भौतिक शरीर के बारे में कभी भी कोई दावा नहीं कर सकता कि कल यह रहेगा या नहीं?परन्तु आत्मिक शरीर कल भी था ,आज भी है और कल भी रहेगा |अतः आध्यात्मिक बनें न कि भौतिकता वादी |
जन्म-मरण , बुढ़ापा और बीमारी ,यह सब भौतिक शरीर को प्रभावित करते हैं,आत्मिक शरीर को नहीं |आत्मिक शरीर को मज़बूत बनाये रखें,तभी भौतिक शरीर से जीवन के आनंद (सच्चिदानंद) को प्राप्त कर सकेंगे |
अध्यात्म यह नहीं है कि ईश्वर की पूजा एवं आराधना के नाम पर तरह तरह के पाखंड किये जाएँ |यह तो अपने आप को सरासर धोखा देना हुआ |अध्यात्म तो मात्र "स्व" को (अपने आप को ) जानने का नाम है |
केवल घर-बार छोड़कर दर दर भटकने से परमात्मा थोड़े ही उपलब्ध होता है |परमात्मा के दर्शन तो स्वयं के भीतर झांकने एवं स्वयं को पहचानने से होते हैं|घर से दूर होना तो केवल मात्र आपको भीतर झांकने के लिए वातावरण उपलब्ध करवाता है |अगर संसार से दूर जाकर भी आप संसार के बारे में सोचते है,तो इसका अर्थ यही है कि आप अभी भी संसार में बने हुए हैं |
|| हरिः शरणम् ||
जन्म-मरण , बुढ़ापा और बीमारी ,यह सब भौतिक शरीर को प्रभावित करते हैं,आत्मिक शरीर को नहीं |आत्मिक शरीर को मज़बूत बनाये रखें,तभी भौतिक शरीर से जीवन के आनंद (सच्चिदानंद) को प्राप्त कर सकेंगे |
अध्यात्म यह नहीं है कि ईश्वर की पूजा एवं आराधना के नाम पर तरह तरह के पाखंड किये जाएँ |यह तो अपने आप को सरासर धोखा देना हुआ |अध्यात्म तो मात्र "स्व" को (अपने आप को ) जानने का नाम है |
केवल घर-बार छोड़कर दर दर भटकने से परमात्मा थोड़े ही उपलब्ध होता है |परमात्मा के दर्शन तो स्वयं के भीतर झांकने एवं स्वयं को पहचानने से होते हैं|घर से दूर होना तो केवल मात्र आपको भीतर झांकने के लिए वातावरण उपलब्ध करवाता है |अगर संसार से दूर जाकर भी आप संसार के बारे में सोचते है,तो इसका अर्थ यही है कि आप अभी भी संसार में बने हुए हैं |
|| हरिः शरणम् ||
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