इस प्रकार मैंने अपने लगभग सभी मित्रों से संसार के बारे में उनके विचार जानने चाहे और सबने उनके उत्तर तत्काल दे भी दिए । क्या ऐसा ही यह संसार है जैसा कि वे समझते हैं?सभी मित्रों के उत्तर में एक समानता थी जो आपने भी महसूस की होगी । सबने इस संसार को अपनी नज़रों से ही देखा है । हाँ,एक दम सही सोचा और अनुभव किया आपने । संसार को सबने अपने विवेकानुसार ही देखा है । संसार कहीं पर भी दिखाई नहीं पड़ता और निंदा इस संसार की करते हैं । संसार कुछ भी नहीं है,कहीं भी नहीं है ,सिर्फ आपकी अभिव्यक्ति मात्र ही यह संसार है । जैसे आप दर्पण के सामने खड़े होकर अपना प्रतिबिम्ब देखते हो और उस प्रतिबिम्ब में स्वयं का होना देखते हो उसी प्रकार आपके विचार,आपकी मानसिकता ,आपकी सोच एक दूसरे के प्रति आदि बातें ही आपके इस संसार का निर्माण करती है । संसार को समझ लेना ही संसार से पार हो जाना है । संसार को समझे बिना ,उसको निन्दित करना और परमात्मा से उससे पार करने की प्रार्थना करना केवल किताबी बातें है ।
संसार सागर अथाह है अर्थात इसकी कोई थाह नहीं ले सकता । बहुत ही गहराई और विशालता लिए हुए है यह संसार । और हम इसी संसार सागर से पार होने की बात करते हैं ,अपने दम पर इसे जीत लेने का प्रयास करते हैं । क्या इसे पार कर जाना ,इससे जीत पाना इतना आसान है ? हाँ,इसे पार करने का प्रयास प्रायः सभी करते हैं परन्तु यह सभी प्रयास इसकी विशालता को देखते हुए बौने ही साबित होते हैं । इसे पार करने के लिए गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता होती है । किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु किया गया गंभीर प्रयास आपकी सफलता की आधारशिला है । आखिर इस संसार सागर को पार करने से क्या अभिप्राय है ? क्यों हम इस संसार सागर में रहना नहीं चाहते ? जब तक हम इस संसार को समझ नहीं लेते तब तक ये प्रश्न अनुत्तरित ही रहेंगे ।
सबसे पहले हमें यह जानना और समझना होगा कि संसार सागर में आना और इसे पार कर लेना क्या है ?प्रायः हम इस संसार में शारीरिक रूप से प्रकट होने को ,अर्थात जन्म लेने को संसार में आना और शरीर को त्याग देना ,शरीर की मृत्यु हो जाने को ही संसार सागर से पार उतर जाना कह देते हैं । इस संसार में सृष्टि के प्रारंभ में प्रथम बार शरीर धारण कर जन्म लेना अवश्य ही इस संसार सागर में आना है परन्तु उस शरीर को त्याग देना,मृत्यु को प्राप्त हो जाना ही संसार सागर से पार चले जाना नहीं है । इस संसार सागर में सृष्टि के प्रादुर्भाव के साथ ही प्रथम बार शरीर के साथ आना अवश्य ही आपकी मर्जी से नहीं हुआ है परन्तु इसको पार कर जाना अवश्य ही आपकी मर्जी पर निर्भर है । हाँ,यह आपका अभी का शरीर ,आपका यह जन्म आपकी मर्जी से अवश्य मिला है परन्तु इस शरीर से मुक्ति के लिए और आगे भविष्य में और नए शरीर न मिले उसके लिए भी आपको प्रयास करने होंगे और वही वास्तव में इस संसार सागर के पार चले जाना होगा ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
संसार सागर अथाह है अर्थात इसकी कोई थाह नहीं ले सकता । बहुत ही गहराई और विशालता लिए हुए है यह संसार । और हम इसी संसार सागर से पार होने की बात करते हैं ,अपने दम पर इसे जीत लेने का प्रयास करते हैं । क्या इसे पार कर जाना ,इससे जीत पाना इतना आसान है ? हाँ,इसे पार करने का प्रयास प्रायः सभी करते हैं परन्तु यह सभी प्रयास इसकी विशालता को देखते हुए बौने ही साबित होते हैं । इसे पार करने के लिए गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता होती है । किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु किया गया गंभीर प्रयास आपकी सफलता की आधारशिला है । आखिर इस संसार सागर को पार करने से क्या अभिप्राय है ? क्यों हम इस संसार सागर में रहना नहीं चाहते ? जब तक हम इस संसार को समझ नहीं लेते तब तक ये प्रश्न अनुत्तरित ही रहेंगे ।
सबसे पहले हमें यह जानना और समझना होगा कि संसार सागर में आना और इसे पार कर लेना क्या है ?प्रायः हम इस संसार में शारीरिक रूप से प्रकट होने को ,अर्थात जन्म लेने को संसार में आना और शरीर को त्याग देना ,शरीर की मृत्यु हो जाने को ही संसार सागर से पार उतर जाना कह देते हैं । इस संसार में सृष्टि के प्रारंभ में प्रथम बार शरीर धारण कर जन्म लेना अवश्य ही इस संसार सागर में आना है परन्तु उस शरीर को त्याग देना,मृत्यु को प्राप्त हो जाना ही संसार सागर से पार चले जाना नहीं है । इस संसार सागर में सृष्टि के प्रादुर्भाव के साथ ही प्रथम बार शरीर के साथ आना अवश्य ही आपकी मर्जी से नहीं हुआ है परन्तु इसको पार कर जाना अवश्य ही आपकी मर्जी पर निर्भर है । हाँ,यह आपका अभी का शरीर ,आपका यह जन्म आपकी मर्जी से अवश्य मिला है परन्तु इस शरीर से मुक्ति के लिए और आगे भविष्य में और नए शरीर न मिले उसके लिए भी आपको प्रयास करने होंगे और वही वास्तव में इस संसार सागर के पार चले जाना होगा ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
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