Monday, July 21, 2014

व्यक्त-अव्यक्त |-११

जो कुछ भी व्यक्त है,वह तो  अर्थपूर्ण है ही;परन्तु जो अव्यक्त है ,वह उससे भी अधिकसुन्दर और अर्थपूर्ण है 

                             मैं यह नहीं कहता कि बंधन सदैव ही अनुचित है बल्कि वह भी अर्थपूर्ण है । परन्तु मानव रुपी यंत्र का उद्देश्य किसी कम पर आकर अटक जाना नहीं है । जब हमें अधिक अर्थपूर्ण नज़र आ रहा है तो उस तरफ जाना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए । मैंने ३-४ दिन पहले कहा था कि मंदिर जाना अर्थपूर्ण तो है परन्तु मंदिर जाकर वहां से न लौटना  अधिक अर्थपूर्ण है । नियमित रूप से मंदिर जाना इस सन्दर्भ में अर्थपूर्ण है कि आप इस बात में विश्वास करते हैं कि कोई शक्ति जिसका नाम आप कुछ भी ले सकते हैं ,वह शक्ति है और उसको याद करते हुए आप मंदिर जाते हैं । मंदिर जाने का रास्ता संसार से विमुख होने का रास्ता है । मंदिर जाकर वापिस संसार में लौट कर पूर्ववत सभी कार्यों और भौतिकतावाद में सलग्न हो जाना आपके मंदिर जाने के महत्त्व को ही कम कर देता है। मंदिर से आप वापिस संसार में व्यक्त के रूप में प्रदर्शित होते हैं और सांसारिक क्रियाकलापों में रत होकर व्यक्त ही बने रह जाते हैं । जबकि होना यह चाहिए कि मंदिर जाकर आप संसार में वापिस भौतिक रूप से तो व्यक्त होकर लौटें परन्तु आत्मिक तौर पर संसार से अव्यक्त हो जाएँ,तभी मंदिर जाने की सार्थकता है ।
                        इस सम्बन्ध में मुझे एक कहानी याद आ रही है । एक व्यवसायी नियमित रूप से मंदिर जाता था और वापिस लौटने पर पाता कि उसका लड़का दूकान के लिए जा चूका है । व्यापारी अपने दैनिक कार्य से निवृत होकर दुकान जाता और लड़के को कहता कि यहाँ आने से पहले तूँ भी मंदिर होकर आया कर । लड़का हंस कर टाल देता और कहता कि मैं अभी मंदिर नहीं जाऊंगा और कभी अगर गया भी तो वापिस नहीं लौटूंगा । इस प्रकार कई साल बीत गए । प्रतिदिन व्यापारी अपने पुत्र को मंदिर जाने की कहता और पुत्र भी सदैव एक ही जवाब देता कि मैं जिस दिन मंदिर जाऊंगा,वापिस लौटूंगा नहीं ।
                       एक दिन जब व्यापारी मंदिर से घर पर लौटा तो देखता है कि आज उसका पुत्र दूकान नहीं गया है । उसने पुत्र से इसका कारण पूछा । पुत्र ने उत्तर दिया कि वह आज मंदिर जायेगा और वापिस नहीं लौटेगा । व्यापारी हंस दिया । उसने सोचा कि यह मजाक कर रहा है । व्यापारी पुत्र नहाकर तैयार हुआ और घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर घर से मंदिर जाने के लिए निकल पड़ा । व्यापारी ने भी चाबियाँ हाथ में ली और दूकान के लिए निकल पड़ा । दो घंटे बाद व्यापारी के पास एक व्यक्ति आता है और बताता है कि आपका पुत्र तो मंदिर में देह त्याग चूका है । व्यापारी परेशान सा मंदिर की तरफ दौड़ा । मंदिर में वह देखता है कि उसका पुत्र परमात्मा की मूर्ति के समक्ष दण्डवत हुए लेटा हुआ  है और प्राण उसमे नहीं है । अब व्यापारी के समझ मे आया कि उसने मंदिर से न लौटने का सत्य ही कहा था ।
                      व्यापारी का मंदिर जाकर वापिस लौटना मंदिर जाने की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह था और उसके पुत्र का मंदिर जाना सार्थक था । मंदिर जाना इस लिए अर्थपूर्ण है क्योंकि आप परमात्मा में विश्वास रखते है । मंदिर जाकर वहां से लौटना अधिक अर्थपूर्ण है क्योंकि आप परमात्मा में ही लीन होना चाहते हैं । परमात्मा अव्यक्त है इसलिए अधिक सुन्दर और अर्थपूर्ण है ।
क्रमशः
                                              ॥ हरिः शरणम् ॥ 

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