Friday, March 16, 2018

गीता-ज्ञान की सार्थकता - 14


गीता-ज्ञान की सार्थकता – 14  
              परमात्मा होने की राह पर आगे बढ़ने का अर्थ परमात्मा हो जाना नहीं है | आध्यात्मिकता की राह बड़ी फिसलन भरी राह है | यहां पर कदम-कदम पर फिसल जाने का खतरा बना रहता है | एक सांसारिक व्यक्ति को जिन संकटों का सामना अपने जीवन में करना पड़ता है, उससे कहीं अधिक संकट आध्यात्मिकता की राह पर चलने से व्यक्ति के समक्ष उपस्थित होते हैं | ये संकट ही मनुष्य की कड़ी परीक्षा लेते है | जो इन संकटों से निकल गया, वही परमात्मा को उपलब्ध हो सकता है | आध्यात्मिकता के रास्ते की वे बाधाएं क्या हैं, जो व्यक्ति को अपने लक्ष्य से भटका देती हैं ? अर्जुन को गीता-ज्ञान साक्षात् परमात्मा श्री कृष्ण से मिला था, परन्तु फिर भी वह परमात्मा को नहीं पा सका | जब अर्जुन जैसा व्यक्ति जो सतत कई वर्षों तक स्वयं परमात्मा के सानिध्य में रहा था, फिर भी परमात्मा से उसकी दूरी बनी रही, तो फिर आप की और हमारी तो उसके सामने बिसात ही क्या है ? भगवान श्री कृष्ण भौतिक रूप से अर्जुन के साथ अवश्य बने रहे परन्तु आत्मिक स्तर पर क्या अर्जुन उनके साथ एकत्व स्थापित कर सका ?
                हम अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के दुःख और सुख भोगते हैं | सुख में हम इतने अधिक उत्साहित हो जाते हैं कि हमें परमात्मा की स्मृति तक नहीं रहती | जब दुःख सामने आता है, तो एक पल में ही व्यथित होकर भगवान को पुकारने लगते हैं | हमारी भौतिक दृष्टि में परमात्मा सुख में भी हमारे आस-पास नहीं थे और दुःख में भी कहीं दिखलाई नहीं पड़ते | जबकि वास्तविकता यह है कि परमात्मा हमें छोड़कर जा ही नहीं सकते, जिस समय परमात्मा इस भौतिक शरीर को छोड़ देंगे, हमारा इस एक योनि का जीवन भी समाप्त हो जायेगा अर्थात यह शरीर भी नष्ट हो जायेगा | इस संसार में हमें दुःख मिलता ही इसी कारण से है कि हम कर्म भी केवल इस शरीर के लिए ही करते हैं | जबकि महत्वपूर्ण हमारा शरीर नहीं बल्कि हमारी आत्मा है, जो कि हम स्वयं है | हम शरीर नहीं हैं | आत्म-बोध हो जाने पर शरीर में रहते हुए भी हम शरीर नहीं रहते बल्कि जिस के कारण से यह शरीर है, वही हम हो जाते हैं  | आत्म-ज्ञान को प्राप्त होकर ही हम मुक्त हो सकते हैं अन्यथा नहीं |
               आइये ! अब हम यह जानने का प्रयास करें कि वे कौन से कारण थे, जिनके कारण अर्जुन जैसा शिष्य भी आत्म-ज्ञान को उपलब्ध नहीं हो सका | अर्जुन के जीवन में जो कारण रहे, वही कारण हमारे जीवन में आज भी उपस्थित हैं जो कि मुक्ति में बाधक बनते है | श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित ज्ञान को श्री कृष्ण से प्राप्त कर लेने के उपरांत अर्जुन के जीवन में उस महायुद्ध में और उस युद्ध के उपरांत क्या कुछ घटित हुआ, इसको जानने के लिए महाभारत की और चलते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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