क्रमश:
पदार्थ का छोटे से छोटा भाग जिसे और आगे विभाजित नहीं किया जा सकता ,परमाणु (Atom)कहलाता है|परमाणु ही इस जगत का मूल आधार है|इसी से सरे ब्रह्माण्ड(Universe) का प्रादुर्भाव हुआ है|उर्जा का प्रारंभिक स्रोत भी यही है|परमाणु के बिना यहाँ पर किसी की कल्पना नहीं कर सकते|इन्ही परमाणुओं से तत्व(Element) का निर्माण होता है|तत्व परमाणुओं की स्थिरता(Stability) का एक नाम है|तत्व से ही आगे की निर्माण यात्रा शुरू होती है|तत्वों से यौगिकों(Compounds) का निर्माण और यौगिकों से मिश्रण(Mixture) और पदार्थ(Material) का निर्माण होता है|
तत्व तक की अवस्था को गीता में ईश्वर ने अपनी परा या सूक्ष्म (Micro) अर्थात चेतन प्रकृति कहा है|तत्व के बाद जिन भौतिक पदार्थों या रचनाओं का निर्माण होता है वे सब अपरा या जड़ अथवा स्थूल (Macro)प्रकृति कहलाती है|परा या अपरा,दोनों का मूल उर्जा(Energy) ही है,यही मुख्य बात ध्यान योग्य है|
विज्ञानं में किसी भी पदार्थ का अद्ययन रसायन शास्त्र (Chemistry) के अंतर्गत किया जाता है|इस विज्ञानं के अनुसार सन् २०१० तक ११८ तत्वों की खोज कर ली गयी है|जिनमे मात्र ८८ ही स्थायित्व वाले है,बाकी ३० तत्व अस्थायित्व है|इनका विवरण तत्व तालिका (Elemental table) में उनकी प्रकृति (Nature) के अनुसार वर्णित है |पहले स्थान पर हाईड्रोजन है ,उसको H के रूप में दर्शाया गया है|हीलियम दूसरे नंबर पर है,जिसे He के रूप में दर्शाया गया है|इस प्रकार सभी तत्वों को एक एक रूप के तहत अंगरेजी के अक्षर दिए गए है|सभी की प्रकृति के अनुसार सभी तत्वों को सात भागों में बांटा गया है-जैसे सरगम के सात सुर--सा,रे,गा,मा,प, ध नि,सा|प्रत्येक आठवे स्थान पर फिर लगभग समान गुण, धर्म वाला तत्व आजाता है|ये तत्व गैस,अधातु और धातु के रूप में वर्णित है|आपस में नियमों के तहत क्रिया करके यौगिको का निर्माण करते है,और इससे फिर पदार्थ का निर्माण होता है|सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ९९.९प्रतिशत हिस्सा हाईड्रोजन एवं हीलियम गैस का है|परन्तु यह दोनों गैस पृथ्वी पर अत्यंत अल्प मात्रा में है,इसी कारण यहाँ जीवन संभव हुआ है|अथक प्रयासों के बावजूद अभी ब्रह्माण्ड के बाकी हिस्सों में से कहीं पर भी जीवन होने के संकेत नहीं मिले है|
भारतीय शास्त्रों के अनुसार ८८ तत्व स्थायित्व लिए है और २० तत्व अस्थायित्व लिए|कुल१०८ तत्व वर्णित है|इसी के कारण हर शुभ कार्य में १०८ का विशेष महत्त्व है|माला में मनको की संख्या भी १०८ इसी कारण से की गई है|इन्ही तत्वों से पृथ्वी,वायु,अग्नि एवं जल का निर्माण हुआ है,जिनसे हम शरीर का निर्माण हुआ मानते है|पूरे शरीर,मन और आत्मा का आधार एक मात्र यह तत्व है,जिसे भारतीय ऋषियों ने सघन खोज के बाद शास्त्रों में सही तरीके से वर्णित किया है|गीता में भगवान श्री कृष्ण ज्ञान विज्ञानं योग अध्याय की शुरुआत में ही अर्जुन को कहते है--
ज्ञानं तेSहं सविज्ञानमिदं वक्षयाम्यशेषत:|
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोSन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते||गीता७/२||
अर्थात्,मैं तेरे लिए इस विज्ञानं सहित तत्व ज्ञान को सम्पूर्ण रूप से कहूँगा,जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रह जाता|
