Wednesday, March 7, 2018

गीता-ज्ञान की सार्थकता - 5


गीता-ज्ञान की सार्थकता – 5
                                      सभी सजीव प्राणियों में एक बात की समानता अवश्य होती है-भूख की | सभी जीवित प्राणियों को भूख लगती ही है, चाहे वह चर हो अथवा अचर | भूख पर विजय पाने के लिए आहार (Food) की आवश्यकता होती है | आहार पाने के लिए ही पेड़-पौधों में वृद्धि होती है | उसकी जड़ें (Roots) भूमि की गहराई को नापते हुए भोजन के लिए जल व आवश्यक तत्व जुटाती है | तना (Stem) बढ़कर आकाश की ऊँचाइयों को छूने लगता है, जिससे पत्तियों (Leaves) को अधिक से अधिक सूर्य का प्रकाश (Sunlight) उपलब्ध हो सके | सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में भोजन का निर्माण जल और अन्य आवश्यक तत्वों से किया जाता है, जिसे प्रकाश-संश्लेषण (photosynthesis) कहा जाता है |               
             चर प्राणियों में पेड़-पौधों की तरह स्वयं के द्वारा भोजन बनाने की सुविधा परमात्मा ने प्रदान नहीं की है | अतः उन्हें भोजन प्राप्त करने के लिए अपने स्तर पर प्रयास करना पड़ता है | किसी भी प्रकार से अपनी क्षुधा शांत करने के लिए भोजन प्राप्त करने की इच्छा चर सजीव को हिंसक (Violent) बना देती है | हिंसा (Violence) चर प्राणी को भोजन तो प्रदान करा देती है परन्तु साथ ही साथ स्वयं के द्वारा की गयी उस हिंसा के कारण वह भयग्रस्त (Frightened) भी हो जाता है क्योंकि वह समझ जाता है कि जिस प्रकार उसने हिंसा के माध्यम से भोजन प्राप्त किया है, एक दिन वह भी इसी प्रकार अन्य किसी भूखे प्राणी का भोजन बन सकता है |
               भूख के कारण भय (Fear) पैदा होता है | भय पैदा होने का मुख्य कारण होता है मृत्यु, स्वयं का अस्तित्व मिट जाने का भय | यह भय दो कारणों से होता है-निराहार (Starvation) रहने से हो सकने वाली संभावित मृत्यु से तथा किसी निराहारी का आहार बन जाने की सम्भावना से | दोनों ही परिस्थितियों के कारण से प्राणियों में असुरक्षा (Insecurity) की भावना भी पैदा हो जाती है | यह भय (Fear) इसलिए भी पैदा होता है क्योंकि वह यह सोचता है कि जिस प्रकार उसने शिकारी (Predator) बनकर किसी अन्य प्राणी का शिकार किया है, उसी प्रकार वह स्वयं भी कभी न कभी किसी का शिकार (Prey) भी बन सकता है | इस प्रकार उसकी प्रजाति का उसके परिवार का एक न एक दिन विलुप्त होना संभव हो सकता है  | इसकी प्रतिक्रिया में वह स्वयं की प्रजाति और परिवार को संसार में बनाये रखने के लिए संतान उत्पत्ति में रत हो जाता है | जो प्राणी सबसे अधिक शिकार बनता है, प्रकृति (Nature)  के इस नियम के अनुसार उसमें संतान उत्पत्ति की दर (Rate) भी सर्वाधिक होती है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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