Wednesday, July 9, 2014

व्यक्त-अव्यक्त |-२

जो कुछ भी व्यक्त है,वह तो  अर्थपूर्ण है ही;परन्तु जो अव्यक्त है ,वह उससे भी अधिकसुन्दर और अर्थपूर्ण है । 
                                           व्यक्त का अर्थ है प्रकट होना और अव्यक्त का अर्थ है अदृश्य हो जाना । मनुष्य को व्यक्ति शब्द मिला ही इसी लिए है कि वह प्रकट है,वह व्यक्त है । मनुष्य व्यक्त होने से पहले अव्यक्त था अर्थात  वह इस संसार में दृश्यमान नहीं था । तो जब वह व्यक्त नहीं था तो क्या वह अव्यक्त था ? इस प्रश्न का जवाब मिलते ही यह व्यक्त-अव्यक्त की पहेली सुलझ जाएगी ।
                         इस प्रश्न का उत्तर हमें अपने से बाहर जाकर खोजने से नहीं मिलेगा बल्कि स्वयं के अंदर प्रवेश करने पर मिल जायेगा । अपने से बाहर सिर्फ यह भौतिक संसार है और भौतिकता केवल व्यक्त से सम्बंधित होती है । अव्यक्त से उसका दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं होता है । भौतिकता के अनुसार प्राणी का जन्म मात्र ही उसका व्यक्त स्वरुप है और शरीर की मृत्यु होना उस प्राणी का अव्यक्त हो जाना है । संसार में जितनी भी निर्जीव वस्तुएँ है ,क्या वे प्रकट या व्यक्त नहीं है ? नहीं,वे भी व्यक्त ही है  ।जब  एक पहाड़ को तोडा जाता है तब भी वह पत्थर के रूप में व्यक्त है और जब उसी पत्थर को पीसा जाता है तब वह मिट्टी के रूप में व्यक्त है । उस मिट्टी से जब मकान बनाया जाता है तब वह उस मकान के रूप में  व्यक्त है । ठीक इसी प्रकार जब मनुष्य के स्थूल शरीर की मृत्यु होती है तो वह किसी अन्य प्राणी या पुनः मनुष्य के रूप में सदैव ही व्यक्त ही रहता है ।  इससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि अव्यक्त होने या व्यक्त होने का सम्बन्ध कम से कम इस स्थूल शरीर की जन्म-मृत्यु से तो नहीं है ।
                        अब प्रश्न यह उठता है कि जब व्यक्त-अव्यक्त का सम्बन्ध इस शरीर के जन्म-मृत्यु से नहीं है तो फिर गीता में भगवान श्री कृष्ण ने ऐसे कैसे कह दिया कि सभी मनुष्य जन्म से पहले भी अव्यक्त थे और मृत्यु के बाद भी अव्यक्त हो जाने वाले हैं केवल बीच में ही प्रकट या व्यक्त होते हैं ,अतः हे अर्जुन ! तुम्हे इस बारे में किसी भी प्रकार के शोक करने की आवश्यकता नहीं है । इसके दो कारण  है । पहला कारण तो यह कि ऐसा गीता के प्रारम्भ में ही कहा गया है जब अर्जुन की मनोदशा अपने सगे -सम्बन्धियों की युद्ध के दौरान होने वाली संभावित मृत्यु को सोचकर ख़राब हो रही थी । उस कारण से भगवान को इस भौतिक शरीर की मृत्यु और जन्म का उदाहरण देकर ही समझाना पड़ा क्योंकि अर्जुन की बुद्धि इसी लायक थी । हालाँकि भगवान ने जन्म -मृत्यु के लिए शरीर का नाम नहीं लिया परन्तु श्री कृष्ण यह जानते थे कि अर्जुन इस शरीर की मृत्यु और जन्म के बारे में ही समझेगा । दूसरा कारण यह कि अर्जुन शुरुआत में चाहे इसको इस स्थूल शरीर के जन्म-मृत्यु के बारे में समझे परन्तु जब उसकी मनोदशा सही हो जाएगी  तब वह इस बात की गूढता को समझ लेगा । इसी प्रकार इस श्लोक की गूढता को भी वही व्यक्ति भली भांति समझ पाया है जिसकी मनोदशा इस भौतिक संसार के दायरे से बाहर निकल कर स्वयं के भीतर प्रवेश कर गई हो । जब भीतर जाकर स्वयं को जानने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी ,इस श्लोक का गूढ़ार्थ प्रकट होने लगेगा अन्यथा इसका भावार्थ भी सदैव अव्यक्त ही रहेगा ।
क्रमशः
                                                      ॥ हरिः शरणम् ॥   

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