वैसे हम जानते ही हैं कि आत्मा,परमात्मा का ही एक अंश है |आत्मा सत् (तत्व) है जो असत् के साथ मिलकर अस्तित्व (असत्+तत्व) प्राप्त करती है |एक दिन उसे वापिस परमात्मा बनना ही है |समुद्र से पानी वाष्प के रूप में उड़कर धरा पर बरसता है,पहाड़ों पर बर्फ के रूप में गिरता है और फिर नदी के रूप में बहता है |बहते बहते अंत में वह समुद्र में मिलकर उसके साथ एकाकार हो जाता है |यही स्थिति आत्मा की है |परमात्मा से चलकर संसार में आती है ,नदी की तरह यहाँ से वहाँ बहती रहती है परन्तु केवल बहते रहना ही उस आत्मा की नियति नहीं है |उसे एक दिन पुनः अपने मूल श्रोत में लौटना ही होगा जैसे नदी समुद्र में आकर अपना अस्तित्व खो देती है उसी प्रकार आत्मा भी एक दिन परमात्मा के साथ मिलकर अपना अस्तित्व समाप्त कर देती है |
इस आत्मा को भी परमात्मा बनने के लिए कई रास्तों और पड़ावों से गुजरना पड़ता है |इन पड़ावों का चित्रण श्रीमद्भागवतगीता के एक श्लोक में किया गया है -
उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः |
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेSस्मिन्पुरुषः परः ||गीता १३/२२||
अर्थात्,इस देह में स्थित आत्मा ही वास्तव में परमात्मा ही है |वही साक्षी होने से उपद्रष्टा ,यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता,सबका भरण पोषण करने वाला होने से भर्ता,जीव रूप से भोक्ता,ब्रह्मा आदि का स्वामी होने से महेश्वर और शुद्ध सच्चिदानंदघन होने से परमात्मा ऐसा कहा गया है |
उपरोक्त श्लोक को अगर हम सम्पूर्णता के साथ देखें तो हम समझ सकते हैं कि आत्मा से परमात्मा बनने की राह में प्रमुख रूप से पांच पड़ाव आते है ,जो प्रारम्भ से लेकर आत्मा के परमात्मा बनने तक क्रमवार इस प्रकार आते हैं-
१.उपदृष्टा
२.अनुमन्ता
३.भर्ता
४.भोक्ता
५.महेश्वर
महेश्वर की स्थिति प्राप्त कर लेने के बाद थोड़े से ही प्रयास से परमात्मा की स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है |इस पूरी प्रक्रिया में मनुष्य को कई जन्म लग सकते हैं |यह सब तत्काल भी संभव है ,आवश्यकता केवल प्रयास करने की है |आज के भौतिक युग में इस शरीर और संसार से विमुख हुए बिना तत्काल परमात्म तत्व की स्थिति प्राप्त करना दूर की कौड़ी ही है |इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि यह शरीर और संसार आलोच्य है ,कुछ भी नहीं है |यह शरीर और संसार हमें क्यों उपलब्ध हुए हैं ,यह जानना आवश्यक है |यह संसार और शरीर मात्र साधन है ,साध्य नहीं |मनुष्य की सबसे बड़ी विडम्बना यही है कि वह साधन को ही साध्य मान लेता है |यही उसके दुःख और पीड़ा का सबसे बड़ा कारण है |
|| हरिः शरणम् ||
इस आत्मा को भी परमात्मा बनने के लिए कई रास्तों और पड़ावों से गुजरना पड़ता है |इन पड़ावों का चित्रण श्रीमद्भागवतगीता के एक श्लोक में किया गया है -
उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः |
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेSस्मिन्पुरुषः परः ||गीता १३/२२||
अर्थात्,इस देह में स्थित आत्मा ही वास्तव में परमात्मा ही है |वही साक्षी होने से उपद्रष्टा ,यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता,सबका भरण पोषण करने वाला होने से भर्ता,जीव रूप से भोक्ता,ब्रह्मा आदि का स्वामी होने से महेश्वर और शुद्ध सच्चिदानंदघन होने से परमात्मा ऐसा कहा गया है |
उपरोक्त श्लोक को अगर हम सम्पूर्णता के साथ देखें तो हम समझ सकते हैं कि आत्मा से परमात्मा बनने की राह में प्रमुख रूप से पांच पड़ाव आते है ,जो प्रारम्भ से लेकर आत्मा के परमात्मा बनने तक क्रमवार इस प्रकार आते हैं-
१.उपदृष्टा
२.अनुमन्ता
३.भर्ता
४.भोक्ता
५.महेश्वर
महेश्वर की स्थिति प्राप्त कर लेने के बाद थोड़े से ही प्रयास से परमात्मा की स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है |इस पूरी प्रक्रिया में मनुष्य को कई जन्म लग सकते हैं |यह सब तत्काल भी संभव है ,आवश्यकता केवल प्रयास करने की है |आज के भौतिक युग में इस शरीर और संसार से विमुख हुए बिना तत्काल परमात्म तत्व की स्थिति प्राप्त करना दूर की कौड़ी ही है |इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि यह शरीर और संसार आलोच्य है ,कुछ भी नहीं है |यह शरीर और संसार हमें क्यों उपलब्ध हुए हैं ,यह जानना आवश्यक है |यह संसार और शरीर मात्र साधन है ,साध्य नहीं |मनुष्य की सबसे बड़ी विडम्बना यही है कि वह साधन को ही साध्य मान लेता है |यही उसके दुःख और पीड़ा का सबसे बड़ा कारण है |
|| हरिः शरणम् ||
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