मैं यह कभी भी नहीं कहूँगा कि बीते हुए कल की कोई उपयोगिता नहीं है , बीता हुआ कल बेशक महत्वपूर्ण है । लेकिन बीते हुए कल को मात्र अपनी स्मृतियों में संजोये रखना अनुचित है । यह आपके मस्तिष्क में एक ताना-बाना बुनता है और इसी ताने - बाने को हम अपना संसार बना लेते हैं । बीते हुए कल की स्मृतियाँ ही सदैव आपके विचारों को प्रभावित करती है और मस्तिष्क में उठ रहे विचार ही आपका संसार निर्मित करते हैं । विचार सदैव ही स्मृतियों पर आधारित होते हैं और स्मृतियाँ केवल बीते हुए कल की ही हो सकती है ,"आज" की नहीं । "आज" को जीने के लिए आपका निर्विचार होना आवश्यक है । निर्विचार होना ही आपको "आज"आनंदित कर सकता है। मस्तिष्क में उठ रहे विभिन्न विचार आपको "आज" में रहने ही नहीं देंगे और इस प्रकार यह "आज"भी समाप्त होकर कुछ समय पश्चात् बीते हुए कल में परिवर्तित हो जायेगा । फिर प्रातः उठकर आप पुनः यही विचार करेंगे कि बीते हुए कल में तो हम कुछ भी नहीं कर पाए । इसी प्रकार धीरे धीरे समस्त "आज"मुठ्ठी में भरी रेत की तरह फिसलकर बीते हुए कल में बदल जायेंगे । जीवन भर आप बीते हुए कल को याद कर जीते रहेंगे और आप जानते ही हैं कि इतिहास में जीना कोई जीना नहीं होता है ।
मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि आपका इतिहास चाहे कितना ही स्वर्णिम रहा हो या कलुषित ,"आज" उस इतिहास को याद करते रहने की कोई कीमत नहीं है । इतिहास को याद करते हुए वही लोग जीते हैं ,जो "आज" को जीने का हौसला नहीं रखते । आपका संसार बीता हुआ कल ही क्यों हो ?आप "आज " बेहतर तरीके से जी कर इतिहास क्यों नहीं बना सकते ?बीते हुए कल की कमियों में सुधार कर लेने वाला ही बीते हुए कल का सही उपयोगकर्ता है । बीते हुए कल की स्मृतियां आपके मस्तिष्क में विचार पैदा कर उसे बोझिल बनाती है जबकि उस कल की कमियों को सुधार कर,गलतियों को न दोहराकर आप अपने "आज"को आनंद पूर्वक जीने की क्षमता पैदा कर लेते हैं । बीते हुए कल की उपयोगिता उस समय के अनुभव से लाभ उठाने तक ही सीमित है ,उस अनुभव की पुनरावृति करते रहने से कोई लाभ नहीं होने वाला । भले ही राम ने रावण से और पांडवों ने कौरवों से युद्ध तीर-कमानों और गदाओं से किये होंगे परन्तु आज इनका उपयोग कर कोई भी सेना युद्ध नहीं जीत सकती । वह अनुभव ,वैसा कौशल आज काम नहीं आएगा । आज अगर युद्ध जीतना है तो परमाणु-हथियार काम में लेने ही होंगे ।
आज अगर हम अपने संसार को बीते हुए कल से बनाते रहेंगे तो फिर किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाएंगे । इतिहास को याद करके कोई भी महान नहीं बना है । जितने भी व्यक्ति महान बने है-चाहे आदि गुरु शंकराचार्य हों,स्वामी दयानंद सरस्वती हो या स्वामी विवेकानंद ,सभी "आज"में जीकर ही महान बने है । उन्होंने बीते हुए कल की कमियों को दूर किया और "आज" को नयी सोच और नए संसार में ढालकर एक नया मार्ग बनाया । इसी कारण वे महान बने और एक स्वर्णिम इतिहास बने । "आज" हम उनकी महानता को याद करके मात्र ही जी नहीं सकते ,बल्कि उनके मार्ग की विशेषताओं को आत्मसात कर ही बेहतर जींदगी जी सकते हैं । हमारा संसार उन महान व्यक्तियों के जैसा ही नहीं होना चाहिए बल्कि उनके विचारों और सोच को अपने अनुरूप अपने जीवन में ढालते हुए ही होना चाहिए ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि आपका इतिहास चाहे कितना ही स्वर्णिम रहा हो या कलुषित ,"आज" उस इतिहास को याद करते रहने की कोई कीमत नहीं है । इतिहास को याद करते हुए वही लोग जीते हैं ,जो "आज" को जीने का हौसला नहीं रखते । आपका संसार बीता हुआ कल ही क्यों हो ?आप "आज " बेहतर तरीके से जी कर इतिहास क्यों नहीं बना सकते ?बीते हुए कल की कमियों में सुधार कर लेने वाला ही बीते हुए कल का सही उपयोगकर्ता है । बीते हुए कल की स्मृतियां आपके मस्तिष्क में विचार पैदा कर उसे बोझिल बनाती है जबकि उस कल की कमियों को सुधार कर,गलतियों को न दोहराकर आप अपने "आज"को आनंद पूर्वक जीने की क्षमता पैदा कर लेते हैं । बीते हुए कल की उपयोगिता उस समय के अनुभव से लाभ उठाने तक ही सीमित है ,उस अनुभव की पुनरावृति करते रहने से कोई लाभ नहीं होने वाला । भले ही राम ने रावण से और पांडवों ने कौरवों से युद्ध तीर-कमानों और गदाओं से किये होंगे परन्तु आज इनका उपयोग कर कोई भी सेना युद्ध नहीं जीत सकती । वह अनुभव ,वैसा कौशल आज काम नहीं आएगा । आज अगर युद्ध जीतना है तो परमाणु-हथियार काम में लेने ही होंगे ।
आज अगर हम अपने संसार को बीते हुए कल से बनाते रहेंगे तो फिर किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाएंगे । इतिहास को याद करके कोई भी महान नहीं बना है । जितने भी व्यक्ति महान बने है-चाहे आदि गुरु शंकराचार्य हों,स्वामी दयानंद सरस्वती हो या स्वामी विवेकानंद ,सभी "आज"में जीकर ही महान बने है । उन्होंने बीते हुए कल की कमियों को दूर किया और "आज" को नयी सोच और नए संसार में ढालकर एक नया मार्ग बनाया । इसी कारण वे महान बने और एक स्वर्णिम इतिहास बने । "आज" हम उनकी महानता को याद करके मात्र ही जी नहीं सकते ,बल्कि उनके मार्ग की विशेषताओं को आत्मसात कर ही बेहतर जींदगी जी सकते हैं । हमारा संसार उन महान व्यक्तियों के जैसा ही नहीं होना चाहिए बल्कि उनके विचारों और सोच को अपने अनुरूप अपने जीवन में ढालते हुए ही होना चाहिए ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
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