क्रमश:
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्|
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ||गीता८/६||
अर्थात्,हे कुन्तीपुत्र अर्जुन !यह मनुष्य अंतकाल में जिस जिस भी भाव का स्मरणकरता हुआ शरीर का त्याग करता है,उस उसको ही प्राप्त होता है;क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है|
उपरोक्त श्लोक के माध्यम से भगवान अर्जुन को समझते है कि जो व्यक्ति मरने से पूर्व जैसा सोचता है,उसको अगले जन्म में उसी प्रकार का वातावरण उपलब्ध होता है जहाँ वह अपनी सोच को पूर्णत में बदल सके|उदाहरणार्थ अगर कोई व्यक्ति मरते हुये अपने पुत्र को याद करता है,तो पुत्र के घर में ही पुनः पैदा होने की सम्भावना प्रबल होती है|हालाँकि पुनर्जन्म के लिए मात्र यही एक कारण नहीं होता है,परन्तु अन्य कारण भी इसमे अपना योगदान देते है|कोई भी व्यक्ति मरते हुये सबसे ज्यादा उन्ही भावों में भ्रमण करता है जो जीवन में उसके लिए अत्यधिक मोह का कारण रहे हों|मरते हुये चाह कर भी कोई व्यक्ति इन भावों के स्मरण से अपने आप को अलग नहीं कर सकता|
पुनर्जन्म के जो दो उदहारण पूर्व में दिए गए है,आइये इस श्लोक से उनका विश्लेषण करते है|पहले उदहारण में आरिफ के बारे में जो जानकारी मिली उससे पता चलता है कि उसका लगाव अपनी अम्मी के प्रति अत्यधिक था|उसने अपनी अन्तिम साँस अपनी माँ की गोद में ही ली थी|लगभग एक साल बाद उसका जन्म उसी माँ की कोख से रजिया नाम की लड़की के रूप में होता है|
दूसरे उदहारण में जया जगत को लेने रेल्वेस्टेशन जाती है,जगत उस ट्रेन से आता नहीं है,वह उसकी यादों में खोई घर के लिए चल पड़ती है और रास्ते में एक जीप से वह टकरा जाती है|देर रात उसकी मृत्यु अस्पताल में जगत को याद करते हुये हो जाती है|जगत के लिए जया का पुनर्जन्म होना स्वाभाविक था,क्योंकि मरते वक्त वह जगत के भाव से भावित थी|सम्भावना के अनुरूप ही उसका पुनर्जन्म नोहर के पास ही भादरा में होता है और परिस्थितियां ऐसी पैदा हो जाती है कि जया जो कि अब सरिता है की मुलाकात आखिर में जगत से हो ही जाती है|आज सरिता जगत के सामने उसी स्थिति में है जैसी स्थिति जया के साथ मृत्यु पूर्व थी|सरिता की शादी जिस व्यक्ति से या जगत की शादी जिस महिला से हुई है उनका भी सरिता के और जगत के पूर्व जन्म से कोई ना कोई सम्बन्ध जरूर है|
अब सरिता के सम्बन्ध में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इस जन्म में जगत से उसका क्या सम्बन्ध रहेगा?मरने से पूर्व जया ,जगत से केवल एक बार मिलना चाहती थी,वह उसने सरिता के रूप में आकर संभव बना लिया है|आगे उनका क्या होगा,यह इस जन्म में एक दूसरे के प्रति व्यवहार ,चाहत और एक दूसरे के प्रति समर्पण कितना पैदा होता है,उस पर निर्भर करेगा|हो सकता है उनके पूर्ण मिलन के लिए उनको और कई जन्मों तक प्रतीक्षा करनी पड़े|अगर इस जन्म में वे अपने जीवन साथियों से संतुष्ट रहे तो अगले जन्मों में उनके बीच की दूरियां भी बढती जायेगी|
गीता के आधार पर अब यह स्पष्ट है की पुनर्जन्म मात्र एक अवधारणा नहीं है बल्कि एक वास्तविकता है|जरूरत है कि पुनर्जन्म में अगर किसी को पूर्वजन्म की यादें ताज़ा हो,उस पर और ज्यादा अध्ययन किया जाये ,जिससे इस बारे में पूर्वाग्रह दूर हो सके|
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्|
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ||गीता८/६||
अर्थात्,हे कुन्तीपुत्र अर्जुन !यह मनुष्य अंतकाल में जिस जिस भी भाव का स्मरणकरता हुआ शरीर का त्याग करता है,उस उसको ही प्राप्त होता है;क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है|
