रामचरितमानस,तुलसी की एक अमर कृति है । इस ग्रन्थ में राम-कथा भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती को सुनाते हैं । तुलसी के काल तक,उनके जीवन काल में भी सनातन धर्म में दो बड़े धड़े थे-शैव और वैष्णव । दोनों ही सम्प्रदाय आपस में झगड़ते रहते थे । शैव सम्प्रदाय वाले शिव के उपासक होते हैं जबकि वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान विष्णु की पूजा करते हैं । संत स्वामी तुलसी दास को उन दोनों संप्रदायों के बीच का लड़ना-झगड़ना अच्छा नहीं लगता था । उन्होंने यह संकल्प किया कि किसी भी तरह इन दोनों सम्प्रदायों के बीच का झगडा मिटाया जाना चाहिए,समाप्त हो जाना चाहिए । उस समय में किसी को समझाना बुझाना बड़ा ही खतरनाक होता था । एक को कुछ कहो तो वह आपको दुसरे पक्ष का जान कर आपसे ही झगड पड़ता था । तुलसी ने अपना विवेक काम में लेते हुए इस रामचरितमानस की रचना की । इस ग्रन्थ में राम (विष्णु ) की कथा को शिव के मुख से सुनाया गया है । इस ग्रन्थ में स्थान स्थान पर कभी शिव,राम (विष्णु) की प्रशंसा करते हैं और कहीं राम (विष्णु) शिव की प्रशंसा करते हैं । प्रारम्भ में लोगों ने इस ग्रन्थ को हल्के रूप में लिया परन्तु जब इसका गहराई से लोगों ने अध्ययन किया तो सबकी भ्रान्तिया दूर हो गई । अंत में दोनों ही सम्प्रदायों के लोग इसे पढ़कर संतुष्ट हो गए ।
मैंने यह बात आपके समक्ष इसलिए रखी है क्योंकि संसार निर्माण में अनुभव तभी काम आता है जब इतिहास में हुई कमियों को,गलतियों को सुधारकर दूर किया जाय । तुलसी ने उन गलतियों को सुधारकर दोनों सम्प्रदायों के बीच भाईचारा बढ़ाते हुए दीर्घकाल से चले आ रहे वैमनस्य को समाप्त किया । विवेकशील पुरुष केवल मात्र इतिहास को दोहराते नहीं है बल्कि "आज" में जीते हुए नया इतिहास बनाते हैं । तुलसी ने इतिहास को पीछे छोड़ते हुए "आज" को जिया और निर्विचार होकर जिया तभी तो हमें इतना अच्छा ग्रन्थ मिला । इस ग्रन्थ के अस्तित्व में आने के बाद दोनों ही सम्प्रदायों के मध्य आज तक किसी प्रकार का कोई झगडा नहीं हुआ ।
आने वाल कल भी एक संसार का निर्माण करता है । यह संसार बीते हुए कल के द्वारा निर्मित संसार की तुलना में सत्य के अधिक नजदीक है । ऐसा तभी होता है जब भविष्य की योजनायें परमार्थ के लिए हो । अगर आनेवाले कल से संसार आप अपने स्वार्थ से बना रहे हो,तो फिर दोनों ही संसार निरर्थक है । जितने भी महान व्यक्ति इस संसार में हुए है,सभी ने आनेवाले कल को ध्यान में रखते हुए ,परमार्थ हेतु अपने संसार का निर्माण किया है और ऐसा संसार निंदनीय हो ही नहीं सकता । उन्होंने "आज" को परमार्थ के लिए जीया है,जिससे आनेवाले कल को बेहतर बनाया जा सके ।भविष्य का संसार उन्होंने वर्तमान में बनाया, न कि बीते हुए कल को ही स्मृतियों में रख कर । ऐसा संसार निर्माण अनुकरणीय है ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
मैंने यह बात आपके समक्ष इसलिए रखी है क्योंकि संसार निर्माण में अनुभव तभी काम आता है जब इतिहास में हुई कमियों को,गलतियों को सुधारकर दूर किया जाय । तुलसी ने उन गलतियों को सुधारकर दोनों सम्प्रदायों के बीच भाईचारा बढ़ाते हुए दीर्घकाल से चले आ रहे वैमनस्य को समाप्त किया । विवेकशील पुरुष केवल मात्र इतिहास को दोहराते नहीं है बल्कि "आज" में जीते हुए नया इतिहास बनाते हैं । तुलसी ने इतिहास को पीछे छोड़ते हुए "आज" को जिया और निर्विचार होकर जिया तभी तो हमें इतना अच्छा ग्रन्थ मिला । इस ग्रन्थ के अस्तित्व में आने के बाद दोनों ही सम्प्रदायों के मध्य आज तक किसी प्रकार का कोई झगडा नहीं हुआ ।
आने वाल कल भी एक संसार का निर्माण करता है । यह संसार बीते हुए कल के द्वारा निर्मित संसार की तुलना में सत्य के अधिक नजदीक है । ऐसा तभी होता है जब भविष्य की योजनायें परमार्थ के लिए हो । अगर आनेवाले कल से संसार आप अपने स्वार्थ से बना रहे हो,तो फिर दोनों ही संसार निरर्थक है । जितने भी महान व्यक्ति इस संसार में हुए है,सभी ने आनेवाले कल को ध्यान में रखते हुए ,परमार्थ हेतु अपने संसार का निर्माण किया है और ऐसा संसार निंदनीय हो ही नहीं सकता । उन्होंने "आज" को परमार्थ के लिए जीया है,जिससे आनेवाले कल को बेहतर बनाया जा सके ।भविष्य का संसार उन्होंने वर्तमान में बनाया, न कि बीते हुए कल को ही स्मृतियों में रख कर । ऐसा संसार निर्माण अनुकरणीय है ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
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