चेष्टाएं (EFFORTS)
एक कर्ता को जब उपयुक्त मंच या अधिष्ठान
तथा अच्छे करण या साधन उपलब्ध हो जाते हैं तब उसके द्वारा अगर किसी भी तरह का
प्रयास नहीं किया जाये तो सब व्यर्थ है |इन किये जाने वाले प्रयास का नाम ही
चेष्टा है |संस्कृत में एक उक्ति है-
न ही सुप्तुस्य सिंहस्य प्रवेशिष्यसि मुखे मृगा |
अर्थात्म,सोये हुए सिंह के मुख में मृग
अपने आप ही प्रवेश नहीं करेगा |मृग को भोजन के रूप में प्राप्त करने के लिए सिंह
को उसका शिकार करना ही होगा |एक सिंह शिकारी के रूप में अच्छा कर्ता है,करण के लिए
उसके शरीर की कर्मेन्द्रियाँ है जो एक मृग का शिकार करने के लिए सबसे उपयुक्त है
तथा जंगल का वातावरण उसके लिए सबसे उपयुक्त अधिष्ठान है |इतना सब कुछ होने के
उपरांत भी अगर सिंह यही सोचकर सोता रहे कि संसार में शिकार करने में मुझसे बेहतर
कोई नहीं है तो कभी भी मृग स्वयं चलकर उसके पास जाकर नहीं कहेगा कि उठिए
महाराज,मैं आपकी सेवा में आपके भोजन के लिए प्रस्तुत हूँ |एक मृग का भोजन करने के
लिए सिंह को भी चेष्टा करनी होगी |
यही सब मनुष्य के लिए भी आवश्यक है
|कुछ व्यक्ति मुख मे सोने कि चम्मच लेकर पैदा जरुर होते है,उन्हें संसार के सभी
साधन उपलब्ध होते हैं |फिर भी वे अपने जीवन में असफल साबित होते हैं |इसका एक
मात्र कारण उनके द्वारा की जा रही चेष्टाओं में कमी है |चेष्टाओं में कमी का सबसे
बड़ा कारण आलस्य का होना है |एक तामसिक कर्ता दीर्घसूत्री होता है-वह आज का कार्य
कल पर टालता रहता है और इस प्रकार उसके जीवन में वह कल कभी भी नहीं आता है जब वह
कार्य को करने का प्रयास भी करेगा |संस्कृत में एक बहुत ही सुन्दर श्लोक है-
अलसस्य कुतो विद्या,अविद्येस्य कुतो धनम् |
अधनस्य कुतो मित्रम् ,अमित्रस्य कुतो सुखम् ||
अर्थात्,आलसी व्यक्ति को विद्या प्राप्त
नहीं हो सकती |अशिक्षित व्यक्ति धन भी कैसे प्राप्त कर सकता है |बिना धन के किसी
का कोई मित्र कैसे हो सकता है और बिना मित्र के किसी को सुख कैसे प्राप्त होगा?
अतः इस संसार में बिना चेष्टा के कुछ भी
प्राप्त नहीं किया जा सकता |और चेष्टा करना कर्ता का कार्य है|असफलता के लिए कर्ता स्वयं ही उत्तरदायी
होता है,अन्य कोई भी नहीं |
|| हरिः शरणम् ||
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