Sunday, July 14, 2013

पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना|क्रमश:४ -माया|

                                            कल के ब्लॉग में हमने जाना कि शरीर के निर्माण की प्रक्रिया क्या होती है?उर्जा के साथ माया(material)का योग ही दृश्य का निर्माण करता है|क्योंकि उर्जा अदृश्य होती है,इसलिए हमें सिर्फ माया ही दृष्टिगोचर होती है|एक तरफ हम कहते है,इस संसार या ब्रह्माण्ड में उर्जा के सिवाय कुछ भी नहीं है,तो फिर यह माया कहाँ से आ गयी|इसलिए शरीर को समझने से पहले माया को समझना जरूरी होगा|
                                माया के बारे में भारतीय मनीषियों ने काफी कुछ लिखा है|सभी ने माया को असत् कहा है और उर्जा को सत्|गीता में भी यही वर्णित है|आखिर में अब विज्ञानं ने भी स्वीकार कर लिया है कि सत् सिर्फ और सिर्फ उर्जा ही है|भारतीय ऋषियों ने माया को उर्जा का स्थूल रूप कहा है|उर्जा का रूप अतिसूक्ष्म है|जब ऋषियों और वैज्ञानिको में इस बारे में कोई मत भिन्नता नहीं है,तो आम व्यक्ति को कैसे भिन्नता नज़र आती है|इसका भी एक महत्वपूर्ण कारण है|
                                 आधुनिक  विज्ञानं पश्चिम की देन है,जहाँ भोगवादी संस्कृति है|वहां स्थूल को ज्यादा महत्त्व मिला है|इसका स्पष्ट असर विज्ञानं पर देखा जा सकता है|वहां विज्ञानं ने भी स्थूल को केंद्र में रखते हुये अपनी यात्रा शुरू की|अगर आधुनिक विज्ञानं के इतिहास पर नजर डालेंगे तो स्पष्ट हो जायेगा|गैलीलियो से पहले कहा जाता था कि पृथ्वी स्थिर है और सूर्य उसकी परिक्रमा करता है|गैलीलियो ने स्पष्ट किया कि नहीं,सूर्य स्थिर है,पृथ्वी उसकी परिक्रमा करती है|फिर आज का विज्ञानं कहता है कि नहीं,सूर्य भी अपने ग्रहों को लेकर किसी और पिंड की परिक्रमा कर रहा है|सूर्य भी स्थिर नहीं है|एक और उदहारण देना चाहूँगा -पहले यह माना जाता था कि पदार्थ का सबसे छोटा हिस्सा अणु है,फिर उससे छोटा हिस्सा परमाणु कहलाया|फिर परमाणु के भी तीन छोटे हिस्से खोज लिए गए|अब उन हिस्सों के भी और छोटे हिस्से खोजे जा रहे है|यह सब स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा है|
                           आद्यात्मिकता भारत की देन है|यहाँ सूक्ष्म को ऋषियों ने काफी पहले खोज लिया था|उनकी खोज का केन्द्र सूक्ष्म था|उन्होंने सूक्ष्म से और सूक्ष्म को खोज लिया|उन्हें पूरे ब्रह्माण्ड के बारे में पता था|उन्हीं को आज विज्ञानं अपनी नयी खोज बताकर वाहवाही लूट रहा है|अतः दोनों का मानना लगभग समान है|अगर भारतीय मनीषी कुछ कह रहे है ,उस विषय पर अगर विज्ञानं मौन है तो इसका एक मात्र अर्थ यही है कि विज्ञानं अभी वहां तक पहुँच नहीं पाया है|
                                     गीता में भगवान श्री कृष्ण जोकि उर्जा के ही एक रूप है,कहते है-
                    यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति|
                    तस्याहं न प्रणश्यामि स च में न प्रणश्यति ||गीता६/३०||
अर्थात्,जो पुरुष सम्पूर्ण भूतों में सबके आत्म रूप मुझको ही व्यापक रूप से देखता है और सब भूतों को मुझके अंतर्गत देखता है,उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता |
                इसका अर्थ यही है कि सभी सभी जीवों और सभी स्थानों पर सिर्फ उर्जा प्रवाह ही देखें|तब ईश्वर ही उसको दिखाई देंगे और ईश्वर के लिए वह भी दृश्यमान होगा|
                  क्रमश:

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