Sunday, July 20, 2014

व्यक्त-अव्यक्त | -१०

जो कुछ भी व्यक्त है,वह तो  अर्थपूर्ण है ही;परन्तु जो अव्यक्त है ,वह उससे भी अधिकसुन्दर और अर्थपूर्ण है 

                 मन में मोह को प्रायः हम समझ नहीं  पाते ,इस कारण से हम संसार से मुक्त होने का रास्ता  भी ढूंढ  नहीं पाते हैं । मन कभी भी नहीं चाहेगा कि आप नशा करने की लत को छोड़ दें । वह  नहीं चाहता कि जिस  में आपकी आसक्ति है आप उससे दूर होने का प्रयास  करें । इसीलिए संतजनों ने प्रत्येक स्थिति में मन  पर नियंत्रण करना आवश्यक बताया है । मन पर नियंत्रण रखना बहुत ही मुश्किल भी है और आसान भी । मुश्किल तो इस हिसाब से कि बिना इच्छाओं पर नियंत्रण स्थापित किये मन पर काबू नहीं पाया जा सकता और इच्छाओं पर नियंत्रण कोई विरला ही पा सकता है । आसान इस हिसाब से कह सकता हूँ कि जो मन मांगे आप उसके ठीक उलट चलें । इच्छाएं कभी भी और किसी की भी पूर्ण नहीं हुई है ,यह हर समय ध्यान रखें ,मन पर नियंत्रण अपने आप हो जायेगा ।
                   धन से मोह के बारे में हम पहले काफी बात कर चुके हैं । धन को भोगा जा सकता है ,दान किया जा सकता है और अगर दोनों तरह से इसका उपयोग नहीं किया जाये तो धन  का नाश होना अवश्यम्भावी है ।  जब धन की  यही गति होनी है ,तो फिर धन में मोह रखना किस काम का ? यह जब किसी भी व्यक्ति की समझ में मजबूती के साथ आकर आत्मसात हो जायेगा तभी धन से बंधन भी टूट जायेगा । एक एक करके बंधनों के टूटने की शुरुआत ही मुक्ति के मार्ग पर ,व्यक्त से अव्यक्त होने की राह पर प्रथम कदम रखना होगा । धन से विमोह होना ही प्रथमतः आवश्यक है ।
                     जन से मोह छूटना सबसे अधिक मुश्किल होता है । व्यक्ति इस संसार में अपने परिवार के साथ जब बरसों गुजार देता है तब परिवार के सदस्यों के साथ लगाव पैदा हो जाना स्वाभाविक है ।इस लगाव को हम गलत ढंग से ले लेते हैं । जैसे  बच्चे के साथ माँ ,दादा,दादी,पिता आदि निकट के रिश्तेदारों का लगाव होता है और  वे सब समझाते हैं कि बच्चे का लगाव हमारे साथ हैं । जबकि बच्चे का लगाव तात्कालिक होता है जबकि बड़ों का स्थाई । इस स्थाई लगाव को ही मोह कहा जाता है । मेरे पास गाँव से एक बुजुर्ग अपने पोते को कभी कभी ईलाज दिलाने लाते थे । मैं हर बार देखता कि बच्चा अपने दादा के कंधे पर सवार हुआ आता , जब कि बच्चे की उम्र करीब ५-६ साल थी । मैं उस बुजुर्ग को पूछा करता कि आप इसको कंधे पर उठाये क्यों आते हैं?उनका जवाब होता कि इस बच्चे का मेरे  प्रति बहुत अधिक लगाव है । यह मेरे पास ही सोता ,रहता और खाता है । मेरे बिना यह एक पल भी नहीं रह सकता । इसलिए यह यहाँ आने पर कंधे पर उठाने की जिद्द करता है और मैं उसके लगाव को देखते हए ऐसा करता हूँ । मैंने पूछा कि जिस दिन आप नहीं रहेंगे उस दिन इस बच्चे का क्या होगा ? वे बड़े ही देशी अंदाज़ में कहते कि तब यह रो रोकर पागल हो जायेगा । मैं उन्हें समझाता  कि ऐसा कदापि नहीं होगा परन्तु वे इसे मानने को तैयार ही नहीं थे । अचानक एक दिन वही बच्चा अपने पिता की अंगुली पकडे,पैदल चलते हुए मेरे पास ईलाज हेतु आया । उसके पिता के सिर पर केश नहीं थे । मैं समझ गया कि इस बच्चे  के दादा का निधन हो चूका है । मैंने उससे पूछा  कि इसके दादा कब  गुजरे ? उसने कहा २० दिन हो गए । मैंने कहा कि उनकी मृत्यु के बाद बच्चे का बुरा हाल हुआ होगा?उन्होंने इंकार किया और कहा कि दादा के जाते ही यह तो अपनी मां के पास रहने लगा । इस बच्चे पर तो दादा के जाने का असर ही नहीं हुआ ।
                     इस घटना से यह पता चलता है कि हम मोह ग्रस्त होते हैं ,न कि बच्चे । बंधे हुए हम हैं ,अपने बच्चों के साथ ,न कि बच्चे हमारे साथ। इसी कारण से हमारे बुढ़ापे में जब बच्चे हमारी तरफ ध्यान नहीं दे पाते तो हमें उनका व्यवहार उपेक्षा का महसूस होता है । इसका कारण एक मात्र यही है कि हम उनके साथ बंधे हुए अभी भी है जबकि वे हमसे बंधे हुए नहीं है ,और यह बंधन हमें  ही तोड़ना होगा । बधन हमें परमात्मा से दूर रखता है ।  बंधन से मुक्त होने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप अपने  प्रिय से लड़ झगड़ कर सम्बन्ध ही समाप्त कर लें । बंधन मुक्त होने का अर्थ है उस सम्बन्ध में आसक्ति न रखें । बंधन का सम्बन्ध तो अर्थपूर्ण ही है परन्तु जब आप बंधन से मुक्त हो जायेंगे तब वह आपको बंधन से अधिक अर्थपूर्ण और सुन्दर लगेगा । और जो अधिक अर्थपूर्ण है वह महत्वपूर्ण तो होगा ही ।
क्रमशः
                                    ॥ हरिः शरणम् ॥        

No comments:

Post a Comment