Tuesday, July 22, 2014

व्यक्त-अव्यक्त |-१२ -समापन किश्त

जो कुछ भी व्यक्त है,वह तो  अर्थपूर्ण है ही;परन्तु जो अव्यक्त है ,वह उससे भी अधिकसुन्दर और अर्थपूर्ण है 

                        स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज कहा करते थे-
                                    'है' सो सुन्दर है सदा,'नहीं' सो सुन्दर नाहीं ।
                                     'नहीं' को प्रकट देखिये,' है' सो दिखे नाहीं ॥
               जो यह भौतिक  संसार है,वह व्यक्त है और उस अव्यक्त के कारण है तथा इस कारण से ही यह सुन्दर नज़र आ रहा है । जिसकी यह रचना अर्थात संसार जिसकी रचना है जो हमें इतना सुन्दर और अर्थपूर्ण नज़र आ रहा है तो फिर क्षण भर के लिए कल्पना कीजिये कि इस संसार का,इस रचना का ,रचनाकार कितना अधिक सुन्दर और अर्थपूर्ण होगा । लेकिन इस संसार की भौतिक चकाचौंध ने हमारी दृष्टि ही खो दी है और हम इस संसार से आगे कुछ भी नहीं देख पा रहे हैं । यह चकाचौंध हमने ही पैदा की है,अपने मोह के वशीभूत होकर,अपनी तृष्णा को बरक़रार रखते हुए,अपनी कभी भी पूरी न होने वाली इच्छाओं को पालकर । ये सभी बंधन कारक हैं और यह चकाचौंध इन बंधनों के कारण ही है । बंधन चाहे हाथ पैरों का हो , चाहे दृष्टि का ,व्यक्ति असहाय होकर रह जाता है । परमात्मा का लाख लाख शुक्र है कि अभी भी कोई बंधन मस्तिष्क की क्षमता पर लग नहीं पाया है । जिस दिन व्यक्ति के मस्तिष्क पर बंधन लग जायेगा,समझ लेना मानव का विकास रूक चूका है और यह संसार और समस्त सृष्टि नष्ट होने के नजदीक है ।
                    मानव मस्तिष्क बंधन मुक्त है और इसी कारण से उसकी वैचारिक क्षमता प्रभावशाली है । कम से कम वह यह तो विचार कर ही सकता है कि उस अव्यक्त की यह व्यक्त रचना जब इतनी सुन्दर प्रतीत हो रही है तो हमें यह जानने का प्रयास तो करना चाहिए कि उस रचनाकार अव्यक्त की सुन्दरता कितनी अधिक होगी ।जब आपके पास कुछ देने के लिए होगा तभी तो आप किसी को कुछ दे पाएंगे । और आप फिर भी सब कुछ नहीं देंगे,जितना देंगे उससे कही अधिक अपने पास भी रखेंगे । ऐसा ही कुछ कुछ  वह अव्यक्त भी करता है । वह सारा अर्थ,सारी सुन्दरता इस संसार को ही नहीं दे देता ,इस व्यक्त में ही नहीं डाल देता  बल्कि उससे कहीं अधिक अपने पास रख लेता है । इसी लिए वह अव्यक्त,इस व्यक्त से कहीं अधिक सुन्दर और अर्थपूर्ण बना रहता है । 
                     स्वामीजी इसी लिए कहते हैं कि  यहाँ पर जो दिखाई देता है अर्थात व्यक्त है,वह सुन्दर नहीं है बल्कि जो दिखाई नहीं देता यानि जो  अव्यक्त है वही सुन्दर है । जो सुन्दर "है" वह अव्यक्त है और जो "नहीं" है वह व्यक्त है । यही सोच ,यही विचार जब मस्तिष्क में पैदा हो जायेगा उसी दिन आप अर्थपूर्ण से अधिक अर्थपूर्ण की यात्रा प्रारम्भ कर देंगे और पाएंगे की वास्तव में उस व्यक्त से यह अव्यक्त अधिक अर्थपूर्ण व सुन्दर है ।
                                ॥ हरिः शरणम् ॥

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