Friday, June 28, 2013

पुनर्जन्म ----अवधारणा या वास्तविकता| क्रमश: भाग -२

             पिछले ब्लॉग में स्पष्ट करने की कोशिश की थी कि पुनर्जन्म की अवधारणा भारतीय जनमानस में मान्यता धारण किये हुए है|चाहे कितने ही पश्चिमी परिवेश को जीवन में उतार रहे हो,कई मान्यताएं छूटती जा रही हो,पुनर्जन्म की धारना अभी भी कहीं गहराई में सांसे ले रही है|गीता यहाँ के जनमानस में गहराई तक बैठी
हुई है, चाहे किसी ने इसका अध्ययन नहीं किया हो|आज भी मृत्यु पूर्व गीता का पाठ सुनाना यहाँ ग्रामीण क्षेत्र में एक परम्परा बनी हुई है|
               गीता में भगवान कहते है----
           न त्वेवाहं जातु नासम् न त्वं नेमे जनाधिपाः |
           न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ||गीता 2/12||
अर्थात  न तो ऐसा ही  है कि मैं किसी काल में नहीं था,तू नहीं था ,ये राजा लोग नहीं थे और न ही ऐसा है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगें|
            यह गीता में भगवान के श्रीमुख से निकला चौथा श्लोक है|यह श्लोक गीता का मूल आधार है|इसी पर जो जो शंकाएँ अर्जुन करता गया,भगवान निवारण करते गए और इस प्रकार संसार को एक शिक्षा का बड़ा स्रोत मिल गया|पुनर्जन्म की अवधारणा का आधार यही है|अगर सब लोग सब काल में रहते है तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप स्वयं एक शरीर नहीं है|क्योंकि शरीर तो एक निश्चित अवधि के बाद मर जाता है|अब प्रश्न यही सामने आता है कि क्या  है जो हर काल में रहता है और उसी से आप जाने जाते है|उसको भारतीय मनीषियों ने चेतना,ज्योति आत्मा आदि नामों से वर्णित किया है|प्रचलित शब्द आत्मा है|यही आत्मा ही नश्वर है और हर काल में बनी रहती है|
              पुनर्जन्म को समझने से पहले इस के कुछ उदाहरण देना चाहूँगा,जो पुनर्जन्म की अवधारणा को मजबूती प्रदान करते हुए उसको मान्यता देते प्रतीत होंगें|
           भारत हॉस्पिटल, सुजानगढ़ में १९९६-९७ के एक दिन मेरे कक्ष में एक मुस्लिम महिला अपने बच्चे को सर्दी जुकाम के इलाज हेतु लेकर आयी|मैंने बच्चे की जाँच की और दवा लिखने से पूर्व उसका नाम पूछा|माँ ने उसका नाम रजिया बताया|तत्काल बच्ची ने परिवाद करते हुए अपना नाम आरिफ बताया|मैंने पुनः पूछा|हर बार बच्ची ने अपना नाम आरिफ ही बताया|आखिर में मैंने उसकी माँ को विश्वास में लेकर हकीकत जानी तो मैं आश्चर्य चकित रह गया|माँ ने बताया-"मेरे १९९२ में एक लड़का जो उस वक्त करीब चार साल का था,छत से गिर कर मर गया|उसके मरने के एक साल बाद इस बच्ची का जन्म हुआ|जब से उसने बोलना शुरू किया, अपने आप को आरिफ ही बताती है|हमने कई मुल्ला मौलवियों से इलाज कराया,कोई फायदा नहीं हुआ|"
                 इसके बाद कई बार वह बच्ची को मेरे पास लाई|हर बार वह अपना नाम आरिफ ही बताती थी|इस दौरान मैने अपने रिकॉर्ड से आरिफ के बारे में सारी  जानकारी जूटा ली थी|एक डॉक्टर के पास इसका कोई जवाब नहीं था कि ऐसा कैसे हो सकता है?उस बच्ची को सबकुछ १० वर्ष की उम्र तक आरिफ की जिंदगी की बातें याद रही|फिर धीरे धीरे वह अपने पूर्वजन्म की सब बातें भूल गयी|आज रजिया खुद एक बच्चे की माँ है और अपने बच्चे को दिखाने मेरे पास आती रहती है|मैं अभी भी उसे आरिफ कहकर पुकारता हूँ,वह बिना कुछ समझे हंसकर रह जाती है|
             इस केस ने मेरे को पुनर्जन्म के बारे में और ज्यादा जानने के लिए प्रेरित किया|एक शिशु रोग डॉक्टर होने के कारण मेरे को यह मौका भी मिला की शरीर में आत्मा के प्रवेश के बारे में भी कुछ शोध कर सकूँ|यह सब मैं आपके साथ समय समय पर साझा करता रहूँगा|..........क्रमश :
              

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