Tuesday, November 26, 2013

प्रारब्ध के पञ्च-संयोग (Five factors of destiny)

                                    प्रत्येक व्यक्ति की मानव जीवन में तीन कामनाएं ही प्रमुख होती हैं-प्रसिद्धि,धन-प्राप्ति और प्रतिष्ठित पद |लेकिन प्रत्येक को अपनी इच्छानुसार सभी मिल जाये ,यह आवश्यक नहीं है |यहाँ जो भी मिलता है,सब कुछ प्रारब्ध के अनुसार ही मिलता है |रामचरित मानस में गोस्वामीजी लिखते हैं-
                                      सुनहु भरत भावी प्रबल,बिलखि कहेऊ मुनि नाथ |
                                      हानि लाभ जीवन मरण ,जस अपजस विधि हाथ ||
           यहाँ मानस में दशरथ की मृत्यु हो जाने के बाद जब भरत ननिहाल से अयोध्या पहुंचते हैं और अपने पिता के शव को देखकर विलाप करते है तथा अपनी माँ केकैयी को भला-बुरा कहते हैं ,तब मुनि वशिष्ठ उन्हें समझाते हैं कि जीवन-मृत्यु,हानि-लाभ और यश-अपयश मनुष्य के हाथ में न होकर विधाता के हाथ में हैं |यहाँ जो जो जब जब होना है वह होता ही है ,इसको टाला नहीं जा सकता |भावी बड़ी प्रबल(Powerful) है |
              इसी तरह एक अन्य जगह तुलसी कहते हैं-
                                         पहिले  तो प्रारब्ध रचा, पिछे रचा शरीर |
                                         तुलसी चिंता छोडि के,भजले श्री रघुवीर ||
                             प्रसिद्धि,धन प्राप्ति और प्रतिष्ठित पद प्राप्त करना भी मनुष्य के हाथ में नहीं है |यह सब विधि या प्रारब्ध के अनुसार ही प्राप्त होता है |प्रारब्ध के बनाने में पञ्च-संयोग या पांच कारण (Five factors)  गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अन्तिम अध्याय में अर्जुन को बतलाये हैं-
                                          पञ्चैतानि महाबाहो कारणानि निबोध मे |
                                          सांख्ये कृतान्ते प्रोक्तानि सिद्धये सर्वकर्मणाम् ||गीता १८/१३||
अर्थात्',हे महाबाहो!सम्पूर्ण कर्मों की सिद्धि के ये पांच हेतु सांख्यशास्त्र मे कहे गए हैं,उनको तू मुझसे भलीभांति जान |
                                          अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च  पृथग्विधम् |
                                           विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम् || गीता १८/१४ ||
अर्थात्,इस विषय में अर्थात कर्मों की सिद्धि में अधिष्ठान(जिनके आश्रय कर्म किये जाएँ ),कर्ता,करण(साधन , जिनके द्वारा कर्म किये जाते हैं ),नाना प्रकार की चेष्टाएं और पांचवा संयोग दैव है |(पूर्व मे किये गए शुभाशुभ कर्मों के  संस्कार ) |
                             किसी भी कर्म को सिद्ध करने अर्थात उनसे मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए अधिष्ठान(Platform),कर्ता(Person who acts),करण(Instruments by which act will be done),चेष्टाएं((Activities for act) एवं दैव(Result of acts done in last life) ही प्रारब्ध के पञ्च-संयोग हैं |
                                 || हरिः शरणम् ||

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