प्रेम
सदैव बिना किसी शर्त(Conditions) के होता है |जहाँ कोई शर्त होती है वहाँ कभी प्रेम नहीं होता
है |जब भी प्रेम में शर्तें लागु की जाती है ,प्रेम फिर प्रेम नहीं रहता ,वह लगाव(Attachment) में बदल जाता है | यह लगाव बहुत ही अपेक्षाएं(Expectations) अपने अंदर समेटे होता है |आपसी
संबंधों में एक तरह का रिक्त स्थान बना रहता है क्योंकि लगाव में अपेक्षाओं और
वास्तविकता(Reality) में बहुत अधिक अंतर होता है |लगाव संबंधों को कभी भी प्रगाढ़ नहीं होने
देता है |
अगर हम गंभीरता से अपनी मनःस्थिति(Mental status) का
अध्ययन करें तो पाएंगे कि किसी व्यक्ति से किसी प्रकार का सम्बन्ध स्थापित करने से पहले हम उस व्यक्ति के
बारे में अधिकतम जानकारी प्राप्त कर एक निश्चितता प्राप्त करना चाहते है |इस दौरान
हम उसके कार्यों ,उसकी हैसियत,उसके सम्मान देने के तरीके ,हमारे साथ उसके व्यवहार
आदि का बड़े गौर से अध्ययन करते हैं और फिर निर्णय करते है कि वह हमारे योग्य है
अथवा नहीं |अगर हमारी आकांक्षाओं पर वह खरा नहीं उतरता तो हम उसे अयोग्य घोषित
करने में क्षण भर की देरी भी नहीं करते |यहाँ अगर वह हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप
होता है तो हमारा उसके प्रति आकर्षण पैदा हो जाता है और एक रिश्ता बन जाता है
|परन्तु इस रिश्ते को आप स्वार्थवश पैदा हुए लगाव के कारण बना रिश्ता कह सकते हैं|प्रेम का इस रिश्ते में सर्वथा अभाव होगा
|
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि
हम स्वयं से भी प्रेम नहीं करते हैं |क्योंकि हम जैसे होते हैं ,,वैसे कभी भी बने
रहना नहीं चाहते |स्वयं हम अपने आपको भीतर से कुछ शर्तें लादते हुए प्रदर्शित करते
है | कभी हमें अपने आप की लघुता का अहसास(Inferiority complex) होता है| हम सदैव ही अपने बारे में
नकारात्मक सोच के शिकार होते हैं |हम जैसे भी है, उसी स्थिति में अपने आप को
स्वीकार नहीं करते है|हम अपनी उर्जा का आधा हिस्सा तो जैसे हम नहीं है, वैसा दिखाने में गँवा देते है और आधा हिस्सा जैसे भी हम है, उसे छुपाने में |फिर स्वयं से प्रेम करने के लिए उर्जा बचती भी कहाँ है |
यह लगाव शब्द पूर्वाग्रह की तरफ इशारा करता है |हम सभी अपने
स्वार्थों और आकाक्षाओं में इतने रत हैं कि हमें यह भी ख्याल नहीं आता है कि कौन
वास्तव में हमें प्रेम करता है और कौन प्रेम करने का ढोंग कर रहा है |कई बार तो
ऐसा होता है कि वास्तविक प्रेम(Unconditional love) करने वाले को हम स्वार्थवश पैदा हुआ लगाव समझ
बैठते हैं ,और कई बार स्वार्थवश किये जा रहे प्रेम पर्दशन को वास्तविक प्रेम समझ
बैठते हैं |अगर हमें कोई ऐसा व्यक्ति प्रेम करता है जो अपने अनुसार हमारे से रिश्ता रखने की योग्यता नहीं रखता हो तो हम उसके इस प्रेम को अहंकारवश उसका स्वार्थ समझते हुए स्वीकार नहीं करते |यहाँ कहा जा सकता है कि हमारे में प्रेम का सर्वथा अभाव है |कोई भी ऐसी बात जिसमे अहंकार सम्मिलित होता है वहाँ प्रेम का होना
असंभव है |
बिना शर्त का प्रेम व्यापकता लिए
होता है |इसमे जिस व्यक्ति से भी प्रेम होता है वह उसे प्रत्येक स्थिति में
स्वीकार्य होता है |वहाँ यह नहीं देखा जाता कि वह साथ में बैठने योग्य है या
नहीं,उसकी आर्थिक स्थिति कैसी है,पुरुष है या स्त्री ,इसको मेरे अनुकूल कैसे परिवर्तित किया जा सकता है आदि सब सोच से भी परे होता है |शुद्ध और सात्विक प्रेम
बिलकुल सीधा,सरल,तनाव रहित भावनाओं से ओतप्रोत,टिकाऊ और गहराई लिए होता है | जबकि सशर्त
प्रेम अर्थात लगाव या आकर्षण बहुत ही कमजोर, छिछला, और काफी हद तक दिखाऊ और
स्वार्थ पर आधारित होता है |
संत कबीर ने कितनी सच्ची बात कही है-
प्रेम न बाड़ी उपजे,प्रेम न हाट बिकाय |
राजा प्रजा जो भी रुचे,शीश देई ले जाय ||
अब प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या प्रेम बिना किसी शर्त,बिना किसी कामना के भी हो सकता है?मैं कहूँगा-हाँ,क्यों नहीं? प्रतिदिन सूर्य बिना किसी आकांक्षा के सारे संसार को प्रकाशित कर सकता है,जल अपने संपर्क में आनेवाले को बिना भेदभाव किये भिगो सकता है,वृक्ष सबको फल और ठंडी छाया प्रदान करता है तथा ठंडी बयार सबको आनन्दित करती है |ये सब ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि ये सब अपनी प्रकृति में ही जीते हैं |जब हम भी अपनी वास्तविकता में जीने लगेंगे,हमारा जीवन भी प्रेम से ओत-प्रोत हो जायेगा |किसी ने सच ही कहा है-न तो किसी अभाव में जीओ,न किसी प्रभाव में जीओ ,जीना है तो सिर्फ अपने स्वभाव में जीओ |अपने स्वभाव में जीना ही वास्तविक प्रेम है |
संत कबीर ने कितनी सच्ची बात कही है-
प्रेम न बाड़ी उपजे,प्रेम न हाट बिकाय |
राजा प्रजा जो भी रुचे,शीश देई ले जाय ||
अब प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या प्रेम बिना किसी शर्त,बिना किसी कामना के भी हो सकता है?मैं कहूँगा-हाँ,क्यों नहीं? प्रतिदिन सूर्य बिना किसी आकांक्षा के सारे संसार को प्रकाशित कर सकता है,जल अपने संपर्क में आनेवाले को बिना भेदभाव किये भिगो सकता है,वृक्ष सबको फल और ठंडी छाया प्रदान करता है तथा ठंडी बयार सबको आनन्दित करती है |ये सब ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि ये सब अपनी प्रकृति में ही जीते हैं |जब हम भी अपनी वास्तविकता में जीने लगेंगे,हमारा जीवन भी प्रेम से ओत-प्रोत हो जायेगा |किसी ने सच ही कहा है-न तो किसी अभाव में जीओ,न किसी प्रभाव में जीओ ,जीना है तो सिर्फ अपने स्वभाव में जीओ |अपने स्वभाव में जीना ही वास्तविक प्रेम है |
|| हरिः शरणम् ||
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