यह तत्व ज्ञान ही ऐसा ज्ञान है जिसको समझ कर व्यक्ति के पास समझने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहता है|जीने का आनंद इसको जानने के बाद ही मिल पता है|इसी ज्ञान को जान जाने से व्यक्ति अपने आप को भी सम्पूर्ण रूप से जान जाता है|यही वास्तव में स्वयं को जानने की यात्रा है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
विज्ञानं में किसी भी पदार्थ का अद्ययन रसायन शास्त्र (Chemistry) के अंतर्गत किया जाता है|इस विज्ञानं के अनुसार सन् २०१० तक ११८ तत्वों की खोज कर ली गयी है|जिनमे मात्र ८८ ही स्थायित्व वाले है,बाकी ३० तत्व अस्थायित्व है|इनका विवरण तत्व तालिका (Elemental table) में उनकी प्रकृति (Nature) के अनुसार वर्णित है |पहले स्थान पर हाईड्रोजन है ,उसको H के रूप में दर्शाया गया है|हीलियम दूसरे नंबर पर है,जिसे He के रूप में दर्शाया गया है|इस प्रकार सभी तत्वों को एक एक रूप के तहत अंगरेजी के अक्षर दिए गए है|सभी की प्रकृति के अनुसार सभी तत्वों को सात भागों में बांटा गया है-जैसे सरगम के सात सुर--सा,रे,गा,मा,प, ध नि,सा|प्रत्येक आठवे स्थान पर फिर लगभग समान गुण, धर्म वाला तत्व आजाता है|ये तत्व गैस,अधातु और धातु के रूप में वर्णित है|आपस में नियमों के तहत क्रिया करके यौगिको का निर्माण करते है,और इससे फिर पदार्थ का निर्माण होता है|सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ९९.९प्रतिशत हिस्सा हाईड्रोजन एवं हीलियम गैस का है|परन्तु यह दोनों गैस पृथ्वी पर अत्यंत अल्प मात्रा में है,इसी कारण यहाँ जीवन संभव हुआ है|अथक प्रयासों के बावजूद अभी ब्रह्माण्ड के बाकी हिस्सों में से कहीं पर भी जीवन होने के संकेत नहीं मिले है|
भारतीय शास्त्रों के अनुसार ८८ तत्व स्थायित्व लिए है और २० तत्व अस्थायित्व लिए|कुल१०८ तत्व वर्णित है|इसी के कारण हर शुभ कार्य में १०८ का विशेष महत्त्व है|माला में मनको की संख्या भी १०८ इसी कारण से की गई है|इन्ही तत्वों से पृथ्वी,वायु,अग्नि एवं जल का निर्माण हुआ है,जिनसे हम शरीर का निर्माण हुआ मानते है|पूरे शरीर,मन और आत्मा का आधार एक मात्र यह तत्व है,जिसे भारतीय ऋषियों ने सघन खोज के बाद शास्त्रों में सही तरीके से वर्णित किया है|गीता में भगवान श्री कृष्ण ज्ञान विज्ञानं योग अध्याय की शुरुआत में ही अर्जुन को कहते है--
ज्ञानं तेSहं सविज्ञानमिदं वक्षयाम्यशेषत:|
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोSन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते||गीता७/२||
अर्थात्,मैं तेरे लिए इस विज्ञानं सहित तत्व ज्ञान को सम्पूर्ण रूप से कहूँगा,जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रह जाता|
यह तत्व ज्ञान ही ऐसा ज्ञान है जिसको समझ कर व्यक्ति के पास समझने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहता है|जीने का आनंद इसको जानने के बाद ही मिल पता है|इसी ज्ञान को जान जाने से व्यक्ति अपने आप को भी सम्पूर्ण रूप से जान जाता है|यही वास्तव में स्वयं को जानने की यात्रा है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
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