Sunday, July 27, 2014

संसार-४

                                 जिस दिन व्यक्ति को अपने जीवनकाल में प्रतिदिन आनंद  आने लगेगा,वह जीते जी ही इस संसार सागर को पार कर लेगा । संसार का निर्माण स्वतः ही रूक जाता है,जब आप "आज"में जीना शुरू कर देते हैं । संसार तो "बीते हुए कल"और "आने वाले कल" का ही तो नाम है  । जिसको यह पता है अर्थात जो यह जानता है कि "बिता हुआ कल"कभी भी लौट कर वापिस नहीं आने वाला और "आने वाले कल" में मैं रहूँगा या नहीं ,केवल मात्र वही व्यक्ति "आज" में जी सकता है और आनंद भी प्राप्त कर सकता है । हम सब कुछ जानते हैं फिर भी अनजान बने रहना चाहते हैं । संत महापुरुषों ने बार बार हमें अनेकों बार समझाया है और हमारे  सनातन शास्त्र भी यही कहते हैं कि किसी भी कल की मत सोचो ,केवल "आज" पर ध्यान दो परन्तु यह मनुष्य विवेकशील होते हुए भी इस बात की उपेक्षा कर रहा है ।
                             सबसे पहले हम बात करते हैं उस "बीते हुए कल "की । हमारा इतिहास कितने ही शूरमाओं की गाथा कहता होगा परन्तु जरा विचार कीजिये -क्या हम सब  आज भी उन शूरमाओं के वंशज लगते हैं ?हमारा इतिहास सनातन धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वाले ऋषि दधिची को तो याद करता है परन्तु आज कितने दधिची यहाँ है ?महाराणा प्रताप को  धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना पड़ा था । उस युद्ध को संचालित करने के लिए मेवाड़ के धनाढ्य व्यक्ति भामाशाह ने अपनी समस्त सम्पति राणा को समर्पित कर दी थी । आज कितने यहाँ भामाशाह है यह आपसे और मुझसे छुपा हुआ  नहीं है?हमारे सनातन धर्म की रक्षा का भाव जिन्दा रहना चाहिए था ,वह तो हम कभी के मार चुके हैं और अपने इतिहास अर्थात "बीते हुए कल"को लिए बैठे हैं । मैं कहता हूँ और स्पष्टतः कहता हूँ कि दधिची या भामाशाह की पुनरावृति नहीं हो सकती क्योंकि वह "बीता हुआ कल"है । हमने अपने उस गौरवशाली इतिहास से "आज"को नहीं जी  सकते । हाँ,उनकी जो सनातन धर्म के प्रति आस्था थी ,भावना थी ,उस आस्था और भाव  को आत्मसात करके "आज"को जी सकते हैं और आनंदित हो सकते हैं । इस भाव के साथ जीना इतिहास में जीना नहीं है । अगर हम उस भाव के साथ आज तक जी रहे होते तो सनातन धर्म की सीमायें ईरान से लेकर जापान तक विशाल भू भाग तक फैली हुई थी, से सिकुड़ कर भारतवर्ष के एक छोटे से हिस्से तक नहीं सिमट जाती । जम्मू-कश्मीर में हमारी अमरनाथ यात्रा संगीनों के साये में संपन्न नहीं होती और न ही हमें हमारे नेताओं के रहमोकरम पर  हमारे प्रार्थना स्थलों पर पूजा करने के लिए इजाजत लेने की आवश्यकता होती ।
                                इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि हम लोगों ने अपना संसार "बीते हुए कल"से निर्मित किया है । आज भी हमें दुष्टों और दानवों से संघर्ष करने के लिए राम  या कृष्ण के अवतार लेने का इंतजार है । परन्तु ऐसा कभी होगा नहीं । जिस प्रकार दधिची और भामाशाह बार बार पैदा नहीं होते उसी प्रकार राम और कृष्ण भी पैदा नहीं होंगे । हमारे बीच में से ही कोई दधिची या भामाशाह  होगा ,हमारे बीच ही राम या कृष्ण पैदा होगा । कल वाले ये चरित्र आज नहीं आयेंगे और भविष्य में कभी आयेंगे या नहीं,यह देखने के लिए हम होंगे नहीं। तो फिर पुराने और आने वाले कल की क्यों सोचें,यह तो हमारे संसार का निर्माण ही करेगा । जो करना है आज ही करें -उसी आस्था और उसी भाव के अनुसार और फिर परिवर्तन देखें। यह संसार कहाँ ठहरेगा आपके आगे?
क्रमशः
                                       ॥ हरिः शरणम् ॥ 

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