क्रमश:१३
सनातन धर्म-शास्त्र गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः |
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ||गीता ३/४२||
अर्थात्,इन्द्रियों को स्थूल शरीर से श्रेष्ठ,बलवान और सूक्ष्म कहते हैं;इन इन्द्रियों से पर यानि श्रेष्ठ और सूक्ष्म मन है,मन से भी पर बुद्धि है और जो बुद्धि से भी पर या श्रेष्ठ और सूक्ष्म है वह आत्मा है |
आइये अब इसी गीत्ता में कही गयी बात की तुलना करे आधुनिक विज्ञानं के कहने से-
शरीर(Physical body) से पर यानि सूक्ष्म और श्रेष्ठ इन्द्रियां (Sense organs)है,इन्द्रियों से सूक्ष्म व श्रेष्ठ इन्द्रियों का नियंत्रणकर्ता(Pitutary gland) है,इन्द्रियों के नियंत्रणकर्ता से सूक्ष्म Limbic system of brain(मन) है और Limbic system (मन) से सूक्ष्म Neocortex (बुद्धि) है |और Neocortex (बुद्धि) का नियंत्रणकर्ता उसकी विद्युत-चुम्बकीय उर्जा(Electro magnetic energy) है |
विज्ञानं इस उर्जा को अभी तक कोई शब्द नहीं दे पाया है |जबकि हजारों वर्ष पहले गीता में इस उर्जा को आत्मा का नाम दे दिया गया था |विज्ञानं अभी भी यह समझा नहीं पाया है कि मृत्यु होने पर यह उर्जा कहाँ चली जाती है ? और जन्म के समय यही उर्जा सक्रिय कैसे होती है ?
गीता और विज्ञानं द्वारा कही गयी बातों की तुलना के बाद स्पष्ट हो चूका है कि दोनों में मात्र शब्दों का ही अंतर है,प्रक्रिया में नहीं |जब दीर्घ कालीन स्मृतियाँ (L.T.M.)Cerebrum में एकत्रित हो जाती है ,तब धीरे धीरे व्यक्ति के संस्कार बन जाती है |ये संस्कार व्यक्ति का स्वाभाव बनाते है |उसी स्वभाव के अनुरूप व्यक्ति का आचरण होता है और उसी उनुरूप उसके कर्म |जब व्यक्ति के मन कोई इच्छा उत्पन्न होती है तो वह उन्हें पूरी करने के लिए कर्म करता है |जब कर्म करते रहने के बाद भी उसकी इच्छा पूरी नहीं होती तो वे इच्छाएं दीर्घ कालीन स्मृति (L.T.M.)के रूप में Cerebrum में संचित(Collect) होती है |मृत्यु के समय ये अधूरी कामनाएं और किये गए कर्मCerebrum के Neocortex से चुम्बकीय तरंगों(Magnetic waves) के रूप मेंHippocampus द्वारा पुनः सक्रिय (Retrieve)की जाती है |सक्रिय होकर ये तरंगों के रूप में ही Hypothalamus को स्थान्तरित की जाती है ,यहाँ से यह तरंगे चित्त के रूप में आत्मा (Soul) के साथ शरीर छोड़ देती हैं | मृत्यु होने के अतिरिक्त सामान्य दशा में उपरोक्त कामनाएं चुम्बकीय तरंगों(Magnetic waves) के स्थान पर विद्युत तरंगों(Electric waves) के रूप में सक्रिय होती है और Hypothalamus द्वारा चित्त के रूप में आत्मा के साथ भेजने के स्थान पर शरीर के अन्य हिस्सों को प्रेषित(Transfer) की जाती है जिससे कार्य(Act) सम्पादित किया जा सके |शरीर की मृत्यु हो जाने के बाद आत्मा शून्य(Space) में इन चुम्बकीय तरंगों (चित्त) का आकलन(Analysis) कर अधूरी इच्छाओं को पूरी करने हेतु और किये गए कर्मों के फल प्रदान करने के लिए नए शरीर की तलाश कर इस चुम्बकीय उर्जा(Magnetic Energy) को नए शरीर में अपने साथ प्रवेश कराती है |इस क्रिया को पूर्ण होने में कुछ क्षणों से लेकर कई वर्षों तक का समय लग सकता है |यह तो पुनर्जन्म की वैज्ञानिक प्रक्रिया हुई |
पुनर्जन्म से मुक्ति अर्थात् मोक्ष के लिए इन्हीं कामनाओं पर नियंत्रण रखना आवश्यक होगा |कामनाएं मन में पैदा होती है और मन को नियंत्रण में रखना आसान नहीं है|मुक्ति तभी संभव है जब कामनाएं पैदा ही न हो | कामनाएं कभी भी और किसी की भी कभी समाप्त नहीं हो पाती है क्योंकि जब एक कामना पूरी होती है तभी या तो वही कामना पुनः पैदा हो जाती है या फिर और अधिक की कामना पैदा हो जाती है |सनातन शास्त्रों में इसे" आत्मा का इन्द्रियों के विषयों का संग" करना कहते हैं|यही संग उसे नए शरीर में जाने को बाध्य करता है |
क्रमश:
|| हरिः शरणम् ||
