Friday, November 8, 2013

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार |-१५

क्रमश:१५
                  गीता में कर्म तीन प्रकार के बतलाये गए हैं -कर्म,विकर्म और अकर्म|कर्म को आप सकाम कर्म भी कह सकते हैं ,जो की किसी निश्चित उद्देश्य को ध्यान में रख कर किये जाते हैं|                
                             जब सकाम कर्म किये जाते हैं और उनसे उद्देश्य (Target)पूरा नहीं हो पाता तब ये कर्म लघु अवधि स्मृति(S.T.M.) के रूप में  Hippocampus में जमा(Collect) हो जाते हैं और उद्देश्य की प्राप्ति के लिए Hypothalamus द्वारा पुनः कर्म करने के आदेश कर्मेन्द्रियों(Senses of act) को दिए जाते है |यह क्रम न टूटने वाले चक्र(Vicious cycle) में परिवर्तित हो जाता है और बार बार यही प्रक्रिया दोहराती(Repetition) जाती है |अंत में या तो उद्देश्य पूरा हो जाता है अथवा नहीं |नहीं की स्थिति में मृत्यु बाद पुनर्जन्म इन अधूरे उद्देश्य यानि कामनाओं को पूरा करने के लिए अवश्यम्भावी है|उद्देश्य पूर्ण हो जाने की स्थिति में व्यक्ति को कर्म के प्रति आसक्ति पैदा हो जाती है या फिर उद्देश्य और विशाल हो जाता है |ऐसे में व्यक्ति फिर से सकाम कर्म के चक्र से नहीं निकल पाता,ऐसे में पुनर्जन्म से मुक्ति कैसे संभव हो सकती है ?
                          विकर्म तो ऐसे कर्म है जो सकाम कर्म के बिलकुल ही उल्ट(Opposite) होते हैं |ऐसे कर्म जो दूसरे को हानि (Loss) पहुँचाने के उद्देश्य से किये जाते हों ,वे समस्त कर्म विकर्म कहलाते हैं |ये कर्म क्रोध,घृणा,अहंकार और भय के कारण किये जाते हैं |इन कर्मों में पीयूष ग्रंथि (Pitutary gland)के द्वारा Hormones का श्राव होता है जो Adrenal ग्रंथि (Supra renal gland)से Adrenaline hormone का श्राव (Secretion)कराती है जो ऐसे कर्म करवाते हैं जो क्रोधवश,घृणास्पद ,अहंकारयुक्त और भयवश किये जाते हैं |इन कर्मों के लिए पीयूष ग्रंथि(Pitutary gland) को  आदेश Hypothalamus से मिलते हैं और कर्म हो जाने पर सीधे Hippocampus द्वारा दीर्घ कालीन स्मृति(L.T.M.) में बदलकर Neocortex में संचित(Store) कर दिए जाते हैं |मृत्यु के समय ये सब चुम्बकीय तरंगों के (Magnetic waves)रूप में (चित्त )आत्मा के साथ शून्य (Space)में चले जाते हैं |विकर्म का फल बड़ा ही भयावह होता है |आत्मा उनका विश्लेषण(Analysis) कर नीच योनी के शरीर कर्मफल भोगने हेतु उपलब्ध करवाती है |
                            गीता में तीसरे प्रकार के जो कर्म बताये गए हैं ,वे कर्म ,सम्पादित होने के बाद कर्म(Act) से अकर्म(No act)) में बदल जाते हैं |जो कर्म,अकर्म(Act to in-act) में बदल जाते हैं वे है -निष्काम कर्म (Act without any target)अर्थात् ऐसे कर्म जो बिना किसी कामना के किये जाते हों जैसे समाज सेवा,असहाय की सहायता ,बीमार की सेवा सुश्रुसा आदि|दूसरे कर्म जो अकर्म बन जाते हैं वे हैं ऐसे कर्म जो ईश्वर को समर्पित होकर ईश्वर के लिए (Act for God)ही किये जाते हैं |ये कर्म होते तो सकाम कर्म है(Targeted act) अर्थात् किसी उद्देश्य को लेकर किये जाते हैं परन्तु ईश्वर का कार्य(Act of God) मान कर