करण
(Instruments
to perform Act)
अधिष्ठान और कर्ता के बाद कर्मों की
सिद्धि के लिए महत्वपूर्ण भूमिका करण की होती है |करण उन साधनों को कहते हैं जिसका
उपयोग कर्ता कर्म करने के लिए करता है |मनुष्य जीवन में ईश्वर ने पांच
ज्ञानेन्द्रियाँ,पांच कर्मेन्द्रियाँ और बुद्धि प्रदान की है |अब यह सब कर्ता पर
निर्भर करता है कि इन साधनों का सदुपयोग किस तरह से करे कि कर्मों से सिद्धि
प्राप्त की जा सके |सभी मनुष्यों में उपरोक्त सभी करण अर्थात साधन समान रूप से
विद्यमान है ,फिर भी कोई मनुष्य सफलता के शिखर को छू रहा होता है और कोई अभी भी
सफलता के लिए संघर्षरत है |यह सब शेष बचे चार संयोगों पर भी निर्भर करता है |
इन साधनों के अतिरिक्त अन्य
साधन व्यक्ति को संसार से प्राप्त करने होते हैं |जिसके लिए मनुष्य को अपने स्तर
पर प्रयास करना होता है |बिना प्रयास के ये साधन किसी को भी उपलब्ध नहीं हो सकते
|एक साधन प्रायः दूसरे साधन को प्राप्त करने के लिए एक आधार का कार्य करता है
|जैसे आपको एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए बस,रेल अथवा वायुयान से यात्रा
करने की आवश्यकता होती है |यह साधन सुलभ हो इसके लिए धन की आवश्यकता होती है |यहाँ
धन आधार है यात्रा का साधन उपलब्ध कराने के लिए |इस प्रकार सभी साधनों की एक लम्बी
श्रंखला बनती जाती है जिसमे प्रत्येक साधन यानि करण की अपनी अपनी भूमिका होती है और
इनकी भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण होती है |
इस प्रकार हम देखते हैं कि करण दो प्रकार के होते हैं –प्रथम जो हमें अपने
शरीर के साथ उपलब्ध होते है और दूसरे वो जिनको प्राप्त करने के लिए इन्हीं करण या
साधनों की भूमिका होती है |अब यह सब कर्ता पर निर्भर करता है कि वो उपलब्ध करण का
सदुपयोग करते हुए अपना उत्थान कैसे करे |जन्म के साथ उपलब्ध करण का सम्बन्ध तो
पूर्वजन्म के कर्मों के कारण बने प्रारब्ध से होता है |परन्तु इन करण का सदुपयोग
करते हुए अन्य आवश्यक करण प्राप्त करना कर्ता के क्षेत्र एवं क्षमता के अंतर्गत
होता है |केवल साधनों के अभाव का रोना रोकर आप अपनी जिम्मेवारी से नहीं बच सकते |
आज संसार में ऐसे कई उदाहरण हैं |यहाँ दुर्घटनावश हुए विकलांग ने संसार की सबसे
ऊँची छोटी एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की है |जन्मांध व्यक्ति ने प्रतियोगी परीक्षा
में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है |करण से ज्यादा महत्वपूर्ण कर्ता है |वह उनका
उपयोग कैसे करता है,यह उसके विवेक पर निर्भर करता है |
|| हरिः शरणम् ||
|| हरिः शरणम् ||
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