Sunday, June 30, 2013

पुनर्जन्म -अवधारणा या वास्तविकता |क्रमश:भाग-३

        पिछले ब्लॉग में दिए गए उदहारण से गीता के २रे अध्याय के १२ वे श्लोक के आधार पर पुनर्जन्म की पुष्टि होती है|इसी के क्रम में एक अति संवेदनशील उदहारण और प्रस्तुत कर रहा हूँ|इस केस ने मेरे को सबसे ज्यादा उद्वेलित कर रखा है|दोनों व्यक्तियों की भावनाओं की कद्र करते हुए सब कुछ गोपनीय रखते हुए यह घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ|इसमे नाम ,स्थान और व्यवसाय के अलावा सब सत्य है|
           वर्ष १९७३ में जगत अपने गांव नोहर से कोचिंग के लिए जयपुर जाता है|उसके परिवार की आर्थिक स्थिती बेहद खराब होने के कारण वह अपने एक रिश्तेदार के यहाँ रूकता है|कोचिंग के दौरान उसकी मुलाकात एक पंजाबी लड़की से होती है|वह भी उसी संसथान से कोचिंग कर रही होती है|एक सप्ताह तक दोनों के बीच परिचय से ज्यादा कुछ भी नहीं होता है|लड़की का नाम जया है|लड़की का पिता सरकारी सेवा में है और शासन सचिवालय में नियुक्त है|दोपहर में लड़की अनुभव करती है कि जगत खाना नहीं खाता है,जबकि बाकी सभी घर से लाया खाना खा रहे होते है|लड़की सकुचाते हुए उसे अपने साथ खाना खिलाती है|इस प्रकार दोनों की दुरी निकटता में बदल जाती है|जया उसे अपने घर के पास ही छोटा कमरा किराये पर दिला देती है|जरूरत के अनुसार उसे किताबे लाकर देती है|रोजाना कोचिंग के लिए अपनी लूना पर ले जाती है|बातों बातों में दो महीने की कोचिंग पूरी हो जाती है|जगत अपने गांव लौट आता है|जया का यह प्रेम व्यवहार उसे अपनी माली हालत के कारण सहानुभूति लगता है|जया से फिर संपर्क उस दौर में आसान भी नहीं था|
                           दोनों राजस्थान की पी.एम्.टी.देते है|कुछ समय बाद परिणाम आता है|जगत का चयन नहीं होता है,जबकि जया चुन ली जाती है|जया को अजमेर में दाखिला मिल जाता है|जया के पापा उसके चयन पर पार्टी का आयोजन करते है|जया पत्र लिख कर जगत को भी बुला लेती है|पार्टी के बाद जगत को अपनी भावना से अवगत कराती है कि उसके बिना वह नहीं रह सकेगी|वह जगत को फिर से कोचिंग लेने को कहती है|उसे टॉप करने को कहती है,जिससे उसे जयपुर में दाखिला मिल सके|फिर अगले साल वह भी जयपुर ट्रान्सफर करा लेगी,जिससे दोनों साथ साथ रह सके|
     जगत फिर मई में कोचिंग लेने जयपुर आता है और इधर जाया भी गर्मी कि छुट्टी में जयपुर आती है| वह जगत का पूरा ध्यान रखती है,जगत भी मन लगाकर पूरी मेहनत करता है|गर्मी की छुट्टियाँ खत्म होते ही दोनों वापिस लौट जाते है|इसी दौरान जगत १९७४ की पी.एम.टी.देता है|दो महीने बाद परिणाम आता है|वह प्रथम ३० में अपना स्थान बना लेता है|जया अब निश्चिंत हो जाती है कि जगत को अब जयपुर में प्रवेश मिल जायेगा और वह भी अजमेर से जयपुर ट्रान्सफर ले लेगी|     क्रमश:

1 comment:

  1. quite interesting case,waiting for the next part .please post asap !!!

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