किये जाते हैं |इसके उदहारण है -वृद्ध माता-पिता की सेवा करना,संतान का लालन-पालन करना,गौ-पालन और उसकी सेवा करना आदि|ये कर्म भी अकर्म में परिवर्तित हो जाते हैं |तीसरे प्रकार के कर्म जो कि बाद में अकर्म हो जाते हैं वे भी होते तो सकाम कर्म ही है ,किसी निश्चित कामना के लिए होते हैं और स्वयं के लिए होते हैं परन्तु कर्मफल ईश्वर को दे दिया जाता है अर्थात् कर्म-फल त्याग(Detachment from the result of act) दिया जाता है |इसके उदाहरण है व्यापार करना परन्तु उसका फल यानि लाभ या हानि (Profit or loss) ईश्वर को समर्पित करते हुए त्याग देना,चिकित्सक द्वारा स्वयं के लाभ के लिए चिकित्सा भले ही करना परन्तु उपचार का परिणाम(Result of treatment) त्याग कर ईश्वर को समर्पित कर देना(Doctor treats,God cures) ,किसी भी विद्यार्थी द्वारा परिक्षा की तैयारी सफल होने के उद्देश्य से करना परन्तु जो भी परिणाम आये उसे ईश्वर को समर्पित करते हुए त्याग देना आदि|उपरोक्त तीनो ही प्रकार के कर्म,बाद में अकर्म में परिवर्तित हो जाते है और उनका प्रभाव नए जन्म (Reincarnation)पर बिलकुल भी नहीं होगा |
                       कर्म-योग में मुक्ति का जो वैज्ञानिक आधार है उसमे कर्म के प्रति या कर्मफल के प्रति आसक्ति (Attachment with act or result of act ) का न होना ही है |जब कर्म किसी उद्देश्य को लेकर किये जाते हैं तब उसे सकाम कर्म कहा जाता है |परन्तु जब कर्म बिना किसी उद्देश्य के ,केवल ईश्वर के कर्म समझ कर किये जाते हैं तब वे निष्काम कर्म कहलाते हैं |ऐसे कर्म फिर अकर्म हो जाते हैं |अर्थात ऐसे कर्मों को करने के लिए Hippocampus द्वारा जो आदेश पीयूष ग्रंथि(Pitutary gland) के माध्यम से या मस्तिष्क के अन्य भागों के माध्यम से कर्मेन्द्रियों (Senses of act)को दिए जाते हैं उनसे कर्म तो कर लिए जाते हैं परन्तु उन कर्मों के उपरांत वापिस Hippocampus को कोई भी ऐसी संवेदी सूचनाएं(Sensory information in form of sensory signals) नहीं मिल पाती जिन्हें कि Hippocampus को स्मृति  में बदलना पड़े |ऐसे कर्मों का अंकन(Recording) जब Hippocampus द्वारा स्मृति(Memory) के रूप में नहीं किया जायेगा तो Neocortex को भी कोई सूचना नहीं मिल पायेगी और मृत्यु के समय आत्मा के साथ इनकी चुम्बकीय तरंगे(Magnetic waves) नहीं जाएँगी|फिर आत्मा को किसी नए शरीर की तलाश भी नहीं करेगी और चुम्बकीय तरंगों रुपी आत्मा पुनः अपने मूल श्रोत परम चुम्बकीय क्षेत्र(Para magnetic field) अर्थात परम ब्रह्म परमात्मा में जाकर उसके आत्मसात हो जायेगी|
                        गीता में  कर्म-योग में तीन प्रकार से मुक्ति के उपाय बताये गए हैं-निष्काम कर्म,ईश्वर के लिए कर्म और कर्मफल का त्याग |तीनों ही के अंतर्गत किये  गए कर्मों का वैज्ञानिक रूप से Hippocampus के द्वारा Neocortex में स्मृति के रूप में अंकन (Record as memory)संभव नहीं है |इस प्रकार ऐसे कर्म मुक्ति के द्वार(Entrance gate for freedom) हैं |
क्रमश:
                              || हरिः शरणम् ||
                          

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