Wednesday, December 4, 2013

अपरिग्रह

                                                            सांख्य योग के वर्णन के संदर्भ में भगवान श्रीकृष्ण ने जीव की उत्पत्ति के बारे में कहा है कि प्रकृति, जीव का शरीर अपने पांच तत्वों-पृथ्वी, जल, आकाश, वायु व अग्नि और तीनों गुणों-सतो, रजो व तमो से करती है। शरीर निर्माण के बाद ब्रह्म का अंश जीव के रूप में शरीर में प्रवेश करके उसे जीवात्मा बनाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रकृति के गुण जीव निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रकृति के गुणों के विद्यमान अनुपात के अनुसार जीव की वृत्ति का निर्धारण होता है और हमेशा ही जन्म दर जन्म यह वृत्ति मन के रूप में जीव के साथ चलती रहती है। अष्टांग योग में 8 प्रकारों यम, नियम, आसन आदि के द्वारा मन के निग्रह (Control of mind) का ध्येय लेकर साधक चलता है और मन का पूर्ण निग्रह होते ही जीव परम ब्रह्म में विलीन होकर जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। बहरहाल आज के वर्तमान समाज में मन के निग्रह की कल्पना कठिन नजर आती है। अनियंत्रित भोग-विलास और अस्तेय व अपरिग्रह का पालन न होने से मन का निग्रह करना कठिन हो गया है। अस्तेय का अर्थ है-चोरी न करना। चोरी करने के कई निहितार्थ हो सकते हैं। अपरिग्रह का आशय है जरूरत से ज्यादा संग्रह न करना, लेकिन आज ज्यादातर मनुष्य किसी न किसी प्रकार की चोरी में लिप्त है। जीवन यापन से ज्यादा धन को यदि मनुष्य समाज की भलाई में लगा दे तो समाज में व्याप्त आर्थिक असंतुलन समाप्त हो सकता है और धन की चोरी रोकी जा सकती है। यदि ऐसा हो सके तो ही समाज में रामराज लाया जा सकता है और सभी के जीवन में खुशहाली आ सकती है।
                                       अत्यधिक धन संग्रह की इच्छा रजोगुण में वृद्धि का मूल कारण है। जब ज्यादा धन संग्रह हो जाता है तब फिर विलासिता, मोह व भय उत्पन्न होने लगते हैं और इसके द्वारा तमो गुण की प्रधानता होने लगती है। तमो गुण से युक्त व्यक्ति जीवन की निम्न योनियो में जन्म लेता है, जबकि तमो से रजो व सतो गुण को ग्रहण कर जीव प्रभु के साक्षात्कार का अनुभव कर सकता है, परंतु व्यक्ति अस्तेय व अपरिग्रह को जीवन में न अपनाकर निम्न योनियों को प्राप्त कर रहा है। जीव का अगला जन्म उसके अंदर विद्यमान गुणों पर निर्भर करता है।
                                      || हरिः शरणम् || 

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