Tuesday, July 9, 2013

पुनर्जन्म-अवधारणा या वास्तविकता |क्रमश: -१०

क्रमश:
                अब तक यह स्पष्ट हो चूका है कि पुनर्जन्म मात्र कोरी कल्पना नहीं बल्कि एक वास्तविकता है|भारतीय जीवन पद्धति की रग रग में यह भावना रक्त बन कर दौड रही है|यही कारण है कि जीवन के दौरान किये जाने वाले हर कार्य को यहाँ पाप और पुण्य के अनुसार ही देखा जाता है|आधुनिक भोगवादी संस्कृति को धीरे धीरे आत्मसात करते जाने के कारण कर्मो को आजकल इतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है|फिर भी कोई अति दुष्कृत्य करने से पहले सोचने को मजबूर जरूर होता है|वर्तमान जन्म में जो कार्य किये जाते है, उसी अनुसार उसका भविष्य तय होता है|गीता में भगवान अर्जुन को इसी प्रकार समझाते है|वे कहते हैं---
                           यान्ति     देवव्रता   देवान्पित्रि न्यान्ति     पितृव्रता:|
                           भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोSपि माम्||गीता ९/२५||
अर्थात् देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते है,पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं,भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होतें हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको प्राप्त होते हैं|इसलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता|
            भगवान का पूजन से आशय किये जाने वाले कार्यों से है ,ना कि पूजा जैसे कर्मकांडों से|देवत्व  वाले कर्मों के करने से देवलोक,माता पिता के सेवाकर्म से पितृ लोक,भूतों यानि इस पृथ्वी पर जीवित सभी प्राणियों के लिए किये गए कर्मों से पृथ्वीलोक और ईश्वर के निमित किये गए कर्मों से ईश्वर को यानि मोक्ष को प्राप्त होते हैं|अतः स्पष्ट है कि केवल ईश्वर के निमित किये कार्यों से ही पुनर्जन्म नहीं होता हैदेवलोक की प्राप्ति के बाद पुण्यों  का जब पूर्णरूपेण क्षरण हो जाता है तो पृथ्वीलोक में मानव के रूप में जन्म लेना होता है|यही स्थिति पितृलोक को प्राप्त हुये की होती है,अंतर केवल इतना ही है कि इसमे पुनर्जन्म देवलोक की तुलना में जल्दी होता है|दोनों ही स्थितियों में पुनर्जन्म मानव के रूप में ही होता है|तीसरी स्थिति में पुनर्जन्म किसी भी योनि में हो सकता है जबकि अंतिम स्थिति में पुनर्जन्म नहीं होता है|इसी बात को भगवान और स्पष्ट करते हुये कहते हैं---
                            आब्रह्मभुवानालोका:पुनरावर्तिनोSर्जुन |
                            मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ||८/१६||
अर्थात्, हे अर्जुन!ब्रह्मलोकपर्यंत सब लोक पुनरावर्ती हैं;परन्तु हे कुन्तीपुत्र !मुझ को प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता ;क्योंकि मैं कालातीत हूँ और ये सब ब्रह्मादिक लोक काल के द्वारा सीमित होने से अनित्य है|
           उपरोक्त श्लोक से भी स्पष्ट हो जाता है कि एक मात्र ईश्वर प्राप्ति के बाद ही इस आवागमन और पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है|अन्यथा अपने जन्म में किये कर्मों के अनुसार बार बार इस पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ेगा,चाहे किसी भी योनि में आना पड़े|

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