जब शंकर भगवान को अनुभव हो गया कि संसार मात्र एक सपना है, उससे अतिरिक्त वह कुछ नहीं है तो हमें भी मान लेना चाहिए कि उनको अवश्य ही सही अनुभव हुआ होगा । उनके अनुभव के असत्य होने का तो प्रश्न ही नहीं है । जिसको साक्षात् परमात्मा भी भजते हैं और जो स्वयं दिनरात परमात्मा को भजते हैं ,उनके अनुभव को अनुचित कहा भी कैसे जा सकता है । आम व्यक्ति तो हो सकता है अपने स्वार्थवश अपने अनुभव की मीमांसा अलग प्रकार से करदे परन्तु परमात्मा के अतिनिकट प्रतिनिधि ऐसा कर ही नहीं सकते । शकर भगवान् साक्षात् परमात्मा के ही रूप हैं और उनके अनुभव से हमें भी शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए ।
"उमा कहहूँ मैं अनुभव अपना । सत हरि भजन जगत सब सपना ॥"चोपाई में दो बातें महत्वपूर्ण है । पहली तो शंकर भगवान का इस संसार के बारे में अनुभव और दूसरी महत्वपूर्ण बात है इस ब्रह्माण्ड का सत्य । शंकर भगवान के अनुभव की चर्चा हमने की अब दूसरी महत्त्व की बात पर आते हैं । इस ब्रह्माण्ड में सब कुछ सत्य ही है,असत्य बिलकुल भी नहीं है । एक सत्य है परमात्मा को सदैव स्मृति में रखना । परमात्मा की स्मृति बनाये रखने को ही परमात्मा का भजन करना कहते हैं । भजन से तात्पर्य किसी पूजा पाठ, आरती या कर्मकांड से नहीं है । लोगों ने इन सबको बेवजह ही,बिना किसी आधार के भजन कहना प्रारम्भ कर दिया है । आप आरती कर रहे हैं,कीर्तन कर रहे हैं,जागरण देने में लगे हुए हैं या किसी प्रकार के अनुष्ठान में लगे हुए हैं ,जरा सोचिये आप परमात्मा को याद कर रहे हैं या ऐसा करने के पीछे आपका कोई स्वार्थ छिपा हुआ है अथवा कोई अन्य उद्देश्य है । जब अन्य कोई कारण है तो यह आपका भजन करना नहीं है । परमात्मा का भजन करने के लिए ऐसे किसी भी प्रकार के आडम्बर की आवश्यकता नहीं होती है ।
फिर हरि का भजन सत्य क्यों है और संसार सपना कैसे हैं ? परमात्मा ,इस ब्रह्माण्ड का सत्य है ,इसका रचनाकार वह स्वयं है जबकि आपके संसार के रचनाकार परमात्मा कदापि नहीं है ,संसार के रचनाकार आप स्वयं है । इसीलिये सभी जीवभूतों का परमात्मा एक है चाहे नाम अलग अलग हों जबकि संसार सबका अपना अपना और अलग अलग होता है । सब अपने अपने संसार का निर्माण अपनी कल्पनाओं से करते हैं और कल्पनाएँ कभी भी सत्य नहीं हो सकती । सभी कल्पनाएँ मात्र स्वप्न ही होती हैं । इसी कारण से संसार को एक सपना कहा गया है । स्मृति में रखना है तो परमात्मा को रखें क्योंकि वही एकमात्र और ध्रुव सत्य है । संसार तो अपनी कल्पनाओं से निर्मित है,अतः वह एक सपना मात्र है । शंकर भगवान के अनुभव को हमें आत्मसात करते हुए उसे यही सीख लेनी चाहिए।
॥ हरिः शरणम् ॥
"उमा कहहूँ मैं अनुभव अपना । सत हरि भजन जगत सब सपना ॥"चोपाई में दो बातें महत्वपूर्ण है । पहली तो शंकर भगवान का इस संसार के बारे में अनुभव और दूसरी महत्वपूर्ण बात है इस ब्रह्माण्ड का सत्य । शंकर भगवान के अनुभव की चर्चा हमने की अब दूसरी महत्त्व की बात पर आते हैं । इस ब्रह्माण्ड में सब कुछ सत्य ही है,असत्य बिलकुल भी नहीं है । एक सत्य है परमात्मा को सदैव स्मृति में रखना । परमात्मा की स्मृति बनाये रखने को ही परमात्मा का भजन करना कहते हैं । भजन से तात्पर्य किसी पूजा पाठ, आरती या कर्मकांड से नहीं है । लोगों ने इन सबको बेवजह ही,बिना किसी आधार के भजन कहना प्रारम्भ कर दिया है । आप आरती कर रहे हैं,कीर्तन कर रहे हैं,जागरण देने में लगे हुए हैं या किसी प्रकार के अनुष्ठान में लगे हुए हैं ,जरा सोचिये आप परमात्मा को याद कर रहे हैं या ऐसा करने के पीछे आपका कोई स्वार्थ छिपा हुआ है अथवा कोई अन्य उद्देश्य है । जब अन्य कोई कारण है तो यह आपका भजन करना नहीं है । परमात्मा का भजन करने के लिए ऐसे किसी भी प्रकार के आडम्बर की आवश्यकता नहीं होती है ।
फिर हरि का भजन सत्य क्यों है और संसार सपना कैसे हैं ? परमात्मा ,इस ब्रह्माण्ड का सत्य है ,इसका रचनाकार वह स्वयं है जबकि आपके संसार के रचनाकार परमात्मा कदापि नहीं है ,संसार के रचनाकार आप स्वयं है । इसीलिये सभी जीवभूतों का परमात्मा एक है चाहे नाम अलग अलग हों जबकि संसार सबका अपना अपना और अलग अलग होता है । सब अपने अपने संसार का निर्माण अपनी कल्पनाओं से करते हैं और कल्पनाएँ कभी भी सत्य नहीं हो सकती । सभी कल्पनाएँ मात्र स्वप्न ही होती हैं । इसी कारण से संसार को एक सपना कहा गया है । स्मृति में रखना है तो परमात्मा को रखें क्योंकि वही एकमात्र और ध्रुव सत्य है । संसार तो अपनी कल्पनाओं से निर्मित है,अतः वह एक सपना मात्र है । शंकर भगवान के अनुभव को हमें आत्मसात करते हुए उसे यही सीख लेनी चाहिए।
॥ हरिः शरणम् ॥
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