गीता-ज्ञान की सार्थकता – 4
कर्म करने के पीछे भी केवल प्रकृति के गुणों की
ही भूमिका रहती है | यही कारण है कि मनुष्य में चाहे तीनों में से किसी भी एक गुण
की प्रधानता हो, वह कर्म करने को विवश अवश्य होता है | प्रकृति के उपरोक्त तीनों
गुण प्रत्येक व्यक्त हुए सजीव अथवा निर्जीव, सभी में उपस्थित रहते हैं | फिर क्या
कारण है कि इनमें से केवल मनुष्य ही कर्म करने को विवश है ? निर्जीव को तत्व (Element) कहते हैं क्योंकि उनका शरीर केवल तत्वों से ही आकार
लेता है | ये तत्व स्वेच्छा से कहीं पर भी आ जा नहीं सकते इसीलिए इनको जड़ कहा जाता
है | उनमें गति प्रदान करने के लिए बाह्य बल की आवश्यकता होती है | प्रत्येक तत्व
में भी प्रकृति के तीनों गुण उपस्थित रहते हैं | किसी भी एक तत्व में उपस्थित प्रकृति
के तीन गुण विद्युतीय (Electrical), भौतिक (Physical) और रासायनिक (Chemical) गुण कहलाते हैं | सजीव में यही गुण क्रमशः सात्विक,
राजसिक तथा तामसिक गुण कहलाते हैं | सजीव का शरीर पदार्थ से (Matter) बना होता है, जिसकी इकाई (Unit) भी यह तत्व ही होता है | सजीव
प्राणियों में फिर से दो विभाग किये जा सकते हैं – चर (Motile) और अचर (Nonmotile)| चर प्राणी वे होते हैं जो किसी भी माध्यम में
स्वेच्छा से चल-फिर सकते हैं और अचर
प्राणी वे प्राणी होते हैं, जो किसी भी माध्यम में स्वेच्छा से विचरण नहीं कर सकते | अचर
प्राणियों के अंतर्गत सभी प्रकार के पेड़-पौधे आ जाते हैं तथा चर प्राणियों के
अंतर्गत मनुष्य और अन्य सभी इधर उधर घूम-फिर सकने वाले प्राणी आते हैं |
पदार्थ (Matter) की इकाई (Unit) तत्व (Element) है | पदार्थ से ही प्राणी की कोशिका (Cell) का निर्माण होता है | कई कोशिकाएं मिलकर उत्तक (Tissue) बनाती है | उत्तकों से अवयवों (Organs) का निर्माण होता है और विभिन्न अवयव मिलकर
भौतिक शरीर (Physical body) का निर्माण करते हैं | इस
प्रकार हम देखते हैं कि प्राणी के शरीर की इकाई कोशिका हुई और कोशिका की इकाई तत्व
हुआ | इससे यह समझा जा सकता है कि बिना तत्व के प्राणी के शरीर की कल्पना नहीं की
जा सकती | बिना किसी तत्व के योगदान के शरीर का बनना असंभव है | तत्व में उपस्थित
प्रकृति के गुण ही इस भौतिक शरीर में क्रिया करने के लिए उत्तरदाई है | जिस प्रकार
एक तत्व में उपस्थित प्रकृति के गुणों की आपस में क्रियाओं का एक निश्चित परिणाम
होता है, ठीक उसी प्रकार प्राणी के भौतिक शरीर में होने वाली क्रियाओं का भी एक
निश्चित परिणाम होता है | मनुष्य में ये क्रियाएं कर्म कहलाती हैं क्योंकि अपने
शरीर में वह स्वयं इन क्रियाएं को करने के लिए स्वतन्त्र है | जो क्रियाएं स्वतः होती
रहती है और हमारे नियंत्रण में नहीं (Involuntary acts) होती है, उसके परिणाम का हमें
पूर्णतः ज्ञान नहीं हो सकता परन्तु जो क्रियाएं अर्थात कर्म हम स्वेच्छा (Voluntary acts) से करते हैं, उनका परिणाम
निश्चित होता है और जो हमारे ज्ञान में भी होता है | इससे स्पष्ट है कि जो
क्रियाएं व्यक्ति अपनी इच्छानुसार संपन्न करता है, उन कर्मों के परिणाम भी उन क्रियाओं
के अनुसार उसे अवश्य ही प्राप्त होते हैं | किसी भी कर्म के परिणाम कभी भी नष्ट
नहीं हो सकते अर्थात प्रत्येक कर्म का कोई न कोई परिणाम अवश्य ही मिलता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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