समय ही एक ऐसी व्यवस्था है जो व्यक्ति को सबसे ज्यादा उद्वेलित करती है | समय के कारण ही व्यक्ति के मस्तिष्क में विचार पैदा होते है |समय दो अनुभवों के बीच का माप है |समय मुख्य रूप से तीन में विभाजित किया जाता है-बीता हुआ कल या भूत ,आज या वर्तमान और आनेवाला कल या भविष्य |आज 'वर्तमान'में कौन जीता है |सभी भूतकाल या भविष्य में जीए जा रहे हैं |आज हम यही विचार करते हैं कि कल हमने क्या खोया या क्या नहीं कर पाएऔर हमें कल क्या पाना है या कल के लिए क्या करना है ?इसी दुविधा में आज बीत जाता है और हम 'वर्तमान' में जी नहीं पाते |यही सबसे बड़ी विडम्बना है |
यह समय और विचार दोनों मिलकर मन में एक भय पैदा करते हैं |इस भय के कारण व्यक्ति आज यानि 'वर्तमान' को अच्छी तरह जी नहीं पाता |उसे बीते हुए कल का भय सताता है जैसे कल पडौसी ने मेरा कैसा अपमान किया,कल बॉस ने मेरे को कार्यालय में मेरी फजीहत की आदि आदि|भविष्य का भय यह होता है कि क्या बच्चा पास हो पायेगा,मेरी नौकरी तो नहीं चली जायेगी,कहीं आयकर वालों की नज़र तो मुझ पर तो नहीं है आदि आदि|
इनसे हम समझ सकते हैं कि विचार और भय पैदा करने में समय की बहुत बड़ी भूमिका है |इसी प्रकार धीरे धीरे मृत्यु का भय पैदा हो जाता है और मृत्यु की आशंका के बीच व्यक्ति भय के वातावरण में जीता रहता है |इस तरह जीने को मैं जीना नहीं कहूँगा |अगर समय नहीं हो तो विचार भी नहीं पैदा होंगे और न ही भय | इसलिए हमें समय से अपने आप को अलग करना होगा,समय के बंधन को तोडना होगा तभी हम 'सच्चिदानंद' को पा सकेंगे |समय से अलग होजाने या समय से ऊपर उठ जाने को ही समयातीत या कालातीत होना कहते हैं |
अब प्रश्न यह उठता है कि कालातीत या समय से ऊपर उठने के लिए क्या किया जाये ?समय से अलग होने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि समय से दूर भागा जाये |पहली बात तो यह समझने की है कि समय और विचार दो अलग अलग नहीं है ,दोनों एक ही है |बिना समय के विचार का अस्तित्व नहीं हो सकता और बिना विचार के समय का कोई मूल्य नहीं है |इन दोनों से दूर जाने की आवश्यकता नहीं है |आवश्यकता है दोनों को गहराई से देखने की,समझने की और परखने की |दोनों को समझते ही भय अपने आप दूर हो जायेगा |इसी को समयातीत या कालातीत होना कहते हैं |
|| हरिः शरणम् ||
यह समय और विचार दोनों मिलकर मन में एक भय पैदा करते हैं |इस भय के कारण व्यक्ति आज यानि 'वर्तमान' को अच्छी तरह जी नहीं पाता |उसे बीते हुए कल का भय सताता है जैसे कल पडौसी ने मेरा कैसा अपमान किया,कल बॉस ने मेरे को कार्यालय में मेरी फजीहत की आदि आदि|भविष्य का भय यह होता है कि क्या बच्चा पास हो पायेगा,मेरी नौकरी तो नहीं चली जायेगी,कहीं आयकर वालों की नज़र तो मुझ पर तो नहीं है आदि आदि|
इनसे हम समझ सकते हैं कि विचार और भय पैदा करने में समय की बहुत बड़ी भूमिका है |इसी प्रकार धीरे धीरे मृत्यु का भय पैदा हो जाता है और मृत्यु की आशंका के बीच व्यक्ति भय के वातावरण में जीता रहता है |इस तरह जीने को मैं जीना नहीं कहूँगा |अगर समय नहीं हो तो विचार भी नहीं पैदा होंगे और न ही भय | इसलिए हमें समय से अपने आप को अलग करना होगा,समय के बंधन को तोडना होगा तभी हम 'सच्चिदानंद' को पा सकेंगे |समय से अलग होजाने या समय से ऊपर उठ जाने को ही समयातीत या कालातीत होना कहते हैं |
अब प्रश्न यह उठता है कि कालातीत या समय से ऊपर उठने के लिए क्या किया जाये ?समय से अलग होने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि समय से दूर भागा जाये |पहली बात तो यह समझने की है कि समय और विचार दो अलग अलग नहीं है ,दोनों एक ही है |बिना समय के विचार का अस्तित्व नहीं हो सकता और बिना विचार के समय का कोई मूल्य नहीं है |इन दोनों से दूर जाने की आवश्यकता नहीं है |आवश्यकता है दोनों को गहराई से देखने की,समझने की और परखने की |दोनों को समझते ही भय अपने आप दूर हो जायेगा |इसी को समयातीत या कालातीत होना कहते हैं |
|| हरिः शरणम् ||
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