Thursday, August 28, 2014

सुख -दुःख -११

                            सुख और दुःख के बारे में हम इस चर्चा को चाहे जितनी लम्बी खींच सकते हैं । भला सुख कोई क्यूँ नहीं चाहेगा ? सब सुख को ही चाहते हैं ,दुखी होना कोई भी नहीं चाहता  । फिर  भी दुःख तो जीवन में आयेगा ही क्योंकि दुःख, सुख का सहोदर है । सुख के पीछे  पीछे दुःख का आगमन अवश्यम्भावी है । आप किसी की भी जिंदगी का इतिहास उठाकर देख सकते है औए स्वयं का भी । जिस समय आप सुख प्राप्त करने के लिए उसका बीजारोपण करते हैं ,उसके साथ ही आप अपने लिए दुःख का बीज भी बो देते हैं जिसका आपको उस समय भान नहीं होता परन्तु जब सुख के पीछे दुःख आता है तब आपको सुख प्राप्ति के प्रयास में रही इस कमी का अहसास होता है । परन्तु अब आप इस दुःख को सहन करने के सिवाय कुछ भी नहीं कर सकते ।
                       अब प्रश्न यही उठता है कि इस सुख के पीछे पीछे आने वाले दुःख से बचने  के लिए क्या किया जाये ? एक बात याद रखें,व्यक्ति चाहे कितना ही चमकदार व्यक्तित्व वाला हो उसकी परछाई सदैव ही स्याह ही होगी । परछाई कभी भी चमकदार नहीं हो सकती । यही सुख के साथ  है । सुख चाहे कितना ही आनन्ददायक हो दुःख सदैव ही इसके विपरीत कष्टदायक होगा । दुःख रुपी परछाई तभी बनती है जब आप सुख की चमक  में अधिक ही डूब  जाते हो । परछाई किसी भी व्यक्ति या वस्तु की तभी बनती है जब उस पर प्रकाश की किरणे पड़ती है । जब व्यक्ति स्वयं को चमक से बचाए रखेगा तभी वह अपनी परछाई बनने से रोक सकता है । अतः जीवन में स्वयं को चमकदार बनाने का प्रयास न करे,सम्मान  की चाहना न करे  क्योंकि व्यक्ति अपने सम्मान को ठेस लगना कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकता । इसीलिए उसे अपना जातिगत अपमान,व्यक्तिगत अपमान दारुण दुःख लगता है ,जैसा की गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा  है ।
                     जब आप सम्मान  नहीं चाहेंगे,सम्मान ही नहीं बल्कि किसी वस्तु की किसी से भी कोई अपेक्षा नहीं रखेंगे तब आपको कभी भी किसी प्रकार का दुःख प्राप्त नहीं होगा । स्वयं के लिए कुछ प्राप्त करने की लालसा ही दुःख प्राप्त होने का कारण बनती है । अतः इस जीवन में यह गांठ बांध ले कि किसी से कुछ भी प्राप्त करने की कोई कामना नहीं रखेंगे । जितना  स्वयं से संभव होगा दूसरे की सहायता करेंगे ,बिना किसी कामना के । इस परमार्थ से जो सुख प्राप्त होगा वह चमक से दूर होगा और इस सुख की परछाई के रूप में कोई भी दुःख प्राप्त नहीं होगा । जिस सुख के बाद किसी भी प्रकार के दुःख का आगमन नहीं होता उस सुख को ही आनंद  कहते हैं ।
                            पूर्व मानव जन्म में किये हुए कर्मों के अनुसार इस जीवन में मिलने वाले सुख और दुःख को सहज भाव  से स्वीकार करें । सुख और दुःख प्राप्त होने की स्थिति में अपने आपको सम अवस्था में रखें । न तो सुख का स्वागत करें न ही दुःख का मान मर्दन करें । सभी को पूर्वजन्म के कर्मों का फल मानकर स्वीकार करें । ऐसी स्थिति में रहेंगे तो आप सुख में अतिउत्साहित भी नहीं होंगे और दुःख में व्यथित भी । यही आनंद की अवस्था है ।
                       उपसंहार के तौर पर मैंने आनंद की स्थिति प्राप्त करने के कुछ उपाय बताये हैं । एक बार आजमा कर देखें । आपका जीवन आनंद से सरोबार हो जायेगा । आनंद ही मुक्ति का द्वार है और आनंद ही परमात्मा ।
                                               ॥ हरिः शरणम् ॥ 

No comments:

Post a Comment