उपरोक्त श्लोक के माध्यम से भगवान अर्जुन को समझते है कि जो व्यक्ति मरने से पूर्व जैसा सोचता है,उसको अगले जन्म में उसी प्रकार का वातावरण उपलब्ध होता है जहाँ वह अपनी सोच को पूर्णत में बदल सके|उदाहरणार्थ अगर कोई व्यक्ति मरते हुये अपने पुत्र को याद करता है,तो पुत्र के घर में ही पुनः पैदा होने की सम्भावना प्रबल होती है|हालाँकि पुनर्जन्म के लिए मात्र यही एक कारण नहीं होता है,परन्तु अन्य कारण भी इसमे अपना योगदान देते है|कोई भी व्यक्ति मरते हुये सबसे ज्यादा उन्ही भावों में भ्रमण करता है जो जीवन में उसके लिए अत्यधिक मोह का कारण रहे हों|मरते हुये चाह कर भी कोई व्यक्ति इन भावों के स्मरण से अपने आप को अलग नहीं कर सकता|
पुनर्जन्म के जो दो उदहारण पूर्व में दिए गए है,आइये इस श्लोक से उनका विश्लेषण करते है|पहले उदहारण में आरिफ के बारे में जो जानकारी मिली उससे पता चलता है कि उसका लगाव अपनी अम्मी के प्रति अत्यधिक था|उसने अपनी अन्तिम साँस अपनी माँ की गोद में ही ली थी|लगभग एक साल बाद उसका जन्म उसी माँ की कोख से रजिया नाम की लड़की के रूप में होता है|
दूसरे उदहारण में जया जगत को लेने रेल्वेस्टेशन जाती है,जगत उस ट्रेन से आता नहीं है,वह उसकी यादों में खोई घर के लिए चल पड़ती है और रास्ते में एक जीप से वह टकरा जाती है|देर रात उसकी मृत्यु अस्पताल में जगत को याद करते हुये हो जाती है|जगत के लिए जया का पुनर्जन्म होना स्वाभाविक था,क्योंकि मरते वक्त वह जगत के भाव से भावित थी|सम्भावना के अनुरूप ही उसका पुनर्जन्म नोहर के पास ही भादरा में होता है और परिस्थितियां ऐसी पैदा हो जाती है कि जया जो कि अब सरिता है की मुलाकात आखिर में जगत से हो ही जाती है|आज सरिता जगत के सामने उसी स्थिति में है जैसी स्थिति जया के साथ मृत्यु पूर्व थी|सरिता की शादी जिस व्यक्ति से या जगत की शादी जिस महिला से हुई है उनका भी सरिता के और जगत के पूर्व जन्म से कोई ना कोई सम्बन्ध जरूर है|
अब सरिता के सम्बन्ध में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इस जन्म में जगत से उसका क्या सम्बन्ध रहेगा?मरने से पूर्व जया ,जगत से केवल एक बार मिलना चाहती थी,वह उसने सरिता के रूप में आकर संभव बना लिया है|आगे उनका क्या होगा,यह इस जन्म में एक दूसरे के प्रति व्यवहार ,चाहत और एक दूसरे के प्रति समर्पण कितना पैदा होता है,उस पर निर्भर करेगा|हो सकता है उनके पूर्ण मिलन के लिए उनको और कई जन्मों तक प्रतीक्षा करनी पड़े|अगर इस जन्म में वे अपने जीवन साथियों से संतुष्ट रहे तो अगले जन्मों में उनके बीच की दूरियां भी बढती जायेगी|
गीता के आधार पर अब यह स्पष्ट है की पुनर्जन्म मात्र एक अवधारणा नहीं है बल्कि एक वास्तविकता है|जरूरत है कि पुनर्जन्म में अगर किसी को पूर्वजन्म की यादें ताज़ा हो,उस पर और ज्यादा अध्ययन किया जाये ,जिससे इस बारे में पूर्वाग्रह दूर हो सके|
kya Aatma very next moment Sharir nahi badal leti hai ek sharir ka tyaag karane ke baad ?? Or
ReplyDeleteagar nahi badalti hai toh vo kya rebirth ke liye wait karati hai ??? or
agar esa hai toh kya Aatma bhatakti rehati hai apane rebirth ke liye ??
jesa ki Arif ke case me hua tha , Razia ka birth approx ek saal baad me hua hai to ek saal tak Arif ki atma ko Shanti/Mukti nahi mili .
यह भी हो सकता है कि उसकी आत्मा ने एक साल किसी और जीव के शरीर में गुजारी हो
ReplyDelete