसके पास अपनी कोई उर्जा नहीं है|संसार का शाश्वत नियम है कि जिसका स्वयं का कोई उर्जा श्रोत नहीं होता या जिसमे स्वयं की उर्जा नहीं होती उसका स्थायित्व भी नहीं होता है|और ऐसा इस मन के साथ भी है|परन्तु यथार्थ रूप से  इसे स्वीकार करना बड़ा ही मुश्किल है|
                             इस संसार में जितनी भी भौतिक वस्तुए है उनसे संबधित न्यूटन द्वारा प्रतिपादित एक सिद्धांत है| "संसार में प्रत्येक वस्तु एक दूसरे को आकर्षित भी करती है,और प्रतिकर्षित भी करती है|आकर्षण और प्रतिकर्षण बल समान होने पर उन वस्तुओं की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता है|"जब इन दोनों बलों में विषमता पैदा होती है, तब स्थायित्व खतरे में पड जाता है|यह सिद्धांत छोटे से छोटे अणु परमाणु से लेकर विराट तक,सब पर समान रूप से लागु होता है|इस ब्रह्माण्ड में सभी कार्य एक निश्चित सिद्धांत के अनुसार ही होते हैं|जिसमे यह सिद्धात महत्वपूर्ण है कि "यहाँ जो भी है चाहे अणु में चाहे विराट में,सब एक समान है|" यहाँ पर सब इस उर्जा का खेल ही चलता रहता है|यह सब खेल ही तो ईश्वर की माया है|इसकी इस माया को पूर्णतया समझ लेना ही ईश्वर को पा लेना है|
                              इन आकर्षण और प्रतिकर्षण बलों से सम्बन्धित  एकछोटा सा उदाहरण देना चाहूँगा, जिससे इस सिद्धांत को समझने में आसानी होगी|पृथ्वी और सूर्य के बीच उपरोक्त दोनों बल भी कार्य करते हैं| लाखों वर्ष पूर्व दोनों के इन बलों में असमानता पैदा होने के परिणाम स्वरुप चंद्रमा अस्तित्व में आया|आकर्षण और प्रतिकर्षण बालों में विषमता पैदा हो जाने के फलस्वरूप पृथ्वी का एक टुकड़ा टूट कर उससे अलग होकर दूर जाने लगा|जहाँ पर दोनों के बलों में संतुलन हुआ,वही यह पिण्ड स्थित  हो गया|दोनों के बलों में संतुलन बनाये रखने के लिए वह पृथ्वी के चक्कर लगाने लगा|आज चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच उसी स्थान से पृथ्वी के चारों और परिक्रमा कर रहा है,जहाँ पर सूर्य और पृथ्वी के बल  उसे समान रूप से  प्रभावित करते है|यही स्थिति आत्मा और शरीर के मध्य में मन की है|मन और चंद्रमा की तुलना हो सकती है,क्योंकि जो क्षुद्र में है वह विराट में भी है|इसी कारण से चंद्रमा को मन का देवता भी कहा जाता है|शास्त्रों में  चंद्रमा को मन के  देवता की उपाधि ऋषियों ने ऐसे ही नहीं दी है,इस के पीछे यही एक वैज्ञानिक कारण है|
                                                     कोई भी पिण्ड अगर किसी दूसरे पिण्ड की परिक्रमा कर रहा है तो उनके बीच उपरोक्त दो बलों के अलावा दो बल और कार्य करते हैं|जिन्हें क्रमश:अभिकेंद्रित(Centripetal force)और अपकेंद्रित (Centrifugal force)बल कहते हैं|अभिकेन्द्रित बल घूमने वाले पिण्ड को मुख्य पिण्ड की तरफ ले जाने की कोशिश करता है ,जबकि अपकेंद्रित बल उसे  दूर ले जाने की|दोनों बल जब समान या सन्तुलित अवस्था में रहते है,तो यथा स्थिति में परिक्रमा पथ बना रहता है|हालाँकि इन बलों का मन से ज्यादा कोई संबंध नहीं है|अभी तक मन के सम्बन्ध में आकर्षण व प्रतिकर्षण बल ही अधिक महत्वपूर्ण है|आगे हम अन्य बलों की चर्चा करेंगे,जो इस मन से सम्बन्धित है|
क्रमश:
         || हरि शरणम्  ||

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