कर्म ही सुख दुःख का आधार है । बिना कर्म किये किसी भी प्रकार के सुख दुःख प्राप्त होने असंभव है । इसका अर्थ यह हुआ कि जो व्यक्ति कर्म ही नहीं करेगा उसे सुख या दुःख प्राप्त ही नहीं होगा और जब सुख या दुःख प्राप्त ही नहीं होगा तो फिर जीवन में किसी भी प्रकार की कोई समस्या ही नहीं रहेगी । ऐसा सोचना भी गलत है क्योंकि ऐसा होना असंभव है। जैसा कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि इस संसार में कोई भी व्यक्ति क्षण भर के लिए भी कर्म किये बगैर रह ही नहीं सकता ।जब कर्म करने ही पड़ेंगे तो सुख और दुःख उस कर्म के फल के रूप में अवश्य ही आयेंगे । इसलिए न तो कोई व्यक्ति कर्म किये बिना रह सकता है और न ही वह सुख या दुःख से डरकर दूर ही भाग सकता है । अतः इस संसार में रहते हुए व्यक्ति को कर्म करने भी होंगे और उन कर्मों के फलस्वरूप सुख और दुःख दोनों का ही सामना करना पड़ेगा ।
संसार में दुःख और सुख क्या है ?अगर गहराई से देखा जाये तो सुख और दुःख व्यक्ति की मानसिक अवस्था मात्र है अन्यथा यहाँ किसी भी प्रकार का कोई सुख दुःख है ही नहीं । आपको कोई एक घटना दुखी कर देती है और उस घटना में थोडा सा परिवर्तन होते ही आप सुखी महसूस कर सकते हैं । यही सुख और दुःख को अनुभव करने का आधार है । एक छोटी सी घटना का उदाहरण देकर इस बात को स्पष्ट करने का प्रयास करता हूँ । एक सेठ दुकान पर बैठा अपना व्यापार कर रहा था । अचानक एक व्यक्ति दुकान पर आता है और सेठ को बताता है कि सेठजी आपका लड़का अभी अभी एक सड़क दुर्घटना में मारा गया है । सेठ काम धंधा छोड़कर लड़के का नाम ले लेकर विलाप करने लगता है । १० मिनट उपरांत दूसरा व्यक्ति आता है और सेठ को कहता है-"सेठजी,वह आपका लड़का नहीं है ,मृतक को पहचानने में भूल हो गई थी ,आपका तो लड़का यह रहा । वह तो कोई अन्य लड़का है । " तत्काल ही सेठ का विलाप करना बंद हो जाता है ।वह अपने पुत्र को गले लगा लेता है । अब वह आपने आपको सुखी समझता है । थोड़ी देर पहले वही सेठ विलाप करते हुए दुखी था और अभी वह विलाप बंद कर परमात्मा को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए अपने आप को सुखी समझ रहा है ।
वास्तव में इन १० मिनट के भीतर ऐसा क्या परिवर्तन हो गया जिसने एक व्यक्ति को पहले दुखी कर दिया और बाद में सुखी । इसके पीछे यह बात भी नहीं है कि दुर्घटना घटित ही नहीं हुई । दुर्घटना घटित भी हुई और उस दुर्घटना में सेठ पुत्र जैसा दिखने वाला एक लड़का भी मारा गया । फिर सेठ को पहले दुःख और बाद में सुख क्यों महसूस हुआ ? इसका एक मात्र कारण है सेठ की मानसिकता । सेठ पुत्र मोह की मानसिकता से ग्रस्त था । इसी मानसिकता के कारण उसे एक ही घटना से दुःख और सुख दोनों की अनुभूति हुई । वास्तव में देखा जाये तो पुत्र किसी का भी उस दुर्घटना में मारा गया हो सेठ को दुःख होना चाहिए था । समता का प्रारम्भ इसी भावना के साथ होता है कि सबका दुःख मेरा दुःख । इसके बाद ही व्यक्ति इस राह पर बढ़ाते हुए सुखः और दुःख को समान समझने लगेगा और यह अवस्था आध्यात्मिकता की अवस्था होगी । सांसारिकता से आध्यात्मिकता की ओर की यात्रा ।
॥ हरिः शरणम् ॥
संसार में दुःख और सुख क्या है ?अगर गहराई से देखा जाये तो सुख और दुःख व्यक्ति की मानसिक अवस्था मात्र है अन्यथा यहाँ किसी भी प्रकार का कोई सुख दुःख है ही नहीं । आपको कोई एक घटना दुखी कर देती है और उस घटना में थोडा सा परिवर्तन होते ही आप सुखी महसूस कर सकते हैं । यही सुख और दुःख को अनुभव करने का आधार है । एक छोटी सी घटना का उदाहरण देकर इस बात को स्पष्ट करने का प्रयास करता हूँ । एक सेठ दुकान पर बैठा अपना व्यापार कर रहा था । अचानक एक व्यक्ति दुकान पर आता है और सेठ को बताता है कि सेठजी आपका लड़का अभी अभी एक सड़क दुर्घटना में मारा गया है । सेठ काम धंधा छोड़कर लड़के का नाम ले लेकर विलाप करने लगता है । १० मिनट उपरांत दूसरा व्यक्ति आता है और सेठ को कहता है-"सेठजी,वह आपका लड़का नहीं है ,मृतक को पहचानने में भूल हो गई थी ,आपका तो लड़का यह रहा । वह तो कोई अन्य लड़का है । " तत्काल ही सेठ का विलाप करना बंद हो जाता है ।वह अपने पुत्र को गले लगा लेता है । अब वह आपने आपको सुखी समझता है । थोड़ी देर पहले वही सेठ विलाप करते हुए दुखी था और अभी वह विलाप बंद कर परमात्मा को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए अपने आप को सुखी समझ रहा है ।
वास्तव में इन १० मिनट के भीतर ऐसा क्या परिवर्तन हो गया जिसने एक व्यक्ति को पहले दुखी कर दिया और बाद में सुखी । इसके पीछे यह बात भी नहीं है कि दुर्घटना घटित ही नहीं हुई । दुर्घटना घटित भी हुई और उस दुर्घटना में सेठ पुत्र जैसा दिखने वाला एक लड़का भी मारा गया । फिर सेठ को पहले दुःख और बाद में सुख क्यों महसूस हुआ ? इसका एक मात्र कारण है सेठ की मानसिकता । सेठ पुत्र मोह की मानसिकता से ग्रस्त था । इसी मानसिकता के कारण उसे एक ही घटना से दुःख और सुख दोनों की अनुभूति हुई । वास्तव में देखा जाये तो पुत्र किसी का भी उस दुर्घटना में मारा गया हो सेठ को दुःख होना चाहिए था । समता का प्रारम्भ इसी भावना के साथ होता है कि सबका दुःख मेरा दुःख । इसके बाद ही व्यक्ति इस राह पर बढ़ाते हुए सुखः और दुःख को समान समझने लगेगा और यह अवस्था आध्यात्मिकता की अवस्था होगी । सांसारिकता से आध्यात्मिकता की ओर की यात्रा ।
॥ हरिः शरणम् ॥
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