भारत भूमि संसार में एक मात्र ऐसी जगह है जहाँ हर युग में कई महान आध्यात्मिक महापुरूषों ने जन्म लिया है|सभी ने अपने अपने विवेकानुसार ईश्वर ,प्रकृति और संसार की व्याख्या की है|इनमे वेद व्यास ,महर्षि वाल्मीकि,आदिशंकरचार्य कबीर एवं समकालीन ,रामकृष्ण परमहंस,स्वामी विवेकानंद से लेकर आज तक के महापुरुष शामिल है|किसी महापुरुष ने इस संसार की आलोचना नहीं की है|आज चारों और संसार की आलोचना के स्वर सुने दे रहे है|जब की किसी भी भारतीय मनीषी ने संसार को गलत नहीं माना |
आम व्यक्ति हमेशा सेकिसी भी समस्या से दूर भागता रहा है|और सबसे बड़ी समस्या यह है की इस संसार को वह हर समस्या का जनक मानता है|यहीं पर यह भ्रान्ति पैदा होती है कि ईश्वर ही सत्य है और संसार मिथ्या है|यह एक बहस का विषय है कि फिर संसार का अस्तित्व ही क्यों है?
गीता में संसार के सृजन का वर्णन है|जब ईश्वर ने ही संसार की रचना की है तो फिर यह मिथ्या कैसे हो सकता है ?यह मात्र हमारी सोच ही है|बिना संसार में आये ना तो आज तक कोई ईश्वर को प्राप्त कर सका है और ना ही कोई कार्य ,जो कि ईश्वरीय हो सकता हो|यहाँ तक कि असुरों के विनाश और इस भूमि का भार उतारने के लिए परमात्मा को भी संसार में आना पड़ता है|
जब ईश्वर द्वारा रचित संसार में ईश्वर ही अवतार लेकर सब कार्य करते है तो यह संसार मिथ्या कैसे हो सकता है?अत: संसार और प्रकृति ईश्वर द्वारा सृजित उसका ही एक रूप है|इससे डरकर भागे नहीं|संसार में ही बने रहते हुए संसार को अपने भीतर प्रवेश न करने दे| यही तथ्यपरक बात है|
आम व्यक्ति हमेशा सेकिसी भी समस्या से दूर भागता रहा है|और सबसे बड़ी समस्या यह है की इस संसार को वह हर समस्या का जनक मानता है|यहीं पर यह भ्रान्ति पैदा होती है कि ईश्वर ही सत्य है और संसार मिथ्या है|यह एक बहस का विषय है कि फिर संसार का अस्तित्व ही क्यों है?
गीता में संसार के सृजन का वर्णन है|जब ईश्वर ने ही संसार की रचना की है तो फिर यह मिथ्या कैसे हो सकता है ?यह मात्र हमारी सोच ही है|बिना संसार में आये ना तो आज तक कोई ईश्वर को प्राप्त कर सका है और ना ही कोई कार्य ,जो कि ईश्वरीय हो सकता हो|यहाँ तक कि असुरों के विनाश और इस भूमि का भार उतारने के लिए परमात्मा को भी संसार में आना पड़ता है|
जब ईश्वर द्वारा रचित संसार में ईश्वर ही अवतार लेकर सब कार्य करते है तो यह संसार मिथ्या कैसे हो सकता है?अत: संसार और प्रकृति ईश्वर द्वारा सृजित उसका ही एक रूप है|इससे डरकर भागे नहीं|संसार में ही बने रहते हुए संसार को अपने भीतर प्रवेश न करने दे| यही तथ्यपरक बात है|
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