समय और स्थान के बाद सबसे महत्वपूर्ण है -कारण |प्रत्येक घटनाक्रम या व्यवस्था या ऐसी ही कोई अन्य कार्य के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है |जबी भी आप कोई कर्म करते हैं ,उस कर्म के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है |एक विद्यार्थी परिक्षा की तैयारी इसलिए करता है कि वह उत्तीर्ण हो |आप अपने बच्चे का पालन पोषण इसलिए करते हैं कि बड़ा होकर वृद्धावस्था में वह आपका सहारा बने |आप आज अर्थार्जन इसलिए करते हैं कि आप अपना जीवन सुखपूर्वक जी सकें |अगर कोई भी कारण न हो तो मनुष्य कर्म से विमुख हो जाता है ,और हो सकता है इस संसार चक्र का चलना ही दुर्भर हो जाये |बिना कारण के आप कोई भी कार्य करने को विवश ही नहीं होंगे |इसी लिए गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् |
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः || गीता ३/५ ||
अर्थात्,निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किये नहीं रहता है;क्योंकि सारा मनुष्य-समुदाय प्रकृतिजनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है |
यहाँ स्पष्ट है कि कर्म करने के पीछे प्रकृति द्वारा पैदा हुए गुण ही कारण होते हैं |ये गुण इन्द्रियों के विषय ,कोई कामना,इच्छा आदि होते हैं |इन्ही के कारण मनुष्य कर्म करने को विवश होता है |
प्रत्येक कारण(Cause) एक अपना प्रभाव(Effect) भी पैदा करता है और यह प्रभाव फिर से किसी अन्य के लिए कारण बन जाता है |इस प्रकार यह कारण और प्रभाव का एक ऐसा चक्र या वर्तुल (Cycle) बन जाता है जिसे तोडना साधारण व्यक्ति के वश में नहीं होता है |कारण-प्रभाव-कारण के चक्र को इस प्रकार भी अभिव्यक्त कर सकते हैं -- कर्म( कारण) से पुनर्जन्म (प्रभाव)और पुनर्जन्म (कारण) से फिर कर्म(प्रभाव) |यही वर्तुल अनवरत चलता रहता है |इस चक्र को तोडने के लिए कर्म का ज्ञान आवश्यक हो जाता है |कर्म ही आपको पुनर्जन्म की ओर ले जाते हैं और कर्म ही आपको मुक्त करते हैं |यही सत्य है |
|| हरिः शरणम् ||
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् |
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः || गीता ३/५ ||
अर्थात्,निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किये नहीं रहता है;क्योंकि सारा मनुष्य-समुदाय प्रकृतिजनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है |
यहाँ स्पष्ट है कि कर्म करने के पीछे प्रकृति द्वारा पैदा हुए गुण ही कारण होते हैं |ये गुण इन्द्रियों के विषय ,कोई कामना,इच्छा आदि होते हैं |इन्ही के कारण मनुष्य कर्म करने को विवश होता है |
प्रत्येक कारण(Cause) एक अपना प्रभाव(Effect) भी पैदा करता है और यह प्रभाव फिर से किसी अन्य के लिए कारण बन जाता है |इस प्रकार यह कारण और प्रभाव का एक ऐसा चक्र या वर्तुल (Cycle) बन जाता है जिसे तोडना साधारण व्यक्ति के वश में नहीं होता है |कारण-प्रभाव-कारण के चक्र को इस प्रकार भी अभिव्यक्त कर सकते हैं -- कर्म( कारण) से पुनर्जन्म (प्रभाव)और पुनर्जन्म (कारण) से फिर कर्म(प्रभाव) |यही वर्तुल अनवरत चलता रहता है |इस चक्र को तोडने के लिए कर्म का ज्ञान आवश्यक हो जाता है |कर्म ही आपको पुनर्जन्म की ओर ले जाते हैं और कर्म ही आपको मुक्त करते हैं |यही सत्य है |
|| हरिः शरणम् ||
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