Friday, March 30, 2018

गीता-ज्ञान की सार्थकता - 28


गीता-ज्ञान की सार्थकता – 28  
                 नए मानव जीवन में प्रारब्ध से सीधे ही कर्म करने प्रारम्भ नहीं होते बल्कि सर्वप्रथम मनुष्य के पूर्व मानव जीवन में अपूर्ण रही कामनाएं सक्रिय होती हैं | ये अपूर्ण कामनाएं सूक्ष्म शरीर में स्थित चित्त में संग्रहित की हुई रहती है जो शिशु के जन्म के साथ ही सूक्ष्म शरीर से भौतिक शरीर में प्रवेश करते ही उसके मन में स्थानांतरित हो जाती है | इसलिए कहा जा सकता है कि नए जन्म में पूर्व जन्म की कामनाएं अथवा काम ही कर्म प्रारम्भ होने का मुख्य कारण बनती है | उन अपूर्ण रही कामनाओं को पूरा करने के लिए  हमारा मन शरीर की कर्मेन्द्रियों से कर्म संपन्न करवाता है और पूर्वजन्म का इच्छित फल हमें बिना अधिक प्रयास किये सुगमता के साथ इस जन्म में प्राप्त हो जाता है | कहने का अर्थ है कि प्रारब्ध (भाग्य) के कारण कुछ इच्छित फल कम प्रयास से अथवा अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं | ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय स्वामी श्री रामसुख दास जी महाराज इसके लिए एक सत्य घटना बताया करते थे | यह घटना आंध्र-प्रदेश की है | चोरों ने किसी व्यापारी के घर से एक तिजोरी चोरी कर ली परन्तु वे उस तिजोरी को खोल नहीं पाए थे | चोरी की सूचना मिलने पर पुलिस भी सक्रिय हो गयी थी | वह चोरों का पीछा करने लगी | चोरों से तिजोरी खुल नहीं पा रही थी | पुलिस से बचने के लिए उन चोरों ने वह तिजोरी नदी में फेंक दी | इस प्रकार वे पुलिस से बच निकलने में सफल हो गए | नदी के बहाव की दिशा में स्थित एक गाँव से एक व्यक्ति उस नदी में नियमित स्नान करने आया करता था | उस दिन उसने उस तिजोरी को बहते देखकर उसे बाहर निकाला | घर ले जाकर उसने तिजोरी खोली तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी | उस तिजोरी में अथाह धन राशि और महंगे आभूषण आदि भरे पड़े थे | इस प्रकार उस व्यक्ति को पूर्व जन्म के पुरुषार्थ (भाग्य) के अनुसार केवल दैनिक शौच-कर्म करते हुए भी विपुल धन-सम्पति प्राप्त हो गयी |
                                 हमारे जीवन में भी भाग्य इसी प्रकार के खेल कई बार खेलता है | जब हमारे भाग्य में कुछ बहुत अच्छा होना लिखा होता है, तब कम प्रयास से अल्प मात्रा में कर्म करते हुए हमारी पूर्व जन्म की कामना पूर्ण हो जाती है | कामनाओं को पूरा करने के लिए थोड़ा-बहुत पुरुषार्थ तो करना ही पड़ेगा चाहे उन कामनाओं को पूरा होना हमारे भाग्य में लिखा ही क्यों न हो | कर्म करने से हमें चार पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है जिन्हें चार पदार्थ भी कहा जाता है | ये चार पुरुषार्थ हैं-काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष | कहने का आशय यह है कि बिना कर्म किये न तो कामनाएं पूरी हो सकती हैं, न ही अर्थ प्राप्त हो सकता है, न ही धर्म की प्राप्ति होती है और न ही मुक्त हुआ जा सकता है | काम और अर्थ की प्राप्ति हमारे पूर्व जन्म के पुरुषार्थ यानि प्रारब्ध (भाग्य) हैं और धर्म और मोक्ष इस जन्म में कर्म करने के पुरुषार्थ हैं | अर्थ और काम हमें पूर्व जन्म के पुरुषार्थ के कारण इस जन्म में अल्प कर्म करके ही सुगमता से प्राप्त हो जाते हैं | धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ को वर्तमान मानव जीवन में कर्म करते हुए इसी जीवन में ही प्राप्त किया जा सकता है | धर्म और मोक्ष की प्राप्ति में प्रारब्ध का योगदान कम रहता है | पुरुषार्थ एक विस्तृत विषय है, इस पर अलग से एक नई श्रृंखला में चर्चा करेंगे |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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