धन के विसर्जन का अंतिम रास्ता है-उसका नाश । जो व्यक्ति अपने जीवन में धन का उपयोग दान देने में नहीं करता या उसको स्वयं के भोग के लिए या परिवार की सुख सुविधा अथवा बच्चों के विकास के लिए व्यय नहीं करता तो धन तीसरी गति को प्राप्त होता है । यह तीसरी गति है-धन का नाश हो जाना । मरते दम तक व्यक्ति अगर इसका सही उपयोग नहीं करता तो वह धन उसके उत्तराधिकारियों में बंट जाता है । जिसने अपने जीवन में धन का उपार्जन नहीं किया उसे उसकी वास्तविक कीमत का पता नहीं होता । इस कारण से उस व्यक्ति के उत्तराधिकारी इन पैसो को आमोद प्रमोद में तेजी के साथ खर्च कर डालते है ।इस प्रकार यह धन का नाश होना ही हुआ ।
कई व्यक्ति अपने जीवनकाल में सृजित धन को जमीन में गाड़ देते है । उसकी मृत्यु के उपरांत किसी भी पारिवारिक सदस्य को यह पाता नहीं होता कि उसका धन कहाँ है ?इस प्रकार यह धन किसी के भी उपयोग में नहीं आ पाता । इस प्रकार यह उपार्जित और सृजित धन का एक प्रकार से नाश होना ही हुआ । इसी प्रकार सृजित धन को अगर व्यक्ति किसी अयोग्य व्यक्ति के पास देखभाल के लिए रख देता है या कर्ज के रूप में दे देता है तो उसके पुनः लौटकर आने की कोई सम्भावना नहीं रहती । यह भी धन का नाश होना हुआ ।सृजित धन पर हर समय चोर उच्चक्कों की निगाहें रहती है । मौका मिलते ही धन चुराने में उन्हें किसी भी प्रकार का संकोच नहीं होता । आपके धन को चुरा लिया जाना आपके लिए धन का नाश ही हो जाना है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि धन का विसर्जन एक शाश्वत सत्य है । सब कुछ व्यक्ति के नियंत्रण में है कि वह यह समझे कि अपने धन का किस प्रकार विसर्जन करे । सबसे उपयुक्त तरीका धन को दान करना है और उसके बाद उसे भोगना है । धन को आपके पास टिकना तो है नहीं। आप उसे स्वयं के काम में लेते हुए उसे भोगेंगे नहीं या उसे परमार्थ के लिए दान नहीं करेंगे तो उस धन का एक दिन नाश होना निश्चित है । अतः अपने धन पर कुंडली मारकर बैठे नहीं| समय रहते उसके विसर्जन का तरीका निश्चित करलें और उसी प्रकार उसे समयबद्ध तरीके से विसर्जित करते रहें । फिर अनुभव करें कि आपका जीवन कितना सुखमय हो गया है । धन को परमार्थ निमित काम में लेना ही धन का परमात्मा को अर्पण है ।
॥ हरिः शरणम् ॥
कई व्यक्ति अपने जीवनकाल में सृजित धन को जमीन में गाड़ देते है । उसकी मृत्यु के उपरांत किसी भी पारिवारिक सदस्य को यह पाता नहीं होता कि उसका धन कहाँ है ?इस प्रकार यह धन किसी के भी उपयोग में नहीं आ पाता । इस प्रकार यह उपार्जित और सृजित धन का एक प्रकार से नाश होना ही हुआ । इसी प्रकार सृजित धन को अगर व्यक्ति किसी अयोग्य व्यक्ति के पास देखभाल के लिए रख देता है या कर्ज के रूप में दे देता है तो उसके पुनः लौटकर आने की कोई सम्भावना नहीं रहती । यह भी धन का नाश होना हुआ ।सृजित धन पर हर समय चोर उच्चक्कों की निगाहें रहती है । मौका मिलते ही धन चुराने में उन्हें किसी भी प्रकार का संकोच नहीं होता । आपके धन को चुरा लिया जाना आपके लिए धन का नाश ही हो जाना है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि धन का विसर्जन एक शाश्वत सत्य है । सब कुछ व्यक्ति के नियंत्रण में है कि वह यह समझे कि अपने धन का किस प्रकार विसर्जन करे । सबसे उपयुक्त तरीका धन को दान करना है और उसके बाद उसे भोगना है । धन को आपके पास टिकना तो है नहीं। आप उसे स्वयं के काम में लेते हुए उसे भोगेंगे नहीं या उसे परमार्थ के लिए दान नहीं करेंगे तो उस धन का एक दिन नाश होना निश्चित है । अतः अपने धन पर कुंडली मारकर बैठे नहीं| समय रहते उसके विसर्जन का तरीका निश्चित करलें और उसी प्रकार उसे समयबद्ध तरीके से विसर्जित करते रहें । फिर अनुभव करें कि आपका जीवन कितना सुखमय हो गया है । धन को परमार्थ निमित काम में लेना ही धन का परमात्मा को अर्पण है ।
॥ हरिः शरणम् ॥
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