Monday, July 15, 2013

पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना|क्रमश:५ -माया-२

          क्रमश:
                     कबीर ने माया का वर्णन बड़े ही सुन्दर तरीके से किया है|वे कहते हैं--
                                   माया छाया एकसी,विरला जाने कोय|
                                   भागत के पिछे पड़े,आगे सन्मुख होय||
     यह माया और छाया की प्रकृति एक ही है| अगर आप दोनों  को पकड़ने की कोशिश करेंगे तो ये आपसे दूर भागेगी,और अगर आप इनसे दूर भागने की कोशिश करोगे तो यह आपका पीछा करेगी|अतः ना तो इससे दूर भागो और न ही इनको पाने की लालसा रखो|
               अब कल की बात को आगे बढ़ाते है|माया का भी मूल आधार उर्जा ही है|उर्जा का स्थूल रूप|इस स्थूल रूप को उर्जा किस प्रकार हासिल करती है,यह जानना  ही तत्व को जानना है|यही ज्ञान ही तात्विक ज्ञान है|माया मतलब पदार्थ|पदार्थ यानि उर्जा का दिखाई देने वाला रूप|किसी भी पदार्थ की छोटी से छोटी इकाई-परमाणु होता है ,जो कि उर्जा का एक अदृश्य रूप है|इस अदृश्य से दृश्य होना ही ईश्वर द्वारा माया का निर्माण है|विज्ञानं ने दृश्य पदार्थ(material) से  परमाणु (Atom) तक की यात्रा की है,जबकि अध्यात्म ने परमाणु से पदार्थ की|दोनों में केवल खोज की दिशा का यानि जानने के तरीके का ही फर्क है|उपलब्धियां दोनों की समान है|उर्जा से पदार्थ की यात्रा इस प्रकार होती है---
  पदार्थ की इकाई(Unit)परमाणु(Atom), परमाणुओं से अणु(Molecule),अणुओं से तत्व(Element) तथा तत्वों के मिलाने से यौगिक(Compound) और कई यौगिकों के मिलने से बनता है , पदार्थ अर्थात् माया(Material)|
    यह है अदृश्य से दृश्य की यात्रा|पदार्थ असत् है, क्योंकि यह कभी भी समाप्त हो सकता है|उर्जा, ( पदार्थ की इकाई )सत् है ,यानि कभी भी समाप्त न होने वाली|इसीलिए कबीर कहते हैं--
               माया महाठगिनी हम जानी|
       कबीर का यही ज्ञान ही असली तत्व ज्ञान है|
                 संसार में चारो और जो भी दृश्यमान है ,सब पदार्थ या पदार्थ के रूप हैं ,और परिवर्तनशील है|कबीर ने छाया इसलिए कहा है कि व्यक्ति की छाया हमेशा  परिवर्तित होती रहती है|जहाँ स्थायित्व नहीं है,वो सत् कैसे हो सकता है?और जो सत् है वह दृश्यमान नहीं है|यही तत्व की बात है|गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को तत्व की बात इसी तरह से समझाते हुए कहते हैं--
                                  जन्म कर्म च में दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः |
                                 त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोSर्जुन||गीता४/९||
अर्थात्,हे अर्जुन!मेरे जन्म और कर्म दिव्य है,इस प्रकार जो मनुष्य इसको तत्व से जान लेता है,वह इस भौतिक शरीर को त्यागकर फिर जन्म (पुनर्जन्म) को प्राप्त नहीं होता ,बल्कि मुझे ही प्राप्त होता है|
                इस प्रकार अगर कोई व्यक्ति तत्व की बात समझ लेता है,तो फिर वह जन्म-मरण को भी अच्छी तरह समझ जाता है|अब वह इस संसार में,इस जीवन को कैसे जिया जाये,समझकर बेहतर तरीके से जीता है|तब वह मृत्यु से नहीं डरेगा,बल्कि उसका स्वागत करेगा|इसी को जीते जी मुक्त होना कहते है|तत्व को जानकर संसार से अपने आप को अलग मान लेना ही ईश्वर को पा लेना है|जो जीते हुये मुक्त नहीं हो सके,मरने के बाद मुक्ति मिलना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है|यही तात्विक बात है|
                               माया के अंतर्गत ही शरीर आता है क्योंकि उसका निर्माण भी भौतिक पदार्थों से ही संभव है|बिना माया को समझे शरीर को समझना असंभव है|मन भी माया का एक भाग है,लेकिन उसको समझने से पहले शरीर को समझना आवश्यक है|कल से इसी पर चर्चा करेंगे|
                क्रमश:

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