Tuesday, August 5, 2014

तुलसी का संसार-1

                                  गोस्वामी तुलसीदासजी ने शकर भगवान के द्वारा यह तो कहला दिया कि संसार एक सपना है ,सत्य नहीं । सत्य तो परमात्मा का भजन करना ही है ,सदैव उस परमात्मा को ही याद करते रहे,स्वप्निल संसार में न खोएं । परन्तु तुलसी इस संसार में कैसे रहे और अपने स्व-निर्मित संसार को किस प्रकार जीया ? यह जानना आवश्यक है । संसार सबका अपना अपना होता है ,तो अवश्य ही तुलसी का भी अपना संसार होगा । कल्पना चाहे स्वयं के लिए हो या परमात्मा के लिए ,संसार का निर्माण अवश्य ही करती है । अतः यह कहना कि मेरा कोई संसार नहीं है ,एकदम मिथ्या है । स्मृति में चाहे आपकी निजी कल्पनाएँ हो अथवा परमात्मा को पाने की कल्पना हो ,संसार तो निर्मित हो ही जायेगा । याद रखें,यह संसार आपका स्वयं का होगा,इस संसार से किसी अन्य का किसी भी प्रकार का कोई लेना देना नहीं है ।  जब सबका अपना अपना संसार होता है और सब अपने अपने संसार में रहते है तो फिर किसी को भी संसार की निंदा करने का कोई हक़ नहीं है ।
              आइये,अब जरा तुलसी के संसार पर नज़र डालते हैं ।
                                तुलसी ममता राम सों,समता सब संसार ।
                                राग न रोष न दोष दुःख,"दास" भये भव पार ॥
                      तुलसी कहते है कि मनुष्य ममता रखने की अपनी स्वाभाविक आदत से छुटकारा पा ही नहीं सकता । जिस किसी ने इस धरा पर जन्म  लिया है वे सब किसी न किसी के साथ ,किसी न किसी रूप में ममता के बंधन में अवश्य ही  बंधे हैं । जब इस ममता से छूटना असंभव ही है तो फिर यह ममता संसार और परिवार के साथ न रखकर परमात्मा के साथ ही रखनी चाहिए । परमात्मा से ममता ही मुक्ति का द्वार खोलती है । मुक्ति इस स्व-निर्मित संसार की कल्पनाओं,कामनाओं और इच्छाओं से,जो कभी भी पूरी नहीं  होती ।
                       आपकी कल्पनाओं से निर्मित इस संसार के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए ? तुलसीदास जी कहते है -समता का । समता का अर्थ है सबको सामान दृष्टि से देखना और व्यवहार करना । जब संसार के साथ समता हो जाती है तो फिर न तो किसी भी प्रकार का राग होगा,न रोष होगा ,न ही कोई दुःख रहेगा और न ही किसी में कोई दोष दिखाई देगा । जब राग,रोष,दोष और दुःख ,इनमे से कुछ भी नहीं  होगा तो ऐसा आपका बनाया संसार भी आलोच्य नहीं होगा ।
                       संसार की आलोचना का आधार उपरोक्त वर्णित चारों कारण ही हैं । जब इनमे से कोई  एक कारण भी आपमें नहीं रहेगा तो आपका संसार स्वतः ही आपकी दृष्टि से ओझल हो जायेगा । इसी को भव सागर से पार होना कहते हैं ।  गोस्वामीजी कहते हैं की ज्योंही मैंने राम से,परमात्मा से ममता की,मेरे संसार में समता आ गयी । मेरे में से राग,रोष ,दोष और दुःख आदि सभी दोष दूर हो गए । इस प्रकार तुलसी ने परमात्मा का "दास"बनकर इस संसार सागर को पार कर लिया ।
                ऐसा संसार बनाया था महाकवि तुलसी ने ,उनका अनुभव हमें यही सीख देता है कि ममता ,परमात्मा के साथ रखें अपनी स्वार्थ हेतु की गई कल्पनाओं के साथ नहीं ।
क्रमशः
                              ॥ हरिः शरणम् ॥  

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