आने वाला कल भी बीते हुए कल की तरह ही आपके लिए संसार निर्मित करता है । इसका ज्ञान हमें नहीं होता । बीते हुए कल की स्मृतियाँ आपके संसार का निर्माण करती है जबकि आने वाले कल की कल्पनाएँ आपका संसार बनाती है । जो आप पूर्व में नहीं कर पाए उनकी स्मृति आपके भविष्य की कल्पना बन जाती है । स्मृतियों और कल्पनाओं के मध्य व्यक्ति झूलता रहता है और इसी उलझन में उसका "आज ", उसका वर्तमान भी उसके हाथ से निकल जाता है । याद रखें ,जब वर्तमान हाथ से निकल जाता है तब आप केवल हाथ मलते रह जाते हैं और इसके लिए संसार को दोष देने लगते हैं । प्रायः लोग इस संसार की निंदा भी इसीलिए करते हैं कि वे "आज" कुछ भी नहीं कर सके ।जबकि वर्तमान को जीना ,उसे सजाना संवारना ,अपना भविष्य बनाना ही है ।
स्मृतियों और कल्पनाओं की इस उधेड़बुन से आखिर कैसे पार पाया जा सकता है ? आज के जीवन में विषमता, इसी उधेड़बुन के कारण ही है । इस उधेड़बुन से बाहर आने के लिए शताब्दियों से संत-पुरुष हमें बतलाते आ रहे हैं,हमारे शास्त्र हमें निर्देशित कर रहे हैं परन्तु कमी हमारी स्वयं की है जो इस जंजाल से ,इस संसार से बाहर आना ही नहीं चाहते । इस उधेड़बुनसे बाहर आने का एक ही रास्ता है कि सबसे पहले हम हमारे भूतकाल से पीछा छुडाएं । हमारे यहाँ एक उक्ति बहुत ही प्रसिद्द है-"बीत गई सो बात गई "। इसका तात्पर्य है कि जो बात पूर्व में हो चुकी है,जो घटना घटित हो चुकी है,उसके बारे में आज और अब सोचने से कोई फायदा नहीं है । उस घटना को आज सोच-विचारकर भी पलटा नहीं जा सकता । जब हम बीते हुए घटनाक्रम को जरा सा भी परिवर्तित नहीं कर सकते तो फिर उसको स्मृतियों में रखकर भी हम क्या कर सकते हैं ? यह बात केवल कहने और सुनने की नहीं है बल्कि आत्मसात करने की है ।
परमात्मा का यह निर्णय मुझे बहुत ही अच्छा लगता है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को उसकी पूर्व जन्म की स्मृतियों से वंचित रखता है । अगर परमात्मा ऐसी व्यवस्था नहीं करता तो आज उन्ही पूर्व जन्म की स्मृतियों के कारण व्यक्ति का जीवन भी संकट में पड जाता । वह किधर का भी नहीं रहता-न तो इस जन्म का और न ही पूर्व जन्म का । यह परमात्मा की मनुष्य पर बड़ी अनुकम्पा है ।
अतः संसार में आनन्दमय जीवन जीना है तो भूतकाल की स्मृतियों को विस्मृत कर दें ,भविष्य की कल्पनाओं की उडान को थाम ले. आप स्वतः ही "आज" को जीने लगेंगे । आपको यह संसार सुन्दर और रुचिकर लगने लगेगा । परमात्मा "आज" में ही रहते हैं और अभी तत्काल ही आपको उपलब्ध है। बस,उनकी यही एक मात्र शर्त है कि "मुझे पाने वाला केवल आज में ही रहे,कल की स्मृतियों और कल्पनाओं में नहीं। मैं सदैव ही उसके साथ हूँ "।
॥ हरिः शरणम् ॥
स्मृतियों और कल्पनाओं की इस उधेड़बुन से आखिर कैसे पार पाया जा सकता है ? आज के जीवन में विषमता, इसी उधेड़बुन के कारण ही है । इस उधेड़बुन से बाहर आने के लिए शताब्दियों से संत-पुरुष हमें बतलाते आ रहे हैं,हमारे शास्त्र हमें निर्देशित कर रहे हैं परन्तु कमी हमारी स्वयं की है जो इस जंजाल से ,इस संसार से बाहर आना ही नहीं चाहते । इस उधेड़बुनसे बाहर आने का एक ही रास्ता है कि सबसे पहले हम हमारे भूतकाल से पीछा छुडाएं । हमारे यहाँ एक उक्ति बहुत ही प्रसिद्द है-"बीत गई सो बात गई "। इसका तात्पर्य है कि जो बात पूर्व में हो चुकी है,जो घटना घटित हो चुकी है,उसके बारे में आज और अब सोचने से कोई फायदा नहीं है । उस घटना को आज सोच-विचारकर भी पलटा नहीं जा सकता । जब हम बीते हुए घटनाक्रम को जरा सा भी परिवर्तित नहीं कर सकते तो फिर उसको स्मृतियों में रखकर भी हम क्या कर सकते हैं ? यह बात केवल कहने और सुनने की नहीं है बल्कि आत्मसात करने की है ।
परमात्मा का यह निर्णय मुझे बहुत ही अच्छा लगता है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को उसकी पूर्व जन्म की स्मृतियों से वंचित रखता है । अगर परमात्मा ऐसी व्यवस्था नहीं करता तो आज उन्ही पूर्व जन्म की स्मृतियों के कारण व्यक्ति का जीवन भी संकट में पड जाता । वह किधर का भी नहीं रहता-न तो इस जन्म का और न ही पूर्व जन्म का । यह परमात्मा की मनुष्य पर बड़ी अनुकम्पा है ।
अतः संसार में आनन्दमय जीवन जीना है तो भूतकाल की स्मृतियों को विस्मृत कर दें ,भविष्य की कल्पनाओं की उडान को थाम ले. आप स्वतः ही "आज" को जीने लगेंगे । आपको यह संसार सुन्दर और रुचिकर लगने लगेगा । परमात्मा "आज" में ही रहते हैं और अभी तत्काल ही आपको उपलब्ध है। बस,उनकी यही एक मात्र शर्त है कि "मुझे पाने वाला केवल आज में ही रहे,कल की स्मृतियों और कल्पनाओं में नहीं। मैं सदैव ही उसके साथ हूँ "।
॥ हरिः शरणम् ॥
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