"मैं ईश्वर को मानता नहीं हूँ,मैं ईश्वर को जानता हूँ | क्योंकि ईश्वर मानने का विषय है ही नहीं,ईश्वर तो केवल जानने का विषय है |"
किसी भी बात को मानने का अर्थ यह होता है कि किसी ने आपको वह बात कही और आपने उस बात को सही मान लिया |आपने उस बात या उस विषय के बारे में किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने की कोशिश नहीं की |आपने उस बात का कोई विरोध भी नहीं किया और मान लिया |आज के समय में यही मानना चलन में है |और आप जानते ही हैं कि मानना सत्य नहीं है ,वह सत्य से बहुत परे है |आपको किसी ने कह दिया कि ईश्वर होता है और आपने आँख मूँद कर मान लिया कि हाँ होता है |यह आपकी ईश्वर के प्रति आस्था और विश्वास बिलकुल भी प्रकट नहीं करता है |जब भी कोई अन्य व्यक्ति आपको यह कह देगा कि ईश्वर नहीं है,आप तुरंत ही उस बात को मान लोगे |अगर आपका ईश्वर को मानना ,आपकी ईश्वर के प्रति दृढ आस्था और विश्वास होता तो आप कदापि इस दूसरे व्यक्ति की बात नहीं मानते |
जब भी कोई व्यक्ति आपको किसी भी विषय में कोई बात कहता है तो सबसे पहले आपको उस बात की गहरे में जाकर उसको समझना होगा |उसकेबारे में कब,क्यों कैसे कहाँ आदि के बारे में समस्त जानकारी प्राप्त करनी आवश्यक होगी |तभी आप उस विषय के बारे में जान पाएंगे,अन्यथा उस विषय को मात्र मानना ही होगा |परमात्मा को मानना आपको कर्मकांडों की तरफ ले जायेगा जबकि परमात्मा को जान लेना इन सबसे आपको मुक्ति दिला देगा |एक बार अगर आप ईश्वर को जान जाते हैं ,तो फिर कोई कितना ही उसके अस्तित्व पर प्रश्न उठाये,कोई कितना ही उसके होने पर सवाल उठाये, आपकी उसके प्रति आस्था ,उसके प्रति आपका विश्वास कभी भी विचलित नहीं होगा |यह सब परमात्मा को जान लेने से ही संभव है |परमात्मा को जानना ही असली ज्ञान है |यह ज्ञान ही आपको सभी प्रकार के कर्मों और उससे प्राप्त होने वाले फलों से मुक्ति प्रदान करेगा |
|| हरिः शरणम् ||
किसी भी बात को मानने का अर्थ यह होता है कि किसी ने आपको वह बात कही और आपने उस बात को सही मान लिया |आपने उस बात या उस विषय के बारे में किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने की कोशिश नहीं की |आपने उस बात का कोई विरोध भी नहीं किया और मान लिया |आज के समय में यही मानना चलन में है |और आप जानते ही हैं कि मानना सत्य नहीं है ,वह सत्य से बहुत परे है |आपको किसी ने कह दिया कि ईश्वर होता है और आपने आँख मूँद कर मान लिया कि हाँ होता है |यह आपकी ईश्वर के प्रति आस्था और विश्वास बिलकुल भी प्रकट नहीं करता है |जब भी कोई अन्य व्यक्ति आपको यह कह देगा कि ईश्वर नहीं है,आप तुरंत ही उस बात को मान लोगे |अगर आपका ईश्वर को मानना ,आपकी ईश्वर के प्रति दृढ आस्था और विश्वास होता तो आप कदापि इस दूसरे व्यक्ति की बात नहीं मानते |
जब भी कोई व्यक्ति आपको किसी भी विषय में कोई बात कहता है तो सबसे पहले आपको उस बात की गहरे में जाकर उसको समझना होगा |उसकेबारे में कब,क्यों कैसे कहाँ आदि के बारे में समस्त जानकारी प्राप्त करनी आवश्यक होगी |तभी आप उस विषय के बारे में जान पाएंगे,अन्यथा उस विषय को मात्र मानना ही होगा |परमात्मा को मानना आपको कर्मकांडों की तरफ ले जायेगा जबकि परमात्मा को जान लेना इन सबसे आपको मुक्ति दिला देगा |एक बार अगर आप ईश्वर को जान जाते हैं ,तो फिर कोई कितना ही उसके अस्तित्व पर प्रश्न उठाये,कोई कितना ही उसके होने पर सवाल उठाये, आपकी उसके प्रति आस्था ,उसके प्रति आपका विश्वास कभी भी विचलित नहीं होगा |यह सब परमात्मा को जान लेने से ही संभव है |परमात्मा को जानना ही असली ज्ञान है |यह ज्ञान ही आपको सभी प्रकार के कर्मों और उससे प्राप्त होने वाले फलों से मुक्ति प्रदान करेगा |
|| हरिः शरणम् ||
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