मानस में राम कथा सुनाने के दौरान शिव-शंकर,पार्वती को इस संसार की नश्वरता को समझाते हुए कहते हैं-
उमा कहउँ मैं अनुभव अपना । सत हरि भजन जगत सब सपना ॥
शंकर भगवान कहते हैं कि हे उमा !यह मेरा अनुभव है कि यह संसार जो है. और जैसा हम इसे समझ रहे हैं,वह वैसा है, नहीं यह सत्य बात है । इस संसार में सत्य जो है वह यही है कि यह संसार सत्य नहीं है । फिर सत्य क्या है ?सत्य है ,परमात्मा का भजन करना ।
तुलसी ने इस चौपाई में दो बातें महत्वपूर्ण कही है । पहली -शंकर भगवान का अनुभव और दूसरा इस ब्रह्माण्ड का सत्य । अनुभव सदैव ही बीते हुए कल से मिलता है ,अनुभव इतिहास का ही एकहिस्सा है । जिस किसी भी व्यक्ति को इतिहास से अनुभव प्राप्त होता है ,उस व्यक्ति का जीवन कभी भी संकटों से भरा नहीं हो सकता । अनुभव इतिहास की पुनरावृति करना नहीं है बल्कि अनुभव इतिहास की एक सीख है । जब मैं कहता हूँ कि अनुभव की कोई कीमत नहीं है इसका तात्पर्य अनुभव को नकारना नहीं है बल्कि मेरा तात्पर्य इतिहास की पुनरावृति करने से है ,इतिहास को दोहराने से है । अपने अनुभव से कोई व्यक्ति अगर इतिहास को दोहराने का प्रयास करता है तो, ऐसे अनुभव की कीमत कुछ भी नहीं है । इसका कारण है कि इतिहास कभी भी दोहराया नहीं जा सकता । परमात्मा ने इस संसार में ,इस सृष्टि में कोई भी दो चीजें एक समान नहीं बनाई है,तो फिर इतिहास की पुनरावृति कैसे संभव हो सकती है ? इसीलिए मैं अनुभव की कीमत कुछ भी न होना कहता हूँ क्योंकि लोग प्रायः अपने अनुभव से इतिहास को दोहराने की कोशिश करते हैं । अनुभव से सीख जिंदगी में संकट न आने देने के लिए महती आवश्यकता है । मैं ऐसे अनुभव का समर्थक हूँ ।
भगवान शंकर ने अपने अनुभव से सीख ली है और इसी सीख का परिणाम है कि वे संसार में बिलकुल भी आसक्त नहीं है । संसार से दूर ,पहाड़ों और जंगलों में रहते हुए वे सदैव हरि नाम का स्मरण ही करते रहते हैं । उनकी धर्मपत्नी सदैव ही उनके साथ रहती आई हैं चाहे वह सती हो या पार्वती । परिवार उनका भी है । दो पुत्र हैं-गणेश और कार्तिकेय । परन्तु कभी आपने पढ़ा या सुना है कि उनकी परिवार के प्रति कोई आसक्ति रही है । मृगछाला ही उनका एक मात्र वस्त्र है ,नंदी उनकी सवारी है और विषयुक्त जीव उनके आभूषण है । भला ,ऐसे शंकर कभी और कहीं आसक्त हो सकते हैं ? इतिहास के अनुभव से सीख का ही परिणाम है,यह सब ।
॥ हरिः शरणम् ॥
उमा कहउँ मैं अनुभव अपना । सत हरि भजन जगत सब सपना ॥
शंकर भगवान कहते हैं कि हे उमा !यह मेरा अनुभव है कि यह संसार जो है. और जैसा हम इसे समझ रहे हैं,वह वैसा है, नहीं यह सत्य बात है । इस संसार में सत्य जो है वह यही है कि यह संसार सत्य नहीं है । फिर सत्य क्या है ?सत्य है ,परमात्मा का भजन करना ।
तुलसी ने इस चौपाई में दो बातें महत्वपूर्ण कही है । पहली -शंकर भगवान का अनुभव और दूसरा इस ब्रह्माण्ड का सत्य । अनुभव सदैव ही बीते हुए कल से मिलता है ,अनुभव इतिहास का ही एकहिस्सा है । जिस किसी भी व्यक्ति को इतिहास से अनुभव प्राप्त होता है ,उस व्यक्ति का जीवन कभी भी संकटों से भरा नहीं हो सकता । अनुभव इतिहास की पुनरावृति करना नहीं है बल्कि अनुभव इतिहास की एक सीख है । जब मैं कहता हूँ कि अनुभव की कोई कीमत नहीं है इसका तात्पर्य अनुभव को नकारना नहीं है बल्कि मेरा तात्पर्य इतिहास की पुनरावृति करने से है ,इतिहास को दोहराने से है । अपने अनुभव से कोई व्यक्ति अगर इतिहास को दोहराने का प्रयास करता है तो, ऐसे अनुभव की कीमत कुछ भी नहीं है । इसका कारण है कि इतिहास कभी भी दोहराया नहीं जा सकता । परमात्मा ने इस संसार में ,इस सृष्टि में कोई भी दो चीजें एक समान नहीं बनाई है,तो फिर इतिहास की पुनरावृति कैसे संभव हो सकती है ? इसीलिए मैं अनुभव की कीमत कुछ भी न होना कहता हूँ क्योंकि लोग प्रायः अपने अनुभव से इतिहास को दोहराने की कोशिश करते हैं । अनुभव से सीख जिंदगी में संकट न आने देने के लिए महती आवश्यकता है । मैं ऐसे अनुभव का समर्थक हूँ ।
भगवान शंकर ने अपने अनुभव से सीख ली है और इसी सीख का परिणाम है कि वे संसार में बिलकुल भी आसक्त नहीं है । संसार से दूर ,पहाड़ों और जंगलों में रहते हुए वे सदैव हरि नाम का स्मरण ही करते रहते हैं । उनकी धर्मपत्नी सदैव ही उनके साथ रहती आई हैं चाहे वह सती हो या पार्वती । परिवार उनका भी है । दो पुत्र हैं-गणेश और कार्तिकेय । परन्तु कभी आपने पढ़ा या सुना है कि उनकी परिवार के प्रति कोई आसक्ति रही है । मृगछाला ही उनका एक मात्र वस्त्र है ,नंदी उनकी सवारी है और विषयुक्त जीव उनके आभूषण है । भला ,ऐसे शंकर कभी और कहीं आसक्त हो सकते हैं ? इतिहास के अनुभव से सीख का ही परिणाम है,यह सब ।
॥ हरिः शरणम् ॥
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