Wednesday, July 3, 2013

पुनर्जन्म-अवधारणा या वास्तविकता |क्रमश: भाग ६

क्रमश:
                    अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानी भारत|
                    अव्यतनिधनान्येव       तत्र  का परिवेदना ||गीता२/२८||
अर्थात्,हे अर्जुन ,सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं,केवल बीच में ही प्रकट हैं;फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है?
      गीता के उपरोक्त श्लोक में भगवान बताते है कि जन्म से पहले सभी प्राणी कहाँ थे यह किसी को पता नहीं रहता और मरने के बाद वे कहाँ जाते है,यह भी किसी को पता नहीं होता| इससे स्पष्ट है कि यह प्रकट और अप्रकट होने का खेल चलता रहता है और किसी को पता भी नहीं चलता कि सब कैसे हो रहा है?लेकिन मानव जन्म ही एक ऐसा जन्म है जहाँ व्यक्ति को यह स्वतंत्रता होती है की वह इस रहस्य को समझे जिससे उसे प्रकट और अप्रकट होना क्या ,कैसे और क्यों होता है,इसका पता लगा सके|साथ ही अपने बारे में भी यह सुनिश्चित कर सके की वह आगे फिर से इस खेल का हिस्सा ना बने|लेकिन आज इस भौतिकतावादी संसार में साधारण व्यक्ति केवल राग,द्वेष,और मोह,माया इत्यदि में उलझ कर रह गया है|उसे इससे कोई मतलब भी नहीं है कि यह एक खेल है या कुछ और|अब ऐसा व्यक्ति इस खेल को कब समझ पायेगा और कैसे समझेगा,यह सब अधिकार परमात्मा ने अपने पास रख रखा है|रामचरितमानस में एक जगह गोस्वामीजी लिखते है---
                       सोई जानहि जेहि देऊ जनाई|जानत तुमहि  तुमइ होई जाई ||
राम जब वनवास के चलते वाल्मिकी आश्रम आते है,तब वल्मिकीजी के द्वारा भगवान राम को उपरोक्त शब्द कहे गये है|आप वल्मिकीजी के भूतकाल से अच्छी तरह वाकिफ है ही|बिना ईश्वर की अनुकम्पा के वल्मिकीजी में परिवर्तन आना असंभव था|
      अतः स्पष्ट है कि अगर व्यक्ति को इस खेल को समझते हुए अपने अप्रकट और प्रकट को समझना है तो उसपर ईश्वरीय अनुकम्पा जरूरी है|सब समझ जाने के बाद पुनः अप्रकट से प्रकट ना होने के लिए क्या करना होगा,यह तय उसको स्वयं को करना होगा|  सरिता,जगत और रजिया को उपरोक्त अनुकम्पा मिली है |उन्हें तय करना है कि इसको उन्हें किस तरह लेना है|सरिता ,जो अभी एक द्वंद्व में जी रही है ,उसके लिए एक राह मिल सकती है|खोजना उसे स्वयं ही होगा|और निः संदेह गीता आपकी इस खोज को आसान बना देगी|क्यंकि जहाँ से प्रश्न उठते है,सामान्यतया उत्तर भी वहीँ होते हैं|गीता पुनर्जन्म की बात करती है,अतः इस पर अविश्वास होने या करने का प्रश्न नहीं है,प्रश्न है इस बार बार होते जा रहे जीवन चक्र से मुक्ति पाने का| पुनर्जन्म और उससे मुक्ति पर उठने वाले प्रश्नों के उत्तर भी गीता में ही है,चाहिए समय उसे पढ़ने का और गीता को जीवन में उतारने का|
                 क्रमश:
                   

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