Monday, December 23, 2013

प्रेम का अर्थ |

                              संसार में जितने भी शब्द कोष हैं उनमे प्रेम शब्द उपलब्ध है |वास्तव में प्रेम शब्द का सही अर्थ क्या है,सब अपने विवेकानुसार अनुसार इसकी व्याख्या करते हैं |परन्तु यह शब्द इतना सस्ता भी नहीं है कि इसका वास्तविक अर्थ जाने बिना इसका किसी भी स्थान पर उपयोग कर लिया जाये |इस शब्द का जितना दुरूपयोग समाचार जगत ने किया है उतना शायद ही किसी ने किया है |मैं एक दो समाचारों का उदहारण देना चाहूँगा ,जो  आये दिनों आपको अखबारों में पढने को मिल जाते हैं |जैसे प्रेमी ने प्रेमिका की हत्या की,एकतरफा प्रेम में प्रेमी ने एक लडकी की जान ली आदि |अब जरा सोचिये-क्या कोई लड़का वास्तव में किसी लड़की को प्रेम करता हो तो वह उस लड़की की जान ले सकता है ?नहीं,कदापि नहीं |फिर समाचारपत्र ऐसा क्यों लिखते हैं ?मैं आज तक समझ नहीं पाया हूँ |
                            प्रेम तो आपस में एक दूसरे के लिए मिटना सिखाता है,एक दूसरे को मिटाना नहीं |जहाँ एक दूसरे के प्रति सम्पूर्णता के साथ समर्पण का भाव नहीं है वहाँ प्रेम कैसे हो सकता है?यहाँ अगर लड़का किसी लड़की की हत्या करता है ,तो स्पष्ट है कि उस लड़के का उस लड़की के साथ प्रेम तो कदापि नहीं था |अगर आप वासना,कामना या लगाव को ही प्रेम का नाम देते हैं,तो बात अलग है |
                 आज इस कामनाओं और इच्छाओं से भरे संसार में प्रेम बचा ही कहाँ है,सिवाय शब्द कोष के |हम आकर्षण और लगाव को ही प्रेम का नाम दे रहे हैं |प्रेम तो मानव मन में उठ रही वो तरंगे है जो अपने प्रेमी के मन की बात मीलों दूर बैठे ही महसूस कर लेता है |प्रेम में जुबान तो एकदम मौन ही हो जाती है |जिस प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए आपको शब्दों का सहारा लेना पड़े ,तो फिर आप किसी और की बात कह रहे है ,प्रेम की नहीं |आज प्रेम का इज़हार लोग उपहारों और शब्दों के माध्यम से कर रहे है|क्या अब प्रेम को इन उपहारों और शब्दों की जरुरत पडने लग गयी है ?नहीं,प्रेम कोई उपहार या शब्दों का मोहताज नहीं है |अगर कोई व्यक्ति आपके प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए उपहार,शब्द या अन्य माध्यम का इंतज़ार करता है,समझ लीजिए उसका आपके प्रति मात्र आकर्षण है,प्रेम नहीं |
                        प्रेम को समझ पाना और इस शब्द की व्याख्या करना बहुत ही मुश्किल है |कोई एक परमात्मा को समर्पित,प्रेम को समर्पित व्यक्ति भले ही ऐसा कर सकता हो|मैंने तो जितना इस शब्द के बारे में पढ़ा है और समझा है ,शब्दों से उस प्रेम को व्यक्त कर रहा हूँ |हालाँकि मैं जानता हूँ कि प्रेम कोई शब्दों में व्यक्त करने की बात नहीं है |इस भौतिक संसार ने प्रेम का जिस प्रकार से विभाजन किया है ,उस पर एक नज़र डालना और आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ |प्रेम पर लिखना इसी कारण से मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ |
                         प्रेम प्रेम सब कोई कहै,प्रेम न चीन्हे कोई |
                         आठ पहर भीगा रहे,प्रेम कहावे सोई ||
                                  || हरिः शरणम् ||

1 comment:

  1. I do not know in which words I thank you, but I have learned a lot from what you read. Thank you very much...

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