Thursday, August 21, 2014

सुख -दुःख -४

                               इस संसार में रहते हुए मुझे भी कुछ सुख-दुःख का अनुभव हुआ है । सुख का अनुभव कभी भी स्मृति में नहीं रहता परंतु दुःख का स्मरण व्यक्ति को ताउम्र रुलाता रहता है  । मैं भी इस दौर से गुजरा हूँ और अभी भी कई बार गुजरता हूँ । कई बार मैं सोचता हूँ कि अगर संसार में सुख अथवा दुःख नहीं होता तो क्या होता ? शायद तब व्यक्ति के लिए इस जीवन की कोई अहमियत ही नहीं होती । आज जिस प्रकार आतंकवादी  मानवता का क़त्ल कर रहे हैं  उसका एक मात्र कारण यही है  कि उन आतंकवादियों को किसी और के सुख दुःख की परवाह नहीं है ,मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि स्वयं के सुख दुःख की भी कोई परवाह  नहीं है । अगर उनको परवाह होती तो क्या वे इस रास्ते  पर चलना पसंद करते ? शायद,नहीं करते।
                         संसार में सुख सात गिनाये गए हैं जबकि दुःख अनगिनत है ।कहते हैं कि पहला  सुख निरोगी काया । संसार का सबसे बड़ा सुख स्वस्थ शरीर का होना है । अगर व्यक्ति का शरीर स्वस्थ नहीं है तो उसके जीवन में अन्य सुखों का होना न होना बेकार है । वह न तो जीवन का आनंद ले पायेगा और न ही किसी परिवारजन को लेने देगा । अतः स्वस्थ शरीर को प्रथम और सबसे बड़ा सुख कहा गया है । अंग्रेजी की एक कहावत है कि A HEALTHY MIND LIVES IN A HEALTHY BODY अर्थात एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन रहता  है । बिना स्वस्थ शरीर के व्यक्ति की मानसिकता भी स्वस्थ नहीं रह सकती । इस लिए यह सत्य ही कहा गया है कि "पहला सुख निरोगी काया "।  दूसरा सुख बताया गया है-"घर में माया "। घर में अथाह धन सम्पति हो तो व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्राकर की कोई कमी नहीं रहती । धन से व्यक्ति जीवन में उसका भोग करते हुए शारीरिक सुख प्राप्त कर सकता है ।
                           तीसरा सुख बताया गया है -"घर में संस्कारवान नारी "। व्यक्ति की धर्मपत्नी अगर सुसंस्कारित हो तो वह उस व्यक्ति के लिए सुख का कारण होती है । संस्कारित पत्नी घर को व्यवस्थित रखती है और अपनी संतान का भी लालन पालन कर संस्कारित करती है जिससे  भविष्य में संतान की तरफ से भी व्यक्ति निश्चिन्त हो जाता  है । ऐसे कई  परिवार मैंने देखें है जिसमे पत्नी का कर्कश व्यवहार होता है और फलस्वरूप उसकी  संतान संस्कारित नहीं हो पाती । इसी कारण से  व्यक्ति दोनों मोर्चों पर दुःख का अनुभव करता है-पत्नी के कर्कश स्वभाव के कारण और संतान के संस्कारित न होने के कारण । इसीलिए कहा जाता है कि पुत्र अगर संस्कारित हो  तो केवल एक घर में सुख का अनुभव होता है परन्तु अगर पुत्री सुसंस्कारित  हो तो वह दो परिवारों में  संस्कार का आधार तैयार करती है और सुख का लाभ प्रदान करती है ।
                   संसार का चौथा सुख बताया गया है-"पुत्र  आज्ञाकारी "। जिस व्यक्ति  का पुत्र उसका प्रत्येक आदेश मानाने को उद्यत हो ऐसा पिता अत्यंत सुखी माना जाता है । आधुनिक युग में ऐसे पुत्र मिलना दुर्भर होते जा रहे हैं । श्रवण कुमार  एतिहासिक हो गए है । पुत्र आज्ञाकारी होते  हैं तो व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन ही सुखमय बना रहता है ।
                                       ॥ हरिः शरणम् ॥

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