Wednesday, July 30, 2014

संसार-७

              इस संसार को आप चाहे कितना ही निन्दित करें,संसार किसी भी सूरत में इस निंदा का अधिकारी नहीं है ।  हम अपना संसार स्वयं ही निर्मित करते हैं और दोष भी अपने ही बनाये हुए को देते हैं ,यह कैसा व्यवहार है हमारा ? हमें यह संसार अच्छा इसीलिए नहीं लगता क्योंकि हमने आपना संसार सदैव ही बीते हुए कल से बनाया है और वह भी आने वाले कल के लिए । "आज" को जीने के लिए हम कुछ भी नहीं करते हैं ।अच्छा ,वास्तविक और सुन्दर संसार तो सदैव ही आज के लिए होता है ,"आज" से विलग संसार तो सिर्फ काल्पनिक होता है ,असत्य होता है , मात्र एक सपना होता है । इस सृष्टि में केवल "आज" ही सत्य है शेष सभी सपना है । सभी धर्मशास्त्र हमें "आज" में जीने का कहते हैं । आप न तो बीते हुए कल में जीकर आनंदित हो सकते हैं और न ही आने वाले कल में जीने की  योजनायें बनाकर ।
                    भविष्य के कल का संसार सदैव ही बीते हुए कल के  इतिहास से बनता है । चाहे यह भविष्य का संसार हम आज बना रहें हो,परन्तु उसका आधार सदैव ही बीता हुआ कल ही होता है । बीते हुए कल का कार्य आज हम अगर करते हैं अर्थात इतिहास की पुनरावृति अगर हम करते हैं तो उसकी न तो "आज" के सन्दर्भ में कोई उपयोगिता है और न ही भविष्य में कोई उपयोगिता होगी । इसी लिए मैंने कहा है की इतिहास का अनुभव काम में लेने का कोई औचित्य नहीं है । हाँ, इतिहास का अनुभव तभी काम में आता है जब उस समय की हुई गलतियों को हम दोहराए नहीं और अच्छी बातों को आत्मसात करते हुए आज उसी कार्य को एक नए तरीके से करें । 
                  बीता हुआ कल वापिस लौट कर नहीं आने वाला और आने वाले कल को किसी ने आज देखा नहीं है ,यह  एक सार्वभौमिक सत्य है । इस सत्य को स्वीकार और आत्मसात करते ही हम "आज"को जीना सीख जायेंगे । आज में जीना प्रारम्भ करते ही यह संसार ,जिसकी आप आज तक निंदा करते हुए आ रहे है ,बड़ा ही सुन्दर और आनंददायक प्रतीत होने लगेगा । यह मेरा "आज"का अनुभव है और इस अनुभव का उपयोग केवल "आज"ही किया जा सकता है । भविष्य के कल को यह अनुभव बेमानी हो जायेगा । "आज" में जीने पर व्यक्ति को संसार नज़र ही नहीं आता ,क्योंकि" आज" को निर्विचार होकर ही जिया जा सकता है ।  विचार तो मस्तिष्क में या तो भूतकाल पैदा करता है या आने वाला भविष्य । "आज" का कुछ भी ,किसी प्रकार का विचार नहीं होता है । क्योंकि "आज" एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया में मस्तिष्क में बनी स्मृतियाँ विचारों के रूप में परिवर्तित होकर बह ही नहीं सकती । उनको विचार बनकर बहने के लिए या तो बीता हुआ कल चाहिए या आनेवाले कल की कोई योजना । दोनों ही "आज"में जीने वाले के मस्तिष्क के लिए करना संभव ही नहीं है ।
क्रमशः
                                          ॥ हरिः शरणम् ॥ 

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