Saturday, July 13, 2013

पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना|क्रमश:३ -उर्जा

                                  आज सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हमें जो कुछ भी दृष्टिगोचर हो रहा है,वह वास्तव में है क्या? सर्वप्रथम हमें यह जानना जरूरी है|इसको जाने बिना हम अपने आप को कभी भी न जान और समझ पाएंगे|केवल मानव प्रजाति ही इस संसार में ऐसी है जिसे ईश्वर ने सोचने और समझने की क्षमता दी है|बाकी सब प्रजातियां तो पूर्व मानव जन्म में किये गए कर्मों के अनुसार उनका फल भोगने के लिए ही बनी है|अन्य प्रजातियों को कभी यह नहीं सोचना होता है कि उग्रवाद क्या है,प्राकृतिक आपदा कैसे आती है,बीमारियों का इलाज क्या है,वह कहाँ से आया है,कहाँ उसे जाना है?मानव प्रजाति इसके ठीक विपरीत है|प्रतिदिन उसके दिमाग में सवाल उठते है,और वह फिर उनका हल ढूँढने में जुट जाता है|इसी प्रकार का प्रश्न यह भी है|
                                 ब्रह्माण्ड की उत्पति का कारण वैज्ञानिक लोग उर्जा(Energy) को मानते है| सनातन धर्मग्रंथों में इसको उर्जा,शक्ति,बल आदि कई नामों से संबोधित किया गया है|चारों और जो भी दृश्य है या अदृश्य है सभी उर्जा के ही रूप है|विज्ञानं के अनुसार उर्जा ना तो पैदा की जा सकती है ना ही नष्ट की जा सकती है,केवल उसका स्वरुप परिवर्तित किया जा सकता है या हो सकता है|मुख्य रूप से उर्जा के दो प्रकार है-स्थितिज उर्जा (static energy) और गतिज उर्जा (kinetic energy)|दोनों उर्जा के ही रूप हैं और एक दूसरे में परिवर्तित होते रहते है या किये जा सकते है|सूक्ष्म रूप से देखा जाये तो उर्जा के अन्य रूप भी है जैसे-chemical,electric,magnetic,radisant,electromagnetic,nuclear,ionization,sound,gravitational,thermal,intrinsic etc.
परन्तु इन उर्जा के रूपों को हम दोनों में से किसी एक मुख्य स्वरुप में रख सकते है|
                                 यही उर्जा समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त है|जो हमें दिखाई दे रहा है वह भी उर्जा है और जो अदृश्य है वह भी उर्जा है|उर्जा के बिना इस ब्रह्माण्ड में कुछ भी संभव नहीं है|प्रत्येक जीव में मुख्यत तीन तत्व होते है-शरीर,मन और आत्मा|शरीर उर्जा का दिखाई देने वाला रूप है जबकि मन और आत्मा उर्जा के अदृश्य रूप है|लेकिन है सब उर्जा ही|यह उर्जा शरीर का कैसे निर्माण करती है तथा कैसे यह मन और आत्मा के रूप में होती है,विज्ञान जानने को प्रयत्नशील है|
             उर्जा को सनातन धर्म में मुख्य स्थान दिया गया है और इसी को ईश्वर माना गया है|आदि काल से हिंदू लोग उर्जा की पूजा शक्ति के रूप में करते आये है|सनातन धर्म मे भी इस संसार में उर्जा को ही सब कुछ माना गया है,और आज विज्ञानं भी मान चूका है कि उर्जा ही सब कुछ है|जो भी यहाँ घटित होता है,दिखाई देता है सब उर्जा ही है, उर्जा के सिवाय कुछ भी नहीं है|अतः दोनों में इसे स्वीकार करने को लेकर कोई मतभेद नहीं है|वैसे उर्जा बहुत विशाल विषय है,मैंने अल्प रूप से समझाने की कोशिश की है|उर्जा को समझ लेने पर शरीर ,मन और आत्मा को आसानी से समझ पाएंगे|
                         उर्जा के द्वारा शरीर का निर्माण कैसे होता है?बड़ा ही रोचक विषय है|
गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते है--
                                    अजोSपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोSपि सन् |
                                    प्रकृतिं    स्वामधिष्ठाय    सम्भवाम्यात्मयया ||गीता४/६||
अर्थात्,मै अजन्मा और अविनाशी स्वरुप व समस्त प्राणियों का ईश्वर होते हुये भी अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योग माया से प्रकट होता हूँ|
                   यहाँ भगवान ने अपने आप को अजन्मा,अविनाशी स्वरूप बताया है|यही स्वरूप उर्जा का वैज्ञानिक बताते है|प्रकृति को अपने अधीन करते हुये योगमाया से भगवान यहाँ अपना शरीर धारण करते है|योगमाया =योग(Total)+माया(Material)|अर्थात्उर्जा (गतिज) जो कि भगवान स्वयं है,प्रकृति को,(स्थितिज उर्जा)को अपने अधीन करते हुये माया (भौतिक पदार्थ  यानिMaterial )का अपने साथ योग (Total)करते है तब इस संसार में भगवान शरीर धारण करते है|यही प्रक्रिया आम रूप से शरीर धारण की ही  है|
   अतः      शरीर=उर्जा+भौतिक पदार्थ|  प्रकृति के अधीन |
आगे इसी पर चर्चा करेंगे|      क्रमश:

2 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया तरह से समझाया गया तथ्य जिससे ये सिद्ध होता है कि कण कण में भगवान् है और हर नर ही नारायण का स्वरूप है |

    धन्यवाद डाक्टर साहब

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    1. आदरणीय पंकजजी,
      यह मेरा सौभाग्य है कि मेरा यह लेख आपको अच्ग्छा लगा | इसी विषय पर मेरी पुस्तक "पुनर्जन्म और विज्ञान" प्रेस में प्रकाशन के लिए है और सम्भावना है कि आगामी जन्माष्टमी पर यह आपके हाथों में होगी |यह विषय एक ऐसा विषय है ,जिस पर सदैव ही पक्ष और विपक्ष में चर्चा होती रहती है |मेरा उद्देश्य अपनी युवा पीढ़ी को सनातनधर्म शास्त्रों की तरफ आकर्षित करना है | मैं अपने साथियों को इस पुस्तक के माध्यम से यह सन्देश देना चाहता हूँ कि हमारे शास्त्रों में समस्त विज्ञान भरा पड़ा है |जरा पढ़ कर देखें |अभी भी इन धर्म शास्त्रों में ऐसी अनेकों बातें भरी पड़ी है,जो विज्ञान की पहुँच से कोसों दूर है | शेष तो आप पुस्तक पढ़कर ही जान पाएंगे |मैं आप तक यह पुस्तक अवश्य ही पहुँचाने का प्रयास करूँगा क्योंकि मैं जानता हूँ कि आपका और मेरा उद्देश्य एक ही है |
      धन्यवाद एवं आभार |

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