यह संसार हमारी सोच ,हमारे विचार और हमारी मानसिकता की अभिव्यक्ति मात्र है । हमारे इन्ही विचारों और इसी मानसिकता के कारण ही हमें किसी भी प्रकार के सुख अथवा दुःख का अनुभव होता है । यहाँ पर,इस भौतिक संसार में अगर सांसारिक मानसिकता से देखा जाये तो सुख और दुःख बराबर मात्रा चारों ओर बिखरे पड़े हैं और अगर आपकी मानसिकता या प्रवृति आध्यात्मिक है तो फिर सुख और दुःख नाम की कोई चीज कहीं है ही नहीं । जिस प्रकार यहाँ पर आर्थिक रूप से देखा जाये तो धन सम्पति जितनी इस संसार में बिखरी पड़ी है ,उसकी कुल मात्रा में किसी भी प्रकार का परिवर्तन संभव नहीं है । वह जितनी इस सृष्टि के प्रारम्भ में थी उतनी ही आज है और इतनी ही भविष्य में रहेगी । जिसके पास ज्यादा धन है वह अमीर कहलाता है और जिसके पास धन का अभाव है, वह गरीब कहलाता है । जब इस धन का स्थान परिवर्तन हो जाता है तब अमीर ,गरीब हो जाता है और गरीब अमीर । यह व्यवस्था परमात्मा ने बनायीं है और आदि काल से चली आ रही है । परन्तु क्या कोई व्यक्ति बिना धन सम्पति के भी अमीर हो सकता है ? हाँ,हो सकता है । जब व्यक्ति की सोच संसार से हटकर परमात्मा की ओर हो जाये । सांसारिक व्यक्ति आध्यात्मिक हो जाये । ऐसा हो जाने पर व्यक्ति समस्त संसार की सम्पति को परमात्मा की मानने लगता है । इससे उसकी सारी महत्वकांक्षाएं समाप्त हो जाती है । जिस व्यक्ति के मन में किसी भी प्रकार की कोई आकांक्षा नहीं रहती वही इस संसार में तत्काल ही सबसे अमीर व्यक्ति बन जाता है ।
ठीक इसी प्रकार सुख दुःख भी समान मात्रा में इस संसार में उपलब्ध है । आपकी जिंदगी में सुख का आगमन होता है और किसी की जिंदगी में दुःख का । आपका सुख किसी के लिए दुःख का कारण भी बन जाता है और किसी अन्य का सुख आपके दुःख का कारण बन सकता है । बरसात होना किसान के लिए सुख का कारण है तो धोबी के लिए दुःख का कारण । आपका पुत्र या पुत्र अपनी मर्ज़ी से कोई कार्य कर लेता है जो आको पसंद नहीं है तो वह कार्य आपको दुखी कर देता है जबकि उसे इससे सुख मिलता है । कहने का तात्पर्य यह है कि सुख और दुःख आपकी मानसिकता के अनुसार एक अनुभूति मात्र है अन्यथा सुख और दुःख नाम की कोई भी चीज इस संसार में नहीं है ।
जब आप संसारिकता छोड़ कर आध्यात्मिक बन जायेंग तब आप समस्त सुखों और दुखों की अनुभूति से ऊपर उठ जायेंगे । हमारी सबसे बड़ी कमी यही है कि हम स्वयं को सुखी देखना चाहते है । इसी सुख की आकांक्षा आपको दुखी भी कर देती है । पहले तो सुख प्राप्त करने के लिए अधिक शारीरिक परिश्रम से और फिर आपकी इच्छा के अनुकूल कम सुख की प्राप्ति मानने से और अंत में सुख केर शीघ्र तिरोहित हो जाने के भय से । इन तीनो के कारण आप उपलब्ध हुए सुख का भी आनंद नहीं ले सकते ।
॥ हरिः शरणम् ॥
ठीक इसी प्रकार सुख दुःख भी समान मात्रा में इस संसार में उपलब्ध है । आपकी जिंदगी में सुख का आगमन होता है और किसी की जिंदगी में दुःख का । आपका सुख किसी के लिए दुःख का कारण भी बन जाता है और किसी अन्य का सुख आपके दुःख का कारण बन सकता है । बरसात होना किसान के लिए सुख का कारण है तो धोबी के लिए दुःख का कारण । आपका पुत्र या पुत्र अपनी मर्ज़ी से कोई कार्य कर लेता है जो आको पसंद नहीं है तो वह कार्य आपको दुखी कर देता है जबकि उसे इससे सुख मिलता है । कहने का तात्पर्य यह है कि सुख और दुःख आपकी मानसिकता के अनुसार एक अनुभूति मात्र है अन्यथा सुख और दुःख नाम की कोई भी चीज इस संसार में नहीं है ।
जब आप संसारिकता छोड़ कर आध्यात्मिक बन जायेंग तब आप समस्त सुखों और दुखों की अनुभूति से ऊपर उठ जायेंगे । हमारी सबसे बड़ी कमी यही है कि हम स्वयं को सुखी देखना चाहते है । इसी सुख की आकांक्षा आपको दुखी भी कर देती है । पहले तो सुख प्राप्त करने के लिए अधिक शारीरिक परिश्रम से और फिर आपकी इच्छा के अनुकूल कम सुख की प्राप्ति मानने से और अंत में सुख केर शीघ्र तिरोहित हो जाने के भय से । इन तीनो के कारण आप उपलब्ध हुए सुख का भी आनंद नहीं ले सकते ।
॥ हरिः शरणम् ॥
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