Thursday, November 28, 2013

प्रारब्ध के पञ्च-संयोग -कर्ता(Five factors of destiny-One who act)

                             
कर्ता(DOER)
प्रारब्ध के निर्माण और कर्मों की सिद्धि के लिए जो पञ्च-संयोग गीता में बतलाये गए हैं उनमे सबसे महत्वपूर्ण है –कर्ता |अनुकूल अधिष्ठान का प्राप्त होना आप के पूर्वजन्म के कर्मों के आधार पर बने प्रारब्ध पर निर्भर करता है,जबकि कर्ता आप स्वयं है |आप कर्ता के रूप में स्वतन्त्र है ,कोई भी कर्म करने के लिए |यह स्वतंत्रता केवल मनुष्य को ही प्रदान की गयी है |मनुष्य के अतिरिक्त अन्य जीव कर्म अवश्य करते हैं लेकिन उनके द्वारा किये जा रहे कर्मों का नियंत्रण उनके पूर्व में मानव जीवन में किये गए कर्मों के प्रारब्ध के पास होता है |ये प्राणी अपनी इच्छा अथवा बुद्धि को कार्य में लेते हुए कर्म करने को स्वतन्त्र नहीं है |
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कर्ता भी तीन प्रकार के बताये हैं –सात्विक,राजसिक और तामसिक |सात्विक कर्ता दोष रहित,अहंकार के वचन न बोलने वाला,धैर्य और उत्साह से युक्त,कार्य के सिद्ध या असिद्ध होने पर हर्ष या शोक से दूर और अन्य किसी भी विकार से रहित होता है |राजसिक कर्ता आसक्ति से युक्त,कर्मों के फलों को चाहनेवाला,लोभी,दूसरों को कष्ट देनेवाला,अशुद्धाचारी तथा हर्ष-शोक से लिप्त होता है |जबकि तामसिक कर्ता अयुक्त,शिक्षा से रहित,घमंडी,धूर्त,दूसरों की जीविका का नाश करनेवाला,आलसी,और दीर्घसूत्री अर्थात प्रत्येक कार्य को आगे के लिए टालने वाला होता है |
आप किस प्रकार के कर्ता हैं यह कुछ हद तक आपको प्रारब्ध के अनुसार मिले अधिष्ठान पर निर्भर करता है |परन्तु आप अपने बुद्धि और विवेक को काम में लेते हुए अपने कर्ता  होने का प्रकार भी बदल सकते हैं |यह अधिकार आपको इसलिए प्रदान किया गया है जिससे आप जन्म दर जन्म निरंतर सुधार करते हुए उच्चत्तम स्थिति को उपलब्ध हों |  एक कर्ता के रूप में आप अपने भाग्य या प्रारब्ध को दोष नहीं दे सकते |कर्ता के रूप में कर्म करते हुए आप असंभव सी प्रतीत होने वाली उपलब्धियां भी प्राप्त कर सकते हैं |

                     || हरिः शरणम् ||  













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