सनातन धर्म-शास्त्र गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः |
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ||गीता ३/४२||
अर्थात्,इन्द्रियों को स्थूल शरीर से श्रेष्ठ,बलवान और सूक्ष्म कहते हैं;इन इन्द्रियों से पर यानि श्रेष्ठ और सूक्ष्म मन है,मन से भी पर बुद्धि है और जो बुद्धि से भी पर या श्रेष्ठ और सूक्ष्म है वह आत्मा है |
आइये अब इसी गीत्ता में कही गयी बात की तुलना करे आधुनिक विज्ञानं के कहने से-
शरीर(Physical body) से पर यानि सूक्ष्म और श्रेष्ठ इन्द्रियां (Sense organs)है,इन्द्रियों से सूक्ष्म व श्रेष्ठ इन्द्रियों का नियंत्रणकर्ता(Pitutary gland) है,इन्द्रियों के नियंत्रणकर्ता से सूक्ष्म Limbic system of brain(मन) है और Limbic system (मन) से सूक्ष्म Neocortex (बुद्धि) है |और Neocortex (बुद्धि) का नियंत्रणकर्ता उसकी विद्युत-चुम्बकीय उर्जा(Electro magnetic energy) है |
विज्ञानं इस उर्जा को अभी तक कोई शब्द नहीं दे पाया है |जबकि हजारों वर्ष पहले गीता में इस उर्जा को आत्मा का नाम दे दिया गया था |विज्ञानं अभी भी यह समझा नहीं पाया है कि मृत्यु होने पर यह उर्जा कहाँ चली जाती है ? और जन्म के समय यही उर्जा सक्रिय कैसे होती है ?
गीता और विज्ञानं द्वारा कही गयी बातों की तुलना के बाद स्पष्ट हो चूका है कि दोनों में मात्र शब्दों का ही अंतर है,प्रक्रिया में नहीं |जब दीर्घ कालीन स्मृतियाँ (L.T.M.)Cerebrum में एकत्रित हो जाती है ,तब धीरे धीरे व्यक्ति के संस्कार बन जाती है |ये संस्कार व्यक्ति का स्वाभाव बनाते है |उसी स्वभाव के अनुरूप व्यक्ति का आचरण होता है और उसी उनुरूप उसके कर्म |जब व्यक्ति के मन कोई इच्छा उत्पन्न होती है तो वह उन्हें पूरी करने के लिए कर्म करता है |जब कर्म करते रहने के बाद भी उसकी इच्छा पूरी नहीं होती तो वे इच्छाएं दीर्घ कालीन स्मृति (L.T.M.)के रूप में Cerebrum में संचित(Collect) होती है |मृत्यु के समय ये अधूरी कामनाएं और किये गए कर्मCerebrum के Neocortex से चुम्बकीय तरंगों(Magnetic waves) के रूप मेंHippocampus द्वारा पुनः सक्रिय (Retrieve)की जाती है |सक्रिय होकर ये तरंगों के रूप में ही Hypothalamus को स्थान्तरित की जाती है ,यहाँ से यह तरंगे चित्त के रूप में आत्मा (Soul) के साथ शरीर छोड़ देती हैं | मृत्यु होने के अतिरिक्त सामान्य दशा में उपरोक्त कामनाएं चुम्बकीय तरंगों(Magnetic waves) के स्थान पर विद्युत तरंगों(Electric waves) के रूप में सक्रिय होती है और Hypothalamus द्वारा चित्त के रूप में आत्मा के साथ भेजने के स्थान पर शरीर के अन्य हिस्सों को प्रेषित(Transfer) की जाती है जिससे कार्य(Act) सम्पादित किया जा सके |शरीर की मृत्यु हो जाने के बाद आत्मा शून्य(Space) में इन चुम्बकीय तरंगों (चित्त) का आकलन(Analysis) कर अधूरी इच्छाओं को पूरी करने हेतु और किये गए कर्मों के फल प्रदान करने के लिए नए शरीर की तलाश कर इस चुम्बकीय उर्जा(Magnetic Energy) को नए शरीर में अपने साथ प्रवेश कराती है |इस क्रिया को पूर्ण होने में कुछ क्षणों से लेकर कई वर्षों तक का समय लग सकता है |यह तो पुनर्जन्म की वैज्ञानिक प्रक्रिया हुई |
पुनर्जन्म से मुक्ति अर्थात् मोक्ष के लिए इन्हीं कामनाओं पर नियंत्रण रखना आवश्यक होगा |कामनाएं मन में पैदा होती है और मन को नियंत्रण में रखना आसान नहीं है|मुक्ति तभी संभव है जब कामनाएं पैदा ही न हो | कामनाएं कभी भी और किसी की भी कभी समाप्त नहीं हो पाती है क्योंकि जब एक कामना पूरी होती है तभी या तो वही कामना पुनः पैदा हो जाती है या फिर और अधिक की कामना पैदा हो जाती है |सनातन शास्त्रों में इसे" आत्मा का इन्द्रियों के विषयों का संग" करना कहते हैं|यही संग उसे नए शरीर में जाने को बाध्य करता है |
क्रमश:
|| हरिः शरणम् ||
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