गीता-ज्ञान की सार्थकता – 13
ज्योंही व्यक्ति मोह के बंधन से छूटता है, उसको अपने होने का, अपने जीवन के
उद्देश्य का भान हो जाता है | इसी को स्मृति को प्राप्त हो जाना कहते हैं | इसीलिए
अर्जुन यहाँ पर कह रहा है कि मेरा मोह नष्ट हो गया है और मैंने स्मृति प्राप्त कर
ली है | आप अपने शरीर को ही स्वयं का होना मान रहे हैं; स्वयं को भूल जाना, अपने
आपको विस्मृत कर देना, मोह के कारण ही संभव होता है और ज्योंही आपका मोह समाप्त हो
जाता है, आप को अपनी सही स्थिति का अनुभव हो जाता है | यह ठीक उसी प्रकार है, जैसे
दर्पण पर धूल जम जाती है तब आप उसमें अपना वास्तविक स्वरूप नहीं देख सकते |
ज्योंही दर्पण से धूल की वह परत हटा दी जाती है आपका वास्तविक स्वरूप आपके समक्ष प्रकट
हो जाता है | इस प्रकार जब आपको अपनी स्मृति पुनः प्राप्त हो जाती है, तब आपका
प्रत्येक संशय भी समाप्त हो जाता है | इस प्रकार संशय की समाप्ति हो जाना आपके मन
को स्थिरता प्रदान कर देता है जिससे आपकी सोचने समझने की क्षमता तीव्र हो जाती है |
मोह के नष्ट हो जाने से लेकर निर्द्वंद्व होने की स्थिति में पहुँचने तक, प्रभु
कृपा और गुरु की भूमिका महत्वपूर्ण होती है |
परमात्मा की कृपा के बिना न तो मोह नष्ट हो सकता है और न ही संशय दूर हो
सकता है | प्रभु कृपा से आपको गुरु के रूप में एक सच्चा मार्गदर्शक मिल जाता है,
जो आपको मोह के जाल से बाहर निकाल कर प्रत्येक संशय से रहित कर देता है | संशय
रहित जीवन ही वास्तविकता में जीवन होता है अन्यथा द्वंद्व में तो सारा संसार जी ही
रहा है | जब तक आप अपने जीवन के होने, अपने स्वयं के होने को नहीं समझते तब तक
संशय ग्रस्त ही बने रहते हैं | संशय दूर होते ही आपकी मानसिक दशा भी स्थिर हो जाती
है और धीरे-धीरे आप आत्म-बोध होने की ओर
बढ़ने लगते हैं | इतना ज्ञान हो जाने पर मनुष्य समझ जाता है कि वह कुछ भी नहीं करता
है बल्कि सब कुछ परमात्मा की इच्छानुसार ही होता है | उसके हाथ में कुछ भी नहीं
है, यहाँ तक कि वह स्वयं भी व्यक्तिगत रूप से कुछ भी नहीं है बल्कि सब कुछ वह एक परमात्मा
(सर्व लोकैक नाथम्) ही है | यही कारण है कि अर्जुन यहाँ पर कह रहे हैं कि अब वह सब
कुछ वैसे ही करेगा जैसा उसे भगवान श्री कृष्ण कहेंगे अर्थात ‘करना और होना उसकी
मर्जी के अनुसार’, इस बात को स्वीकार कर लेगा | इस स्थिति को उपलब्ध हो जाने के
बाद ही मनुष्य परमात्मा होने की राह पर आगे बढ़ता है |
क्रमशः
प्रस्तुति डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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